मुलायम सिंह यादव को कान पकड़कर उठक-बैठक करवाने का नतीजा था मायावती के साथ हुआ गेस्ट हाउस कांड
जनज्वार ब्यूरो, लखनऊ। 1977 में जब मुलायम सिंह यादव पहली बार मंत्री बने तो सरकार जनता पार्टी की थी। तब जनता पार्टी में जनसंघ धड़ा भी शामिल था। मुलायम सहकारिता मंत्री थे, कल्याण सिंह स्वास्थ्य मंत्री तो रामनरेश यादव मुख्यमंत्री। इसके बाद सेक्यूलर मुलायम सिंह यादव पहली बार भाजपा के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन बिहार में आडवाणी की रथ यात्रा रोकने और गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गिर गई।
वरिष्ठ उपन्यासकार दयानंद पाण्डेय कहते हैं कि उन दिनो सेक्यूलर फ़ोर्स के ठेकेदार वामपंथी और भाजपा दोनों विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार को समर्थन देने में एक साथ थे। यह जनता दल की सरकार थी। मुलायम सिंह भी जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री थे। जब भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो जनता दल टूट गया और कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। जबकि उत्तर प्रदेश में मुलायम सरकार से भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो कांग्रेस ने मुलायम को समर्थन दे कर मुलायम सरकार को गिरने से बचा लिया था।
अयोध्या में कार सेवकों पर मुलायम सरकार द्वारा गोली चलवाने का परिणाम यह हुआ कि अगले चुनाव में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बन गई। बाबरी ढांचा गिरने के बाद कल्याण सरकार बर्खास्त हो गई। फिर अगले चुनाव में भाजपा को हराने के लिए सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और मिलकर सरकार भी बनाई। इस चुनाव में 265 सीट पर सपा लड़ी और 164 सीट पर बसपा। 109 सीट सपा ने जीती, 67 सीट पर बसपा काबिज हुई। मुलायम दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। 'तिलक, तराजू और तलवार, इन को मारो जूते चार' के वह दिन थे और 'मुलायम, कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम' जैसे नारों का समय।
दयानंद पाण्डेय आगे बताते हैं कि तब बतौर मुख्यमंत्री मुलायम की हालत आज के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से भी गई गुज़री थी। कांशीराम और मायावती ने मुलायम सरकार को लगभग बंधक बना कर रखा हुआ था। न सिर्फ़ बंधक बना कर रखा, ब्लैकमेल भी करते रहे। हर महीने वसूली का टारगेट भी था। मायावती हर महीने आतीं। मुलायम को हड़कातीं और करोड़ो रुपए वसूल कर ले जातीं। मुलायम लगभग मुर्गा बने रहते कांशीराम और मायावती के आगे। मुलायम ने हार कर मायावती को उप मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा। लेकिन मायावती को यह मंज़ूर नहीं था। वह मुख्यमंत्री बनना चाहती थीं। मुलायम इस पर राजी नहीं थे। सरकार किसी तरह चल रही थी।
उन दिनों कांशीराम और मायावती लखनऊ आते तो स्टेट गेस्ट हाऊस में ठहरते थे। जिस कमरे में वह चुने हुए लोगों से मिलते थे, उस कमरे में सिर्फ एक मेज और दो कुर्सी होती थी। जिस पर क्रमशः कांशीराम और मायावती बैठते थे। फिर जो भी आता वह खड़े-खड़े ही बात करता। बात क्या करता था, सिर्फ़ बात सुनता था और चला जाता था। तब के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के लिए भी यही व्यवस्था थी। वह भी खड़े-खड़े ही बात सुनते थे। बैठने को कुर्सी मुलायम को भी नहीं मिलती।
