यूपी में लिखी जाने लगी योगी के रवानगी की पटकथा, लेकिन क्या इतनी आसानी से आदित्य हो जाएंगे अनाथ?
(योगी से केवल पत्रकार ही नहीं, विधायक और मंत्री भी नाराज हैं।)
जनज्वार, लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनिती में जिस योगी को कभी संघ के, भविष्य के प्रधानमंत्री वाले चेहरे के रूप में देखा जा रहा था, अब उनकी रवानगी की पटकथा लिखी जानी शुरू हो गई है। इस पटकथा का पटाक्षेप 4 जून तक हो सकना संभावित है। जिसका बहाना यूपी में कोरोना से हुई मौतें और पंचायत चुनाव के मोर्चे पर सरकार की जबरदस्त नाकामी बना है।
निशाना आदत के मुताबिक, विकल्प की किसी भी संभावना को हमेशा के लिए दफन करना है। ठीक वैसे ही जैसे बेटे के बहाने राजनाथ की या कोऑपरेटिव घोटाले की आड़ में गडकरी की कथा लिखी गई।
दत्तात्रेय होसबोले, अमित शाह, नरेंद्र मोदी ना सिर्फ एक सुर में गा रहे हैं बल्कि तीनो प्रमुख भूमिका में भी है। संगठन मंत्री सुनील बंसल, संघ के चेहरे अनिल सिंह, सहयोगी की भूमिका में हैं, और गुजरात के डर से एक पूर्व ब्यूरोक्रेट और अब राजनीतिज्ञ, अतिथि भूमिका में।
सूत्र बताते हैं कि अमित शाह, फोन पर योगी की गोली छाप बोली का भरपूर स्वाद चख चुके हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि दूरभाष वार्ता में मौतों की जिम्मेदारी का सवाल भी आया। मंद सप्तक से शुरू हुई वार्ता तार सप्तक तक पहुंची। यही नहीं त्यागपत्र देने की सलाह भी उसी अंदाज में 'बूमरैंग' की तर्ज पर लौटा दी गई। इस घटनाक्रम के चलते विदाई की संभावना और बलवती हो गई है।
दिल्ली से लखनऊ तक ,बैठकों का दौर चल रहे है। शुक्रवार को भी एक निर्णायक बैठक होने की खबर है। दिल्ली का खेल तो योगी भी समझ चुके हैं। मीडिया को साध कर 'छवि सुधारो आंदोलन' भी शुरू हो गया है। यूपी दौरा और चैनलों पर लगातार प्रसारण, उसी का परिणाम है।
इस सारी उठापटक के एक अहम किरदार, योगी के एक करीबी नौकरशाह भी हैं। यूपी में ऑक्सीजन टैंकर रोके जाने के मामले में, मध्य प्रदेश के मुखिया, नौकरशाहों से योगी के इस करीबी बाबू के रवैए पर, खुद पीएम मोदी भी योगी से नाराजगी जता चुके हैं। कई मंत्रियों और विधायकों की नाराजगी का कारण भी यही नौकरशाह बताए जा रहे हैं।
बदलाव ना भी हो तो भी इस पूरे घटनाक्रम से गुजरात कैडर के एक पूर्व नौकरशाह की चांदी होना तय है। मोदी शाह के करीबी आईएएस रहे अरविंद कुमार शर्मा, अब यूपी विधान परिषद सदस्य हैं। वे प्रमुख भूमिका में नजर आएंगे। आश्चर्य नहीं कि डिप्टी सीएम के रूप में भी।
मतलब एक तीर से दो निशाने। एक तीर से योगी पर लगाम की कवायद, दूसरा लगे हाथ योगी से नाराज चल रहे ब्राह्मण बिरादरी को साधने की जुगत भी। "जातिगत समीकरण" के इस तीर की काट, योगी के खैरख्वाहों के लिए भी मुश्किल है।
अब कुर्सी बचने के रास्ते सीमित हैं। या तो कोई अप्रत्याशित गॉडफादर बन कर बचा ले जाए या लाभ-हानि के गुणा भाग में बदलाव के बजाय कोई बीच के रास्ते पर सहमति बन जाए।
नौकरशाही पर निर्भरता के कारण विधायक मंत्रियों में बढ़े असंतोष और कोरोना ने बेशक उन्हें कमजोर किया है। लेकिन योगी आदित्यनाथ इतने कमजोर भी नहीं है कि उन्हें सत्ता से, इतनी आसानी से अनाथ किया जा सके।
डिस्क्लेमर : यह लेख वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह बघेल का है.राजनैतिक परिघटना में उतार-चढ़ाव को लेकर जनज्वार की राय अलग हो सकती है.