नवजोत सिंह सिद्धू को झटका, अमरिंदर सिंह रहेंगे पंजाब कांग्रेस के कैप्टन
(सिद्धू ने 2015 में बेअदबी मामले समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर सीएम के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है)
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। पंजाब के सियासी हालातों का जायजा ले रही टीम ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर ली है। बताया जा रहा कि कांग्रेस पंजाब मे सीएम अमरिंदर सिंह को बदलने नहीं जा रही है। कमेटी भी ऐसी कोई सिफारिश नहीं करने जा रही है। सुनील जाखड़ को यदि कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद से हटाया जाता है तो कमेटी की सिफारिश हो सकती है कि किसी गैर सिख को ही इस पद पर बैठाया जाए।
इसके पीछे कमेटी की सोच है कि सीएम सिख चेहरा है तो अध्यक्ष गैर सिख होना चाहिए। इससे समाज में जातीय संतुलन बना रहता है। कमेटी ने अभी क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू के बारे में कोई आम राय नहीं बनाई है। हालांकि एक संभावना यह है कि सीएम अमरिंदर के विरोध के बावजूद उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया जाए।
पंजाब कांग्रेस में काफी समय से आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। अगले साल क्योंकि विधानसभा चुनाव है। इस वजह से पार्टी आला कमान पार्टी के भीतर असंतोष को लेकर चिंतित है। इसके निपटारे के लिए पार्टी आला कमान ने पिछले सप्ताह ही राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत और पूर्व सांसद जेपी अग्रवाल की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी।
कमेटी ने असंतुष्ट विधायकों व मंत्रियों के साथ साथ सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कमेटी के सामने पेश हुए थे। कमेटी ने सभी पक्षों को सुन लिया है। अब कमेटी अपनी सिफारिश पार्टी आलाकमान को सौंपने वाली है।
ध्यान रहे पंजाब कांग्रेस में राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के साथ परगट सिंह ने भी मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। सिद्धू के नेतृत्व वाले गुट की मांग है कि सीएम पद से अमरिंदर सिंह को हटाया जाए।
लेकिन कमेटी सिद्धू की इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है। कोशिश यह है कि सिद्धू को किसी तरह से शांत कर लिया जाए। इसके लिए पंजाब कांग्रेस में किसी तरह का बड़ा बदलाव भी न करना पड़े।
सिद्धू ने 2015 में बेअदबी मामले समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर सीएम के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। नौबत यहां तक पहुंच गई थी कि कैप्टन ने सिद्धू को पटियाला से चुनाव लड़ने का चैलेंज कर दिया था। बदले में सिद्धू गुट ने भी कैप्टन पर अकाली दल को बचाने का आरोप लगा दिया था। मामला इतना बढ़ता देख कर पार्टी आलाकमान ने कमेटी का गठन किया है।
पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार दीपक साही ने बताया कि सिद्धू पंजाब की राजनीति में बड़ी भूमिका निभाना चाहते हैं। इसके चलते ही वह भाजपा से कांग्रेस में आए थे। कांग्रेस में कैप्टन के आगे उनकी चल नहीं रही है। यहां तक की सिद्धू को बहुत ही नाटकीय तरीके से मंत्रिमंडल से विदाई भी हो गई थी। तब से लेकर अब तक सिद्धू को पंजाब कांग्रेस या सरकार में बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली है।
सिद्धू लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में माहिर है। वह जब भी कोई मुद्दा उठाते है तो लोग उनकी बात सुनते हैं। इस बार उनकी यह खूबी भी चल नहीं पा रही है। क्योंकि कैप्टन की पार्टी के अंदर और सरकार में जबरदस्त पकड़ है। कैप्टन ने कमेटी के सामने पेश होने से पहले ही सुबे की पंजाब एकता पार्टी के प्रधान सुखपाल खैरा समेत आम आदमी पार्टी के एमएलए जगदेव सिंह कमालू और भदौड़ के आप विधायक पिरमल सिंह धौला को कांग्रेस ज्वाइन करा लिया।
इसके पीछे कैप्टन ने बहुत सधी सियासी चाल चली। इससे बागी कांग्रेसियों खासतौर पर नवजोत सिंह सिद्धू के गुट को एक संदेश देने की कोशिश की है। दीपक साही ने बताया कि कमेटी भी कैप्टन के इस पद से हैरान थी, और यह भी एक वजह है कि कमेटी ने कैप्टन की बातों को हलके में नहीं लिया। दूसरी वजह यह भी है कि कांग्रेस इस वक्त कैप्टन से नाराजगी लेने की स्थिति में नहीं है।
अब जबकि चुनाव में कुछ माह रह गए हैं, ऐसे में पंजाब में किसी भी तरह के बदलाव से पार्टी को नुकसान हो सकता है।
कमेटी का यह रुख सिद्धू के लिए भी झटका माना जा रहा है। क्योंकि अब उनके सामने दो ही रास्ते हैं। या तो वह चुपचाप कांग्रेस के साथ काम करते रहे, या एक बार फिर से किसी दूसरी पार्टी में अपने लिए संभावना तलाश ले।
विधानसभा चुनाव को लेकर इस वक्त जो समीकरण बन रहे हैं, वह फिलहाल कांग्रेस के पक्ष में बनते नजर आ रहे हैं। इसलिए सिद्धू के सामने जो विकल्प है, इन पर अमल करना भी आसान नहीं है। यदि कांग्रेस छोड़ते हैं तो दूसरी पार्टी आम आदमी बचती है। आम आदमी उन्हें इतनी तवज्जो दे,जितना सिद्धू चाहते हैं, इसमें संशय है। कांग्रेस में आने से पहले भी सिद्धू के आम आदमी पार्टी में जाने की अटकलें थी, लेकिन लंबी जद्दोजहद के बाद नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस में आ गए थे। बहरहाल आक्रामक नेता की छवि वाले नवजोत सिंह सिद्धू के लिए इस बार मुश्किल वक्त है। भाजपा छोड़ते वक्त उनका जिस तरह से स्वागत हो रहा था, इस बार यदि वह कांग्रेस छोड़ते हैं तो उन्हें इतनी तवज्जो मिलेगी। इस तथ्य को वह जानते हैं। इसलिए ऐसा हो सकता है कि वक्त को देखते हुए फिलहाल वह चुप होने में ही अपनी भलाई समझे।