मुलायम इस बात पर खासे आहत रहते। पर मायावती की यह सामंती ठसक बनी रही। सुनते हैं मुलायम ने एक बार अपने बैठने के लिए कुर्सी की बात की तो मायावती ने कहा कि मुख्यमंत्री की कुर्सी क्या कम पड़ रही है, बैठने के लिए। मुलायम चुप रह गए थे। बाद में मायावती के वसूली अभियान में मुलायम ने कुछ ब्रेक लगाई और कहा कि हर महीने इतना मुमकिन नहीं है। तो मायावती ने सरकार से समर्थन वापसी की धमकी दे डाली। मुलायम ने फिर मांग पूरी करनी शुरू कर दी।
लेकिन तब के दिनों जब भी मायावती और कांशीराम लखनऊ आते तो मुलयम सरकार बचेगी कि जाएगी, की चर्चा सत्ता गलियारों और प्रेस में आम हो जाती। सरकार में हर काम के हिसाब-किताब के लिए कांशीराम ने आज के कांग्रेस नेता व तब के आईएएस पीएल पुनिया को मुलायम का सचिव बनवा रखा था। अपनी पार्टी के मंत्रियों को मलाईदार विभाग दिलवा रखे थे। तो मुलायम की नाकेबंदी पूरी थी। ऐसी ही किसी यात्रा में मायावती और कांशीराम लखनऊ आए।
हमेशा की तरह मुलायम को तलब किया, गेस्ट हाऊस में। मुलायम खड़े-खड़े बात सुनते रहे। डांट-डपट हुई। जाने किस बात पर मुलायम को कान पकड़-कर उठक-बैठक भी करनी पड़ी। मायावती ने मुलायम के इस उठक-बैठक की चुपके से फोटो भी खिंचवा ली और 'दैनिक जागरण' में यह फ़ोटो छपवा दी। फ़ोटो ऐसी थी कि कुर्सी पर कांशीराम और मायावती बैठे हुए है और मेज के सामने मुलायम कान पकड़े झुके हुए हैं। अख़बार में यह फ़ोटो छपते ही हंगामा हो गया। जो लाजिमी था।
मुलायम सरकार से समर्थन वापसी की चर्चा पहले से गरम थी। इस चक्कर में ज़ी न्यूज़ की टीम संयोग से स्टेट गेस्ट हाऊस में पहले ही से उपस्थित थी। लेकिन सपाईयों को टीवी कैमरा या प्रेस की परवाह कतई नहीं थी। उन्हें अपने टारगेट की परवाह थी। टारगेट था मायावती के साथ बलात्कार और फिर उनकी हत्या। भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी भी संयोग से गेस्ट हाऊस में उपस्थित थे। वह पहलवान भी थे। मायावती की रक्षा में खड़े हो गए। सपाईयों को एकतरफ धकेल कर मायावती को गेस्ट हाऊस के एक कमरे में बंद कर सुरक्षित कर दिया।
यह 2 जून, 1995 की सुबह थी। सपाईयों ने कमरे का दरवाज़ा तोड़ने का बहुत प्रयास किया। लखनऊ पुलिस सपाईयों के समर्थन में थी। लेकिन मायावती ने भी भीतर से युक्ति की। कमरे के दरवाज़े पर सोफा, मेज वगैरह खींच कर लगा दिया था। गैस के सिलिंडर में आग लगा कर मायावती को जलाने की भी कोशिश की गई। सपाईयों ने मायावती के कमरे के फोन के तार भी काट दिए। उन दिनों मोबाइल नहीं था पर पेजर आ गया था। मायावती ने पेजर के जरिए बाहर की दुनिया से संपर्क बनाए रखा।
उसी दिन संसद में यह मामला उठाकर अटल बिहारी वाजपेयी ने मायावती को सुरक्षा दिलवा दी। लेकिन मायावती उस दिन कमरे से बाहर नहीं निकलीं। रात में भी उन को गाली-वाली दी जाती रही। बहरहाल मायावती जब दो दिन बाद निकलीं तो मुलायम सरकार से समर्थन वापसी के ऐलान के साथ ही। अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा का समर्थन देकर मायावती को मुख्यमंत्री बनवा दिया था। उपन्यासकार पाण्डेय कहते हैं कि, किस्से इस बाबत और भी बहुतेरे हैं।