क्या चुनाव से पहले टूट जाएगी पंजाब कांग्रेस? सिद्धू हुए नरम तो अब राजा वडिंग ने खोला सरकार के खिलाफ मोर्चा
(राजा वडिंग ने अपनी ही सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा, पार्टी हाईकमान से की शिकायत)
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। ऐसा लग रहा है कि पंजाब कांग्रेस (Punjab Congress) में किसी भी वक्त बड़ा धमका हो सकता है। क्योंकि जिस तरह से हालात बन रहे हैं,इससे यह आशंका और ज्यादा मजबूत हो रही है। अभी पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के मुखर तेवर शांत भी नहीं हुए थे कि कांग्रेस के एक दूसरे विधायक राजा वडिंग (Raja Vading) ने अपनी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
उन्होंने राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और पार्टी आलाकमान को शिकायत की कि वित्त मंत्री मनप्रीत बादल (Manpreet Badal) अकाली दल (Akali Dal) के लोगों को वित्तीय लाभ दे रहे हैं। विधायक ने वित्त मंत्री के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की मांग भी की है।
वित्त मंत्री ने पिछले दिनों कुछ चेक बांटे थे, विधायक का आरोप है कि चेक लेने वालों में अकाली दल के समर्थक भी शामिल है। इससे यह लगता है कि वित्त मंत्री अकाली दल के समर्थकों को मजबूत कर कांग्रेस को कमजोर करने का काम कर रहे हैं।
मनप्रीत बादल पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के भतीजे हैं। वह एक समय अकाली दल में काफी पावरफुल मानते जाते थे। बाद में उनकी सुखबीर बादल से अनबन हो गई। इस वजह से उन्होंने अकाली दल छोड़ कर अपनी अलग पार्टी पंजाब पीपुल्स पार्टी बना ली थी।
उनकी पार्टी ने पंजाब में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था। उन्हें तब पांच प्रतिशत वोट मिले थे। बाद में पिछले विधानसभा चुनाव से पहले मनप्रीत बादल ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया था। चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी। मनप्रीत बादल सीएम के कैप्टन अमरिंदर सिंह के नजदीक माने जाते हैं। उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया था। तब से लेकर अभी तक उनकी कैप्टन के साथ अच्छा तालमेल है।
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं कांग्रेस में विवाद बढ़ रहा है
सिद्धू और कैप्टन विवाद बेअदबी कांड, माइनिंग और नशे को लेकर सिद्धू कैप्टन अमरिंदर सिंह की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते रहे हैं। इसे लेकर सिद्धू ने सार्वजनिक मंचों से कैप्टन की आलोचना की है। कैप्टन और सिद्धू के बीच विवाद इतना बढ़ गया था कि केंद्रीय आलाकमान को कमेटी गठित कर इस विवाद का हल खोजने की नौबत आ गई थी। कमेटी ने हालांकि इस विवाद के हल का एक फार्मूला तैयार किया है। इस पर अभी काम किया जाना है। इस फार्मूले के तहत सिद्धू को चुनाव प्रचार कमेटी का मुखिया या फिर इसी तरह के किसी पद पर एडजस्ट किया जा सकता है।
प्रदेशाध्यक्ष जाखड़ ने उठाया था कैप्टन पर सवाल
कैप्टन कैबिनेट ने दो विधायकों के बेटों को सरकारी नौकरी देने का प्रस्ताव पास किया था। विधायक राकेश पांडे के बेटे को डायरेक्टर नायब तहसीलदार और विधायक फतेहजंग सिंह बाजवा के बेटे को पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर नौकरी दी जानी थी। इस प्रस्ताव पर कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष ने सवाल उठा दिया था। यह विवाद भी खासा सुर्खियों में रहा था। विवाद बढ़ता देख कर एक विधायक बाजवा ने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया था।
विवाद की वजह क्या है?
पूर्व प्रोफेसर सज्जन सिंह बाजवा का कहना है कि कुछ कांग्रेसी सीएम की कुर्सी पर खुद को देखना चाहते है। पिछले विधानसभा चुनाव में कैप्टन ने यह भी बोला था कि यह उनका आखिरी चुनाव होगा। लेकिन अब कैप्टन के नेतृत्व में इस बार का विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी हो रही है। इसलिए एक खेमा दिक्कत में हैं। सिद्धू की दिक्कत यह है कि वह खुद को सुर्खियों में बनाए रखने के लिए विवाद खड़ा करते रहते हैं।
प्रोफेसर सिंह ने बताया कि कांग्रेसियों को लग रहा है कि वह इस बार का चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। इसलिए वह कैप्टन को कमजोर कर खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। वह ऐसा कर खुद के लिए और पार्टी के लिए दिक्कत पैदा कर रहे हैं। क्योंकि सियासी स्थिति कांग्रेस के इतने भी हक में नहीं है। इस वक्त आम आदमी पार्टी का पंजाब में ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। मतदाता बदलाव चाह रहे हैं। उनके पास विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी है। कांग्रेसी इस तथ्य को समझ नहीं पा रहे हैं। जो उनके लिए नुकसान की वजह बन सकता है।
आगे क्या हो सकता है? कुछ नेता कांग्रेस छोड़ सकते हैं। आम आदमी पार्टी की नजर ऐसे नेताओं पर है। कांग्रेस आला कमान इस तथ्य को समझ रहा है। पंजाब की राजनीति को कवर करने वाले सीनियर पत्रकार सुखविंदर सिंह ने बताया कि आम आदमी पार्टी इस वक्त ऐसे मौकों की तलाश में हैं कि कुछ चर्चित चेहरे उनकी पार्टी में आ जाए। इसमें दो राय नहीं कि आम आदमी पार्टी के लिए पंजाब की स्थिति खासी मुफीद है। बस उन्हें सीएम के लिए सर्वमान्य चेहरा चाहिए,बाकी सारा काम तो कांग्रेसी कर ही रहे हैं।
इस वक्त होना तो यह चाहिए था कि कांग्रेसी एकजुट होकर अगले चुनाव की तैयारी करते। हो इसके विपरीत रहा है। पंजाब में विपक्ष नाम की चीज नहीं है। अकाली दल और आम आदमी पार्टी विपक्ष के तौर पर बड़ी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। इस कमी को भी कांग्रेसी ही पूरी करते नजर आ रहे हैं। जितने भी विवाद उठे हैं, हर विवाद के बाद कांग्रेस का ग्राफ डाउन गया है। पार्टी विवादों को शांत करने की कोशिश में लगी रही। इस वजह से मतदाता उनके हाथ से फिसल रहा है। यदि यहीं हालत रहते हैं तो निश्चित ही पंजाब कांग्रेस में न सिर्फ एक बड़ी टूट हो सकती है, बल्कि पार्टी एक बड़े मतदाता को भी नाराज कर सकती है। जिसका खामियाजा उन्हें इस बार के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है।