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समाज

4 महीने का मासूम उखड़ती सांसों के बीच जिन्दगी और मौत के बीच रहा झूल, दुष्कर्म पीड़िता की कोख से लिया जन्म

Janjwar Desk
5 Sep 2021 6:13 PM GMT
4 महीने का मासूम उखड़ती सांसों के बीच जिन्दगी और मौत के बीच रहा झूल, दुष्कर्म पीड़िता की कोख से लिया जन्म
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अल्मोड़ा शिशु सदन में जहां रखा गया है बच्चे को वहां बनी हुई है उसकी हालत गंभीर, दिन-ब-दिन बढ़ रहा है उसके सिर का आकार

दुष्कर्म के बाद उत्तराखण्ड की एक नाबालिग किशोरी के गर्भ में पले बच्चे का जन्म राज्य के एक जिला अस्पताल में बीस मई 2021 को हुआ था और अब उसकी हालत बहुत सीरियस बनी हुयी है, मगर कोई भी इस मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

अल्मोड़ा। बेसहारा बच्चों को माँ के आँचल जैसी सुरक्षा के साथ उनकी परवरिश करने वाले अल्मोड़ा के शिशु सदन में एक चार महीने के बच्चे की साँसें लगातार उखड़ती जा रही हैं। हम नहीं जानते कि जिस समय आप यह पंक्तियाँ पढ़ रहे होंगे, उस समय बच्चे की ज़िन्दगी कितनी बची होगी। वक्त का हर बीतता हुआ पल इस बच्चे की ज़िन्दगी के लिए भारी पड़ रहा है। उखड़ी सांसों के सहारे जी रहा यह बच्चा इस दुनिया में किसी की खुशी से नहीं आया, बल्कि जबर्दस्ती लाया गया। किस्मत कहें या परिस्थितियां, अब यह बच्चा अपने अनजाने जैविक माँ-बाप से दूर सरकार की सरपरस्ती में पल रहा है।

दुनिया में बच्चे के आगमन की कहानी भी कतई सुखद नहीं कही जा सकती। बलात्कार के बाद उत्तराखण्ड (Uttarakhand) की एक नाबालिग किशोरी के गर्भ में अस्तित्व में आये इस बालक का जन्म राज्य के एक जिला अस्पताल में बीस मई 2021 को हुआ था। सुदूर पर्वतीय जिले के इस मामले में इस अनचाहे बालक की माँ के गर्भावस्था में बच्चे के स्वास्थ्य आदि की जांच तो क्या ही होनी थी। लोक-लाज के कारण ऐसे बच्चों स्वीकारने में हमारा समाज अभी ठहराव का ही शिकार है। लिहाजा बच्चा जन्म के समय स्वस्थ है या नहीं, इसकी भी कोई जांच नहीं की गयी।

विपरीत परिस्थितियों में दुनिया में आये इस बालक को इसके जन्म के छह दिन बाद 26 मई को पुनर्वास केंद्र, चाइल्ड हेल्प लाइन व पुलिस द्वारा दूसरे जनपद अल्मोड़ा में स्थित एक शिशु सदन में भेज दिया जाता है। बुरी तरह से बीमार दिख रहे इस बच्चे को इलाज के लिए किसी चिकित्सालय में भर्ती कराये जाने की जगह अपना पल्ला झाड़ने की नियत से जबरन शिशु सदन भेजे गये इस बच्चे को शिशु सदन नियमानुसार लेने से मना नहीं कर सकता था, इसलिए जानते-बुझते शिशु सदन को बीमारी की हालत में भी यह बच्चा स्वीकार करना पड़ा।

चाइल्ड हेल्पलाइन सहित बच्चे को शिशु सदन पहुंचाने की इतनी जल्दी थी कि वह बालक का स्वस्थता प्रमाणपत्र भी साथ नहीं लाये थे। यह प्रमाणपत्र भी बाद में शिशु सदन को मेल से भेजा जाता है।

