उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमे की बदहाल तस्वीर : मुखिया शैलजा भट्ट को ही भरोसा नहीं अपने महकमे पर, जख्मी हुई तो पहुंची मैक्स हाॅस्पिटल
उत्तराखंड के स्वास्थ्य महकमे की बदहाल तस्वीर : मुखिया शैलजा भट्ट को ही भरोसा नहीं अपने महकमे पर, जख्मी हुई तो पहुंची मैक्स हाॅस्पिटल
Dehradun news : उत्तराखंड की बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं की बात इस प्रदेश के बनने से पहले से ही होती रही है। सोशल मीडिया का दौर चरम पर होने के समय तो शायद ही कोई ऐसा सप्ताह बीतता हो जो इंसानियत को शर्मसार करने वाला कोई वीडियो सामने न आता हो। पिता की गोद में दम तोड़ते मासूम बच्चों की तस्वीरें हों या दर्द से कराहती महिलाओं की मर्मातंक चीखें, सत्ताधीशों को किसी ने आहत नहीं किया। इतनी बुरी दुर्दशा के बाद भी कुछ लोग हैं जिनकी उम्मीदें अभी व्यवस्था में बची हैं। लेकिन अब एक जो खबर प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे से आ रही है, बताती है कि जिस महकमे से लोगों को उम्मीद है, उसी महकमे के मुखिया को अपने ही महकमे से कोई उम्मीद नहीं है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का 48वां जन्मदिन 16 सितंबर को मनाते हुए जहां प्रदेश को नंबर एक बनाने के गीत गाए जा रहे थे, उसी दिन स्वास्थ्य महकमे की सर्वोच्च अधिकारी महानिदेशक डॉ. शैलजा भट्ट वॉकिंग के दौरान किसी गाड़ी की चपेट में आने से जख्मी हो गई थी। जिला अस्पताल में जांच करने पर उनके पैर में फ्रेक्चर की पुष्टि हुई। कच्चा प्लास्टर चढ़ाए जाने के बाद उन्हें ऑपरेशन बताया गया, लेकिन श्रीमती भट्ट ने मामूली से इस ऑपरेशन के लिए अपने महकमे के किसी अस्पताल को इस लायक नहीं समझा जहां वह अपने पैर का ऑपरेशन करा सकें। नतीजन दोपहर बाद ही वह अपने इलाज के लिए एक शानदार निजी अस्पताल मैक्स की शरण में पहुंच गई।
यह सब कुछ उसी देहरादून में हुआ, जहां पर्वतीय क्षेत्रों के मुकाबले स्वास्थ्य सुविधाओं का चरम बताया जाता है, लेकिन विभाग की सर्वोच्च अधिकारी भी अपने अस्पतालों और वहां की सुविधाओं का अंदरूनी सच जानती थीं। लिहाजा उन्होंने निजी अस्पताल में ही अपना इलाज कराया जाना बेहतर समझा। हालांकि अधिकारी अपना इलाज कहां करा रही हैं, इसका महत्त्व ज्यादा नहीं है, लेकिन सबसे बड़ी अधिकारी होने के बाद भी अगर निजी अस्पताल की ही शरण लेनी पड़ी है तो यह प्रदेश की बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं पर पक्की मुहर का प्रतीक है, जिसके बाद कुछ कहने की संभावना ही नहीं रह जाती।
प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला ने डीजी हेल्थ द्वारा अपना इलाज निजी चिकित्सालय में कराए जाने पर अपनी क्षोभ व व्यंग्यात्मक टिप्पणी में लिखा है कि अब बहस हो रही है कि वह इलाज कराने सरकारी अस्पताल की जगह मैक्स में क्यों चली गयी। दो बातें हैं, पहली स्टेट्स की। लोग इसी बहाने तो हाल-चाल पूछने आते हैं। कोरोनेशन या दून अस्पताल की टूटी-फूटी पान की पीकयुक्त दीवारें दिखाती या उस जंग लगे बेड को दिखाती कि जिसका चक्का चलाने के बावजूद बेड टस से मस नहीं होता। ऊपर से शौचालय से आती भंयकर बदबू। मैक्स साफ सुथरा है और उनके स्टेट्स के अनुकूल है। दूसरी बात विश्वास की है। कई डाक्टर तबादले और प्रमोशन के चक्कर में हैं। एक डाक्टर ने तो हाल में तबादले के लिए माइक टाइसन की तर्ज पर मरीज की उंगली चबा डाली। तब जाकर उत्तरकाशी से देहरादून तबादला हुआ। ऐसे में डीजी हेल्थ मैम की सुरक्षा जरूरी थी। सरकारी डाक्टरों का क्या है, तबादले या प्रमोशन के लिए हड्डी लेफ्ट की टूटी हो और सर्जरी कर दे राइट की । आखिर मैक्स के डाक्टर नीट में 720 में से 400 नंबर लाने वाले ठहरे और सरकारी डाक्टर 600 नंबर लाने वाले। इस देश में लायकों की कद्र ही कहां है ? इसलिए कोई कुछ भी कहे, मैं डीजी हेल्थ मैम के फैसले पर सहमत हूं कि मैक्स में इलाज के लिए गयी।