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राजनीति

Akhilesh के प्लान को फेल करने में जुटीं Mayawati को पूर्वांचल में लग सकता है बड़ा झटका, हरिशंकर के बेटे छोड़ सकते हैं बसपा

Janjwar Desk
1 Dec 2021 3:40 PM IST
Mayawati News : रामपुर में हार के बाद पहली बार बोलीं मायावती, बताई सपा क्यों हारी उपचुनाव
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Mayawati News : रामपुर में हार के बाद पहली बार बोलीं मायावती, बताई सपा क्यों हारी उपचुनाव

UP Election 2022 : सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद से हाथ मिलाकर पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने का दांव चला है तो उनके इस जातीय समीकरण के जवाब में बसपा सुप्रीमो मायावती जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण पर काम कर रही हैं।

UP Election 2022 : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 जैसे-जैसे करीब आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे सियासी पार्टियों के बीच शह-मात का खेल तेज होता जा रहा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद से हाथ मिलाकर पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने का दांव चला है तो उनके इस जातीय समीकरण के जवाब में बसपा सुप्रीमो मायावती ने जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण पर काम कर रही हैं।

जाट और मुस्लिम नेताओं को दिया जीत का मंत्र

बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक दिन पहले लखनऊ में पार्टी के ओबीसी ( अन्य पिछड़ा वर्ग ), मुस्लिम और जाट समाज के मुख्य और मंडल सेक्टर स्तर के वरिष्ठ नेताओं के संपन्न बैठक में अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित 86 विधानसभा सीटों में मुस्लिमों और जाट समुदाय को जोड़ने के मकसद से पार्टी पदाधिकारियों द्वारा चलाए जा रहे अभियान की समीक्षा की। इसी के मद्देनजर मायावती ने जाट और मुस्लिम नेताओं को सुरक्षित विधानसभा सीटों पर अपने-अपने समाज के लोगों को बसपा में जोड़ने का जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए उन्होंने जाट और मुस्लिम नेताओं से जमीनी स्तर पर काम करने और समाज की छोटी-छोटी बैठकें करने का मंत्र दिया।

सपा का मुस्लिम जाट समीकरण

वहीं, अखिलेश यादव पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी के बाद दलित नेता चंद्रशेखर के साथ हाथ मिलाने की तैयारी में हैं। ताकि पश्चिमी यूपी में मुस्लिम-जाट का मजबूत कॉम्बिनेशन सपा गठबंधन बना सके। उत्तर प्रदेश में जाट भले ही 4 फीसदी हैं, लेकिन पश्चिमी यूपी में 20 फीसदी के करीब हैं। मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर हैं। अखिलेश इन्हीं के सहारे सूबे की सत्ता में वापसी का सपना संजो रहे हैं।

बसपा से नाराज चल रहे हैं मुस्लिम नेता

दरअसल, पश्चिमी यूपी में जाट, मुस्लिम और दलित वोटर काफी निर्णायक भूमिका में है। एक समय मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण के जरिए पश्चिमी यूपी में जीत का परचम फहराती रही हैं, लेकिन इस बार के सियासी समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं। किसान आंदोलन के चलते आरएलडी के राजनीतिक संजीवनी मिली है, जिसके बाद जाट वोटरों का झुकाव एक बार फिर से आरएलडी की नजर आ रहा है। ऐसे में सपा और आरएलडी ने 2022 का चुनाव मिलकर लड़ने का फैसला किया है। पश्चिमी यूपी में बसपा के तमाम मुस्लिम नेता मायावती का साथ छोड़कर सपा और आरएलडी में शामिल हो गए हैं। बसपा के बड़े मुस्लिम चेहरों के तौर पर पहचान रखने वाले कादिर राणा, असलम अली चौधरी, शेख सुलेमान सपा में जा चुके हैं। पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी, चौधरी मोहम्मद इस्लाम, मीरापुर से पूर्व विधायक मौलाना जमील और पूर्व विधायक अब्दुल वारिस राव आरएलडी में शामिल हो चुके हैं। मायावती पश्चिमी यूपी में बड़े मुस्लिम चेहरे न होने की वजह से सब कुछ दुरुस्त करने के लिए न सिर्फ मुस्लिमों को टिकट देने में प्राथमिकता दी जा रही है, बल्कि कई विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम विधानसभा प्रभारी भी घोषित किए जा चुके हैं। पश्चिमी यूपी के तमाम सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट को हरी झंडी दे दी गई है। वहीं, जाट कैंडिडेट पर भी बसपा दांव खेलने की तैयारी में है।

इस बीच पूर्वांचल में मजबूत पकड़ रखने वाले पूर्व मंत्री व बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे व गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से बसपा विधायक विनय तिवारी बसपा सुप्रीमो मायावती से नाराज हैं। पिछले दिनों उन्हें बैठक में भी यह बात साफ तौर पर कह दी गई है कि चिल्लूपार सीट पर आपकी स्थिति ठीक नहीं है। मायावती की इसी बात को लेकर विनय शंकर तिवारी राजनीतिक विकल्प की तलाश में है। उन्होंने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अगर विनय शंकर तिवारी बसपा छोड़कर किसी दूसरी पार्टी में जाते हैं तो मायावती के ब्राह्मण राजनीति के लिए पूर्वांचल में एक बड़ा सियासी झटका होगा।

तिवारी नाराज हुए तो बसपा का बिगड़ेगा खेल

पूर्वांचल में ब्राह्मण सियासत का पूर्व कैबिनेट मंत्री व बाहुबली नेता हरिशंक तिवारी प्रमुख चेहरा माने जाते हैं। ऐसे में हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय तिवारी बसपा छोड़ते हैं तो बसपा के लिए पूर्वांचल खासकर गोरखपुर और संत कबीर नगर जिले की सीटों पर सियासी नुकसान हो सकता है। हरिशंकर तिवारी की गोरखपुर ही नहीं पूर्वांचल के तमाम जिलों में पकड़ मानी जाती है। हरिशंकर तिवारी एक ऐसा नाम है जिसे पूर्वांचल का पहला बाहुबली नेता कहा जाता है। कहते हैं कि हरिशंकर तिवारी के नक्शे कदम पर चलकर ही मुख्तार अंसारी और ब्रजेश सिंह जैसे बाहुबलियों ने राजनीति में कदम रखा।

पूर्वांचल में वीरेंद्र प्रताप शाही और पंडित हरिशंकर तिवारी की अदावत जगजाहिर है। 1980 का दशक ऐसा था जब शाही और तिवारी के बीच गैंगवार की गूंज देश भर में गूंजी। यहीं से दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने ठाकुर बनाम ब्राह्मण का रंग लिया।

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