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राजनीति

Uttarakhand Election 2022 : राष्ट्रपति शासन की आहट तो नहीं उत्तराखण्ड का नाईट कर्फ्यू ?

Janjwar Desk
28 Dec 2021 12:38 PM GMT
Uttarakhand Election 2022 : राष्ट्रपति शासन की आहट तो नहीं उत्तराखण्ड का नाईट कर्फ्यू ?
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Uttarakhand Election 2022 : विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए इस समय कमोवेश वैसी ही स्थिति है, जैसी इससे पहले की (भाजपा-कांग्रेस दोनो की) सरकारों की रही हैं....

सलीम मलिक की रिपोर्ट

Uttarakhand Election 2022 : उत्तराखण्ड का पर्वतीय हिस्सा रात को कभी गुलजार नहीं रहता। सर्दी छोड़िए, गर्मी में भी शाम होते-होते यहां का जनजीवन सिमटने लगता है जो कि सुबह तड़के ही अपनी रौनक पकड़ लेता है। लेकिन दिसम्बर की ऐसी कड़कड़ाती ठण्ड जिसमें पहाड़ तो क्या राज्य का मैदानी इलाका भी रात को घरों में दुबके रहने को मजबूर है तो सरकार (Govt Of Uttarakhand) के लगाए गए नाईट कर्फ्यू के कोरोना से अलग क्या कुछ और भी निहितार्थ हो सकते हैं ?

यह सवाल सरकार द्वारा राज्य में कोरोना (Covid 19) संक्रमण की रोकथाम के नाम पर लगाये गए नाईट कर्फ्यू (Night Curfew) के साथ ही उठने लगा है। साफ-साफ कहा जाए तो राजनैतिक हल्के में इसे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सम्भावनाओं के तौर पर भी देखा जा रहा है।

विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी (BJP) की सरकार के लिए इस समय कमोवेश वैसी ही स्थिति है, जैसी इससे पहले की (भाजपा-कांग्रेस दोनो की) सरकारों की रही हैं। न उनके पास कोई उपलब्धि थी न इनके पास। अभी तक राज्य में जो भी सरकारें रहीं, सब एक ही ढर्रे पर रहीं। भाजपा सरकार रही हो या कांग्रेस, दोनो के ही पास चुनाव की पूर्व संध्या पर अपनी कोई ऐसी उपलब्धि नहीं रही, जिसके बल पर सरकार पुनः सत्ता में वापसी करती। न राज्य के विकास का कोई रोडमैप न ही कोई नीति और न ही कोई नया विजन।

ऐसे में जनता के सामने सरकार बदलकर देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। यही वजह है कि राज्य बनने के बाद राजकाज भले ही भाजपा-कांग्रेस ने संभाला हो। लेकिन सत्ता किसी की रिपीट नहीं हुई। पुनः सत्ता हासिल करने के लिए पांच साल विपक्ष में बैठना दोनो दलों के लिए आवश्यक शर्त जैसी बन गई।

लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से भी कमतर साबित हुई है। चुनाव में जाने लायक तो कोई खास उपलब्धि तो खैर इसके पास है नही। उल्टे तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी "खाया पिया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा दो रुपये का" सरीखी हास्यापद हो रही है। मगर वर्तमान सरकार को अपनी पूर्ववर्ती सरकार से अलग हटकर एक ऐसी सुविधा मोदी-शाह की जोड़ी के रूप में हासिल है, जो पहले की भाजपा सरकार के पास नहीं थी।

हर हाल में सत्ता अपने पास रखने की मोदी-शाह की नीति से अपने लिए ऊर्जा ले रही वर्तमान भाजपा सरकार ने इसीलिए अपने कार्यकर्ताओं को अचीव करने के लिए सिक्सटी प्लस जैसा कठिन टारगेट दिया हुआ है। लेकिन मुश्किल यह है कि पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत के बाद भी सरल तरीके से पार्टी को सत्ता वापसी की संभावनाएं दूर-दूर तक नहीं दिख रहीं। हर दिन का अस्त होता सूर्य सत्ताधारी पार्टी की संभावनाओं को क्षीण कर रहा है। पार्टी के बड़े नेताओं की बैचेनी और जगह-जगह पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा अन्य दलों में अपनी जगह बनाना, भाजपा की इसी कमजोरी की साफ-साफ चुगली कर रहा है, जो पार्टी कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास डगमगा रहा है।

ऐसे में उत्तर प्रदेश के बाद उत्तराखंड में लगे इस नाईट कर्फ्यू को चुनावी कदमो को रोकने की आहट समझा जा रहा है। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की आशंका भी बढ़ रही है। कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार एंटी इनकंबेंसी फैक्टर से बचने के लिए उत्तराखंड विधानसभा चुनाव लटकाना चाहती है। जिसके लिए वह प्रदेश में कुछ समय के राष्ट्रपति शासन को अपने लिए अनुकूल मान रही है।

यदि प्रदेश राष्ट्रपति शासन के हवाले हो गया तो केन्द्र में खुद भाजपा सरकार होने के नाते राष्ट्रपति शासन अप्रत्यक्ष तौर पर किसके हित में होगा, यह समझना मुश्किल नहीं है। अपने इस कदम से सरकार जहां एन्टी इनकंबेंसी फैक्टर की धार को कुछ कुंद कर सकने के समय ले सकती है तो वह अपने आप को जनता के स्वास्थ्य के लिए फिक्रमंद भी साबित भी कर सकती है।

वैसे प्रदेश में चुनाव आयोग की टीम लगातार चुनावी तैयारियों का जायजा ले रही है। चुनाव पूर्व होने वाले अधिकारियों के तबादले भी बदस्तूर हो ही रहे हैं। सरकारी अफसर भी चुनावी मोड में आ चुके हैं। लेकिन उत्तराखण्ड जैसे भौगोलिक परिस्थिति वाले राज्य में कड़कड़ाती ठण्ड के बीच रात ग्यारह बजे से सुबह पांच बजे तक नाईट कर्फ्यू का दिलचस्प आदेश प्रदेश की चुनावी तैयारियों के बीच खासा अजीब नज़ारा पेश कर रहा है।

उस पर केन्द्र में बैठी मोदी-शाह की जोड़ी, जिसके बारे में माना जाता है कि वह हारी हुई बाजी को भी पलटने की महारत रखते हैं। ऐसी ही मौजूदा परिस्थितियों में इस आदेश के तार राष्ट्रपति शासन की संभावनाओं तक से जोड़े जाने लगे हैं।

ऐसा नही है कि विपक्ष इन संभावनाओं पर गौर नहीं कर रहा है। विपक्ष सरकार के इरादों को भांप कर सधे शब्दों में कर्फ्यू लगाने का समर्थन तो कर रहा है लेकिन चुनाव समय पर चाहता है। कांग्रेस नेता हरीश रावत के साथ ही कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने भी समय के साथ चुनाव कराने की मांग है।

कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत सिंह रावत के अनुसार हर मोर्चे पर फेल सरकार अब कितना भी षड्यंत्र कर ले, जनता इसे सत्ता से बेदखल करके ही मानेगी। उन्होंने प्रदेश में कोरोना के प्रति सजगता बढ़ाने के साथ तय समय पर चुनाव कराने की मांग करते हुए कहा कि इस सरकार को लोगों के स्वास्थ्य या उनकी जान की परवाह कतई नहीं है। कोरोना प्रोटोकॉल के नाम पर पहले भी भाजपा की केन्द्र सरकार ने जनता की मदद न करने के लिए विपक्ष के हाथ बांधने का ही काम किया है।

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