क्या अब नर्म पर पड़ रहे हैं नवजोत सिद्धू? कोटकपूरा फायरिंग मामले में नई SIT जांच को बताया न्यायसंगत
(कोटकपूरा में 2015 में धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी के विरोध में फरीदकोट में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी थी।)
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। अपनी सरकार और सीएम अमरिंदर सिंह पर जबरदस्त हमलावर रहे पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू अब नर्म पड़ते नजर आ रहे हैं। बेअदबी मामले में कोटकपूरा फायरिंग मामले में गठित नई एसआईटी को न्याय की ओर जाता करार दिया है। एसआईटी ने 26 जून को पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल को पूछताछ के लिए तलब किया था। कोटकपूरा फायरिंग मामले में ही पहली बार सिद्धू ने सीएम पर सीधे निशाना साधा था।
इसके बाद विवाद इतना बढ़ गया कि केंद्रीय नेतृत्व को तीन सदस्य कमेटी गठित करनी पड़ी। अभी भी पार्टी के भीतर चल रहा विवाद शांत नहीं हो रहा है। पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव है। इस वजह से पंजाब कांग्रेस में जो चल रहा है, इससे केंद्रीय आलाकमान चिंतित है। आला कमान के सामने समस्या यह है कि न तो सिद्धू चुप हो रहे थे, और उन्हें लेकर सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह भी पीछे हटने को तैयार नहीं है।
कोटकपूरा में 2015 में धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी के विरोध में फरीदकोट में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी थी। मामला तूल पकड़ गया था। उस वक्त गृह विभाग सुखबीर सिंह बादल के पास था।
मामले गठित एसआईटी जिसके मुखिया कुंवर विजय प्रताप सिंह थे, ने इस साल नौ अप्रैल को अपनी रिपोर्ट दी थी, पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। जांच के लिए नई एसआईटी गठित करने के निर्देश भी कोर्ट ने दिए थे। नई एसआईटी ने अब पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल समेत अकाली दल के कई नेताओं को पूछताछ के लिए बुलाया था।
अब जिस तरह से सिद्धू अपना रवैया बदल रहे हैं, इसके सियासी हलको में कई कयास लगाए जा रहे हैं। पंजाब राजनीति की समझ रखने वाले प्रोफेसर बलजीत सिंह विर्क कहते हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू महत्वाकांक्षी नेता है। लेकिन एक पारंपरिक सियासी नेता के खाके में फिट नहीं बैठता। इस वजह से वह अपनी ही पार्टी के लिए परेशानी की वजह बन जाता है। जब सिद्धू भाजपा में था, तब भी उनका यहीं रवैया रहा।
भाजपा में रहते हुए अकाली दल के साथ उन्होंने छत्तीस का आंकड़ा बना कर रखा। कई बार ऐसा लगता है कि वह व्यक्तिगत खुन्नस निकाल रहे हैं। जो कि एक राजनेता के तौर पर सही नहीं मानी जा सकती है। मुद्दे उठाने में कोई दिक्कत नहीं है। दिक्कत तब है, जब मुद्दों पर जबरदस्ती हंगामा मचाया जाए।
अब कांग्रेस में हैं, इस बार भी वह अपना सियासी व्यवहार नहीं बदल रहे हैं। प्रोफेसर विर्क ने कहा कि इसमें शक नहीं कि वह अच्छे वक्ता है। भीड़ को बांध कर रख सकते हैं। फिर भी एक नेता के तौर पर वह बड़े स्तर पर मतदाता को जोड़ने में सक्षम नहीं है।
प्रोफेसर विर्क का यह भी कहना है कि सिद्धू के पास अब ज्यादा विकल्प भी नहीं है। यदि कांग्रेस उन्हें छोड़नी पड़ती है तो आम आदमी पार्टी एक मात्र विकल्प बचता है। विधानसभा चुनाव में जिस तरह से उन्होंने ऐन मौके पर आम आदमी पार्टी को छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था, अब लगता नहीं आम आदमी पार्टी उन पर दांव लगा सकती है। यूं भी किसान आंदोलन ने पंजाब की राजनीति खासी बदल दी है।
आम आदमी पार्टी के पास सिद्धू की बजाय कई किसान नेता है, जो आप के लिए काफी कारगर साबित हो सकते हैं। कुछ किसान नेताओं से आम आदमी पार्टी की बात भी चल रही है। इस तथ्य को सिद्धू समझ रहे हैं। इसलिए वह अब बैकफुट पर आने की कोशिश कर रहे हैं।
पंजाब की राजनीति को 15 साल से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार इंद्रजीत सिंह का मानना है कि कांग्रेस अभी इस स्थिति में नहीं है कि कैप्टन को नाराज कर दें। भले ही कैप्टन को घेरने की कोशिश हो रही हो, लेकिन आखिर में चलेगी कैप्टन की। यह हो सकता है कि सिद्धू और कैप्टन विरोधी खेमा कुछ सीटों पर अपने चहेतों को टिकट दिलवा दें। इससे ज्यादा पंजाब कांग्रेस में कैप्टन विरोधी खेमा कुछ करने की स्थिति में नहीं है।
कांग्रेस में सिद्धू को कैप्टन की पकड़ का भी अंदाजा हो गया, मंत्रिमंडल से इस्तीफे के बाद उन्हें कोई जिम्मेदारी वाला पद न तो सरकार में दिया, न पार्टी में। नवजोत सिंह सिद्धू अब जिस तरह से अपने तेवर बदल रहे हैं, इसके पीछे यहीं सोच है कि उन्हें पता चल गया कैप्टन का विरोध करने पर ज्यादा कुछ हासिल नहीं हो सकता। अब सिद्धू इस कोशिश में है कि जो मामले वह उठा रहे हैं, उन पर कार्यवाही होती रहे। ऐसा होता है तो वह खुद को पंजाब में असरकार नेता के तौर पर स्थापित कर सकते हैं।
इंद्रजीत का कहना है कि सिद्धू के व्यवहार के बारे में एक दम से कुछ भी बोलना सही नहीं है, क्योंकि वह पलटते हुए देर नहीं लगाते। कई बार अपनी ही बात से पलटे हैं, यह भी हो सकता है, उनका नर्म तेवर आगे की किसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। अब यह देखने वाली बात होगी कि वह कब तक अपने मौजूदा तेवर को बरकरार रखते हैं, या फिर पहले कि तरह दो कदम पीछे और चार कदम आगे की बात करेंगे।