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राजनीति

पंजाब कांग्रेस: कैप्टन के खिलाफ बागी विधायक मुखर, मामला सुलझाने को आला कमान ने की 3 सदस्य कमेटी गठित

Janjwar Desk
29 May 2021 10:29 AM GMT
पंजाब कांग्रेस: कैप्टन के खिलाफ बागी विधायक मुखर, मामला सुलझाने को आला कमान ने की 3 सदस्य कमेटी गठित
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(पंजाब कांग्रेस में यह विवाद नया नहीं है। विवाद तो तब शुरू हो गया था, जब मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का विभाग सीएम ने बदल दिया था।)

सिद्धू क्यों बागी हो रहे हैं?  क्या एक बार फिर से दल बदल की तैयारी में हैं। भाजपा छोड़ते वक्त उनके आम आदमी पार्टी में जाने की चर्चा थी, अभी भी पंजाब में आम आदमी पार्टी को सिख चेहरे की तलाश...

जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। पंजाब में कांग्रेस में सियासी पारा चढ़ रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ विरोधी खेमा लगातार मजबूत होता जा रहा है। पहले पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू मुखर तेवर अपना रहे थे, लेकिन अब बागी गुट की ताकत बढ़ती जा रही है। कांग्रेस मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने तो यहां तक बोल दिया कि सभी विधायक अपने अपने पद से त्यागपत्र दे दें। बागी गुट में परगट सिंह और सुखजिंदर सिंह रंधावा भी शामिल है।

बागी गुट उस वक्त सक्रिय हुए, जब अगले साल पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस वजह से पार्टी में इस बगावत पर पार्टी आलाकमान भी चिंतित है। मामले की गंभीरता को देखते हुए अब पार्टी आलाकमान ने तीन सदस्य कमेटी गठित की है। इस कमेटी में वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, पार्टी के पंजाब प्रभारी हरीश रावत और जयप्रकाश अग्रवाल हैं।

कमेटी पर जिम्मेदारी है कि वह सभी के साथ तालमेल बनाते हुए स्थिति को संभाले। तीन सदस्य कमेटी ने काम करना शुरू कर दिया है। अब कैप्टन और विरोधी खेमे से बातचीत की जाएगी। उनके विचार जानने के बाद आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा।

पंजाब कांग्रेस में यह विवाद नया नहीं है। विवाद तो तब शुरू हो गया था, जब मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू का विभाग सीएम ने बदल दिया था। इससे नाराज होकर सिद्धू ने 2019 में अपना मंत्री पद छोड़ दिया था।

इस साल कैप्टन और सिद्धू में सुलह भी हो गई थी। लेकिन बाद में फिर दोनों नेताओं में तनातनी बढ़ गई। यह तनातनी इतनी बढ़ गई थी कि एक कैप्टन ने एक बार तो नवजोत सिंह सिद्धू को पटियाला अपने विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की चुनौती तक दे डाली थी।

इसी बीच रही सही कसर सिद्धू के खिलाफ विजिलेंस जांच ने पूरी कर दी। विजिलेंस ने नवजोत सिंह सिद्धू के मंत्रीपद कार्यकाल के दौरान स्थानीय निकायों में कई अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए जांच शुरू कर दी है। इसके बाद सिद्धू के पक्ष में विधायक परगट सिंह समेत कई विधायक आ गए हैं। बागी विधायक लगातार बैठक कर रहे हैं।

पार्टी आलाकमान को जब इस स्थिति का पता चला तो बगावत रोकने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया। बताया यह भी जा रहा है कि बागी कांग्रेस के बागी विधायकों पर भाजपा की भी नजर है। कांग्रेस आला कमान की चिंता की यह भी एक वजह है।

सिद्धू बागी होकर बेअदबी मामला, नशा और माइनिंग को लेकर लगाता अपनी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। पंजाब में अकाली सरकार जाने की भी एक बड़ी वजह यह मुद्दे रहे हैं।

सिद्धू जिस तरह से मामले उठा रहे हैं, इससे निश्चित ही कैप्टन की स्थिति कमजोर होती जा रही है। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि सिद्धू आखिर ऐसा कर ही क्यों रहे हैं। पंजाब के मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार सुखबीर सिंह बाजवा कहते हैं कि सिद्धू राजनीति में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं। उन्हें यह मौका नहीं मिल रहा है। कांग्रेस में कैप्टन के कद के आगे उनका कद छोटा पड़ जाता है। वह कांग्रेस में खुल कर काम नहीं कर पा रहे हैं।

इस वजह से उन्होंने कैप्टन के साथ विवाद किया। इसका परिणाम यह निकला कि उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। हालांकि कई मौकों पर कैप्टन ने सिद्धू को काफी तवज्जो दी, लेकिन इसके बाद भी दोनो के बीच हालात सामान्य नहीं हुए।

सुखबीर बाजवा कहते हैं कि सिद्धू के पास विकल्प है। वह पंजाब के तेज तर्रार नेता माने जाते हैं। लोग भी उनके साथ हैं। आम आदमी पार्टी को सिख चेहरे की तलाश है। नवजोत सिंह इसे विकल्प के तौर पर देख सकते हैं। पंजाब में एक नया दल भी खड़ा होने की कोशिश कर रहा है। इसमें अकाली दल के टूटे कुछ नेता शामिल है। कांग्रेस के यह असंतुष्ट इस खेमे में भी शामिल हो सकते हैं।

क्या सिद्धू भाजपा में जा सकते हैं, इस सवाल पर सुखबीर सिंह बाजवा का मानना है कि शायद ऐसा न हो। क्योंकि भाजपा शायद ही सिद्धू पर दांव लगाए। लेकिन राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन भी नहीं होता। लेकिन फिलहाल ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि भाजपा के लिए पंजाब में ज्यादा गुंजाइश नहीं है। कृषि बिलों की वजह से पंजाब का ग्रामीण मतदाता भाजपा से नाराज है।

शहर में भी भाजपा के पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। आम आदमी पार्टी के प्रति पंजाबी मतदाता का खासा रुझान है। दिक्कत यह है कि उनके पास सिख नेता नहीं है। सिद्धू इस कमी को पूरा कर सकते हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी यह चर्चा जोरो पर थी कि सिद्धू वहां जा सकते हैं। तब वह कांग्रेस में आ गए थे। इस बार ऐसा हो सकता है। इस संभावना पर इंकार नहीं किया जा सकता।

पंजाब की राजनीति के जानकार राकेश शर्मा कहते हैं कि कांग्रेस नेता कैप्टन की अनदेखी नहीं कर सकते। कई ऐसे मौके आए,जब कैप्टन आला कमान के सामने अपनी बात मनवाने में कामयाब रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस की ओर से जो कमेटी गठित की गई है, उसके सामने चुनौती यह है कि कैसे कैप्टन और नवजोत सिंह सिद्धू में तालमेल बैठाया जाए। कमेटी के सामने परेशानी यह भी है कि सिद्धू अकेले नहीं है। इस बार उनके साथ कई विधायक है। इसलिए कमेटी को सोच समझ कर कदम उठाने होंगे। क्योंकि थोड़ी सी चूक पंजाब कांग्रेस को भारी पड़ सकती है।

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