(भारत में एनएसओ ग्रुप पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं : केंद्र सरकार)
Pegasus Row : केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Electronics and Information Technology) ने शुक्रवार को संसद को सूचित किया कि उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में एनएसओ ग्रुप (NSO Group) को ब्लैकलिस्ट किया गया है या नहीं। बता दें कि एनएसओ ग्रुप अपने पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus Spyware) के जरिए कथित तौर पर पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं की जासूसी को लेकर वैश्विक विवाद के केंद्र में रहा है।
सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर (Rajiv Chandrashekhar) ने समाजवादी पार्टी के सांसद विशंभर प्रसाद निषाद और चौधरी सुखराम सिंह यादव के एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत में एनएसओ ग्रुप पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
सांसदों ने सवाल पूछा था कि क्या संयुक्त राज्य अमेरिका ने पेगासस स्पाइवेयर प्रदान करने के लिए एनएसओ ग्रुप और कैंडिरू को ब्लैकलिस्ट किया है जिसका इस्तेमाल पत्रकारों, दूतावास के कार्यकर्ताओं और कार्यकर्ताओं को दुर्भावनापूर्ण तरीके से लक्षित करने के लिए किया गया। यदि हां, तो उसका विवरण दें। सांसदों ने यह भी पूछा था कि क्या मंत्रालय ने भारत में एनएसओ ग्रुप प्रतिबंध लगा दिया है, यदि हां तो उससे संबंधित ब्यौरा क्या है और यदि नहीं इसका क्या कारण है?
एनएसओ ग्रुप और कम चर्चिच कैंडिरू को साइबर सर्विलांस मार्किट (Cyber Servilance Market) में प्रतिस्पर्धी माना जाता है, दोनों पर सरकारों को पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की जासूसी करने के लिए स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर प्रदान करने का आरोप लगा था।
सवालों के जवाब में चंद्रशेखर ने कहा, इस मंत्रालय के पास ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। एनएसओ ग्रुप नाम के किसी समूह कोबैन करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
नवंबर माह में अमेरिकी वाणिज्य विभाग ने दो इजरायली स्पाइवेयर कंपनियों को ब्लैकलिस्ट (Black List) कर दिया था, उन्हें उन विदेशी प्रतिष्ठानों की सूची में जोड़ दिया था जो दुर्भावनापूर्ण साइबर एक्टिविटीज में संलिप्त हैं।
इस साल अगस्त में राज्यसभा में सवाल किया गया था कि क्या सरकार ने इजरायल की साइबर सिक्योरिटी फर्म के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया है या नहीं। इस पर केंद्र ने कहा था कि पेगासस का चल रहा मुद्दा विचाराधीन है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कई जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं।
सीपीआई सांसद बिनॉय विश्वम द्वारा पूछे गए सवाल को खारिज कर दिया गया क्योंकि सरकार ने राज्यसभा की प्रक्रिया और आचरण के नियमों (नियम 47 XIX) का हवाला दिया था जो प्रश्वनं की स्वीकार्यता से जुड़ा है।