शिशु सदन में कार्यरत महिला कर्मचारियों ने बच्चे की हालत देखते हुए उसे स्थानीय चिकित्सक को दिखाया तो उसके बीमार होने की पुष्टि हुई। जांच के दौरान ही पता चला कि जन्म से ही बच्चे के सिर में पानी भरा था। चाइल्ड हेल्प लाइन ने यह बात भी शिशु सदन अल्मोड़ा से छिपाई थी। शिशु सदन में इस बच्चे की तबीयत लगातार बिगड़ने के बाद अस्पताल में बीमारी का खुलासा होने पर शिशु सदन द्वारा बालक को इलाज के लिए हल्द्वानी के सुशीला तिवारी चिकित्सालय भेजा गया, लेकिन वहां दो सप्ताह अस्पताल में रखने के बाद बच्चे को ऋषिकेश एम्स के लिए रैफर कर दिया गया। लेकिन बच्चे को यहां से भी कोई राहत नहीं मिल पायी। चिकित्सकों ने इस बीमारी को लाइलाज बताते हुए हाथ खड़े कर दिये हैं। चिकित्सकों के अनुसार बच्चे का ऑपरेशन सम्भव नहीं है।

अब स्थिति यह है कि बच्चा इलाज के अभाव में तड़प रहा है। शिशु सदन की परिचारिकायें रात-दिन उसकी सेवा में जुटी हैं, लेकिन बच्चा लगातार रो रहा है। बच्चे के सिर का आकार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। बच्चे के करुण क्रंदन से सदन की दीवारे गूंज रही हैं। वर्तमान में बच्चे को दूध तक पीने में परेशानी हो रही है। दूध तक उसके गले में अटक कर रह जा रहा है।

शिशु सदन की कर्मचारी बच्चे को लेकर बेहद फिक्रमंद हैं, लेकिन एक परवरिश संस्थान होने की वजह से वह ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। नाम न छापने की शर्त पर शिशु सदन में कार्यरत एक कर्मचारी ने बताया कि इस बच्चे के मामले में शुरू से ही लापरवाही की गयी। जन्म के समय ही उसे इलाज की जरूरत थी, लेकिन किसी ने भी इसकी जरूरत नहीं समझी। महज अपना पल्ला झाड़ने की नियत से बच्चे को सदन में भेज दिया गया।

सदन द्वारा अपनी तरफ से बच्चे के इलाज के प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं। बच्चे को अगर ठीक और विशेषज्ञ चिकित्सकों का उपचार मिल जाये तो वह ठीक हो सकता है। अभी बच्चे की हालत बहुत गंभीर है। वह कुछ खा-पी भी नहीं रहा है। उसे पकड़ने में भी दिक्कत हो रही है। यहां पर ऐसा कोई अनुभवी भी नहीं है जो इस स्थिति में बच्चे की देखभाल कर सके। हम चाहते हैं बच्चे का इलाज हो जाए, ताकि उसकी जान बच सके।

इस मामले में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष पीसी तिवारी कहते हैं, 'उनके संज्ञान में मामला आया था। पार्टी की महिला कार्यकर्ता भारती ने शिशु सदन जाने की अनुमति मांगी है। सदन में जाकर जानकारी लेकर परिस्थितिनुसार जो सम्भव हो सकता है, वह करने का प्रयास करेंगे।

अल्मोड़ा की महिला जिलाधिकारी वन्दना सिंह से फोन पर सम्पर्क करने पर उन्होंने अपने आप को मीटिंग में बताते हुए मैसेज भेजने की बात कही, जिसके बाद प्रकरण का संक्षिप्त सार सन्देश में भेजने के बाद खबर भेजे जाने तक उनका कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला।

बहरहाल, इस विकट स्थिति में आगे क्या होगा, यह भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन सवाल तो यह भी है कि क्या वास्तव में बच्चे की इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं है या माँ-बाप का न होना बच्चे के लिए अभिशाप साबित हो रहा है!

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