भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर पोस्ट करने वाले प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद हुए गिरफ़्तार तो RJD सांसद मनोज झा ने उठाये सवाल

Ashoka University professor Ali Khan Mahmudabad arrested : भारत-पाकिस्तान संघर्ष को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने वाले हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबाद को गिरफ्तार किया गया है। प्रोफेसर अली खान ने कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह से प्रेस ब्रीफ़िंग कराने को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट लिखा था।
प्रोफेसर अली खान को हरियाणा की सोनीपत पुलिस ने स्थानीय निवासी योगेश की शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया है। हरियाणा पुलिस ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान के ख़िलाफ़ दो समुदायों में नफ़रत भड़काने की धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया है। प्रोफेसर अली खान की पत्नी ने मीडिया को जानकारी दी कि आज रविवार 18 मई की सुबह क़रीब साढ़े छह बजे पुलिस उनके घर पहुंची और प्रोफ़ेसर अली ख़ान को अपने साथ ले गई।
प्रोफेसर अली खान पर गिरफ्तारी का विरोध करते हुए राजद सांसद मनोज कुमार झा ने सोशल मीडिया पर लिखा है, 'कर्नल सोफिया कुरैशी पर अभद्र टिप्पणी करने वाले भाजपाई नेता पर नहीं कोई सवाल, मगर एक भाजपा नेता कर्नल सोफिया कुरैशी को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर बदनाम करता है और उसकी पार्टी उसे डाँटने तक की ज़हमत नहीं उठाती। उल्टा, सुप्रीम कोर्ट में अपने वकीलों के ज़रिए उसका बचाव करती है। दूसरी तरफ़, अकादमिक अली खान महमूदाबाद को सिर्फ़ इसलिए गिरफ़्तार कर लिया जाता है क्योंकि उन्होंने कर्नल कुरैशी का उल्लेख करते हुए इस बात की सराहना की थी कि भारत ने अपने नागरिकों की सुरक्षा—और इसी के माध्यम से अपनी संप्रभुता—पर हमले की स्थिति में मुसलमानों को भी अपनी राष्ट्रीय प्रतिक्रिया में शामिल किया। उनका 'अपराध' क्या है? यही कि उन्होंने एक क़दम आगे बढ़ते हुए यह सवाल उठाया कि भारतीय मुसलमान नागरिकों की रोज़मर्रा की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।'
राजद सांसद कहते हैं, 'जिस तेज़ी और आक्रामकता से उन्होंने अली महमूदाबाद को चुप कराना चाहा, वह खुद इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने भाजपा की दोहरी नीति को सही उजागर किया। भाजपा को इस विडंबना से फर्क पड़ेगा, ऐसी उम्मीद करना बेकार ही है। अतः हमें यह सामूहिक रूप से सोचना ही होगा लोकतंत्र केवल बयानबाजी नहीं हो सकता, बल्कि सभी नागरिकों के लिए एक जीवंत वास्तविकता होनी चाहिए क्योंकि इसकी वैधता और प्रभावशीलता वास्तविक भागीदारी, समावेशिता और न्याय पर निर्भर करती है। केवल बयानबाजी-भाषण, वादे और नारे—से यह दावा किया जा सकता है कि सभी समान हैं, लेकिन जब तक नागरिक दैनिक जीवन में उस समानता का अनुभव नहीं करते, लोकतंत्र एक खोखली प्रणाली बनकर रह जाती है।'
बकौल मनोज कुमार झा, 'देश में निश्चित समय सीमा पर चुनाव का होना लेकिन अल्पसंख्यकों, गरीबों या हाशिये के अन्य समूहों की आवाज को दबाकर रखना अगर परंपरा बन जाए तो फिर आभासी लोकतंत्र है, लेकिन मूल रूप से नहीं। लोग लोकतंत्र का समर्थन तब करते हैं जब वे इसे काम करते देखते हैं—जब उनकी आवाज सुनी जाती है और नीतियां उनके जीवन को बेहतर बनाती हैं। अगर लोकतांत्रिक मूल्य सिर्फ शब्द बनकर रह जाते हैं, जबकि नागरिक अन्याय या बहिष्कार का सामना करते हैं, तो भरोसा खत्म हो जाता है। इस भरोसे के खात्मे से क्या क्या हो सकता है ये हमने इतिहास के पन्नों में दर्ज देखा है।'