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समाज

महिला उत्पीड़न रोकने में विफल भारत सरकार ने महिलाओं पर हिंसा रोकने के लिए हुए समझौते पर आज तक नहीं किये हस्ताक्षर!

Janjwar Desk
21 May 2021 5:01 AM GMT
महिला उत्पीड़न रोकने में विफल भारत सरकार ने महिलाओं पर हिंसा रोकने के लिए हुए समझौते पर आज तक नहीं किये हस्ताक्षर!
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कोरोना के बाद रिन्यूवल एनर्जी के क्षेत्र में भारत ने की वापसी, मगर महिलाओं की भागीदारी अब तक के सबसे निचले स्तर पर

भारत समेत कुल 43 देश ऐसे हैं जहां पति द्वारा अपनी पत्नी पर यौन हिंसा या फिर बलात्कार रोकने के लिए कोई क़ानून नहीं है, दुनिया में 57 देश ऐसे हैं, जहां की आधी महिलाओं को गर्भ-निरोधक तरीकों और अकेले स्वास्थ्य सुविधाओं की इजाजत नहीं है....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। 11 मई 2021 को महिलाओं और बालिकाओं पर हिंसा रोकने के लिये किये गए इस्तांबुल समझौते के दस वर्ष पूरे हो गए। यह इस सन्दर्भ में दुनिया में अकेला अन्तराष्ट्रीय समझौता है। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकतर देश यूरोपीय हैं। यूरोपीय देशों के अतिरिक्त कनाडा, अमेरिका, जापान, मेक्सिको, तुनिशिया और कजाखस्तान ने भी इस पर हस्ताक्षर किये हैं, पर भारत ने आज तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।

इस पर सबसे पहले 13 देशों ने हस्ताक्षर किये थे और अब तक 46 देश इस समझौते को स्वीकार कर चुके हैं। इस समझौते के 19 वर्ष पूरे होने पर संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि जिस तरह दुनिया कोविड 19 महामारी से जूझ रही है, उसी तरह महिलाओं और बालिकाओं पर हिंसा भी एक भयानक महामारी है, जिसकी चपेट में पूरी दुनिया है। पिछले 9 वर्षों में इस दिशा में जो कुछ भी किये गया था, उसे कोविड 19 के दौर ने पूरी तरह ख़त्म कर दिया है, और दुनिया महिलाओं के वैसी ही हो गयी है, जैसी 10 वर्ष पहले थी।

संयुक्त राष्ट्र की महिला हिंसा विशेषज्ञ दुब्रावका सिमोनोविक के अनुसार वैश्विक महामारी ने दिखा दिया कि महिलाओं के सन्दर्भ में दुनिया पहले कैसी थी। इस बीच टर्की ने कहा है कि जुलाई के बाद वह इस समझौते का हिस्सा नहीं रहेगा। यह दुखद अवश्य है, क्योंकि इस समझौते को टर्की के शहर इस्तांबुल में ही किया गया था, जिस पर इस समझौते का नाम पड़ा है। टर्की का इस समझौते से बाहर जाना बहुत आश्चर्यजनक नहीं है, राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन खुले तौर पर महिला विरोधी हैं। उन्होंने सार्वजनिक तौर पर दिए गए वक्तव्यों में अनेक बार कहा है कि पुरुषों और महिलाओं की बराबरी कभी संभव नहीं है और महिलाओं का काम घर के भीतर रहकर बच्चों को पालने का है।

उक्रेन में धर्मगुरु जोर-शोर से इस्तांबुल समझौते का विरोध कर रहे हैं, उनके अनुसार इससे पारिवारिक मूल्यों में गिरावट आयेगी। स्लोवेनिया की सरकार के अनुसार महिलाओं पर हिंसा रोकने की मांग बेमानी है, महिलाओं पर हिंसा को रोका नहीं जा सकता। स्लोवेनिया की सरकार के अनुसार ऐसी हिंसा रोकने की बात करना एकल मां, गरीबों और स्थानीय रोमा समुदाय के लिए घातक होगा। मेक्सिको में महिलाओं की स्थिति का अंदाजा लगाने के लिए यह तथ्य ही काफी है कि वहां हरेक दिन औसतन 10 महिलाओं की हत्या कर दी जाती है, और कभी किसी को सजा नहीं होती।

पेरू में वर्ष 2020 में मार्च से जुलाई के बीच महिलाओं और बालिकाओं पर हिंसा से सम्बंधित एक हजार से अधिक मामले दर्ज किये गए थे, और पीड़ित महिलाओं में से 30 प्रतिशत की उम्र 18 वर्ष से कम थी। इजिप्ट, इरान और सऊदी अरब में अपने हक़ की आवाज उठाने वाली महिलाओं को जेल में बंद कर दिया जाता है।

उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित उन्नाव बलात्कार काण्ड के बाद लन्दन से प्रकाशित द गार्डियन में 8 अगस्त 2020 को एक पत्र प्रकाशित कर इंग्लैंड की 42 महिला शिक्षाविदों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, लेखिकाओं और कवियत्रियों ने जो कुछ कहा था, उससे भारत में महिलाओं पर हिंसा को आसानी से समझा जा सकता है। इसमें ब्रिटेन की महिलाएं भी थीं और भारतीय मूल की ब्रिटेन में बसी महिलायें भी। पत्र की शीर्षक था, लड़कियों और महिलाओं पर हिंसा को रोकने में विफल भारत सरकार।

"जब एक किशोरी आयु की बलात्कार पीड़िता न्याय की आस लिए अब जिंदगी और मौत से जूझ रही है, हम लोग महिलाओं और लड़कियों के विरुद्ध हिंसा पर भारत सरकार के रवैये पर तनाव और गुस्से में हैं। सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी के नेता और इनकी सहयोगी पार्टी के नेताओं द्वारा कथित तौर पर किये गए जघन्य अपराधों के बाद भी सरकार उन्हें बचाने का भरसक प्रयास करती है। वर्ष 2017 में 8 वर्षीय लड़की से कश्मीर में किये गए सामूहिक बलात्कार और फिर जघन्य हत्या के बाद भी देश का माहौल नहीं बदला। इस सामूहिक बलात्कार और जघन्य हत्या के कथित अपराधियों के समर्थन में बड़ी-बड़ी रैलियाँ आयोजित की गयीं और इन्हें बीजेपी नेता संबोधित करते रहे।"

"उन्नाव की इस वर्तमान घटना में उत्तर प्रदेश के बीजेपी विधायक कथित अपराधी हैं, जो अभी जेल में हैं और सारे अपराधों को नकार रहे हैं| रेप पीडिता के इन्साफ पाने की राह में हर कदम पर उसे हिंसा और धमकियों का सामना करना पड़ा है। सेंगर के समर्थक पीड़िता के पिता पर जानलेवा हमला करते हैं, पर पुलिस उन्हें ही हवालात में बंद करती है, जहां रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो जाती है। इसके एकमात्र चश्मदीद गवाह की भी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो जाती है। सेंगर जेल में रहते हुए भी अपना समर्थन जुटाने और बाहर हिंसा कराने में कामयाब रहे हैं।"

"पीड़िता के परिवार ने दावा किया है की उन्हें सेंगर के समर्थकों और सहयोगियों से लगातार धमकियां मिल रहीं हैं।" इसके बाद पत्र में 28 जुलाई 2019 की घटना का वर्णन था, जिसमें बलात्कार पीड़िता की गाड़ी को सामने से आ रहे ट्रक ने टक्कर मारी थी। "इसके बाद जब चौतरफा विरोध के स्वर बढ़ने लगे तब जाकर सेंगर को बीजेपी से निकाला गया।"

"इस देश में बीजेपी और इसके सहयोगी दलों के नेताओं पर बलात्कार या हत्या का आरोप लगाना बहुत ही खतनाक, घातक और जानलेवा हो चला है। ब्रिटेन की होम सेक्रेटरी प्रीती पटेल द्वारा भारत सरकार की तारीफ़ का यह मतलब नहीं है की इससे भारत में किये जा रहे मानवाधिकार हनन के मामले गौण हो जाते हैं।"

हमारे देश में तो सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी एक बलात्कार आरोपी से कहते हैं कि यदि तुमने पीडिता से शादी करने की हामी भर दी तो सजा माफ़ हो जायेगी और नौकरी भी वापस मिल जायेगी। मुंबई हाईकोर्ट की एक न्यायाधीश फैसला देती हैं कि 8 वर्ष की बच्ची की छाती कपड़े के ऊपर से दबाना अपराध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फण्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 20 देश ऐसे हैं, जहां बलात्कारी यदि पीडिता के साथ शादी करने का आश्वासन दे तो फिर कानून बलात्कारी से सारे आरोप हटा लेता है। इन देशों में रूस, थाईलैंड, वेनेज़ुएला और कुवैत शामिल हैं। दूसरी तरफ हाल में ही मोरक्को, जॉर्डन, फिलिस्तीन, लेबनान और टूनिसिया ने इस तरीके के कानूनों हो हटा दिया है।

भारत समेत कुल 43 देश ऐसे हैं जहां पति द्वारा अपनी पत्नी पर यौन हिंसा या फिर बलात्कार रोकने के लिए कोई क़ानून नहीं है। दुनिया में 57 देश ऐसे हैं, जहां की आधी महिलाओं को गर्भ-निरोधक तरीकों और अकेले स्वास्थ्य सुविधाओं की इजाजत नहीं है।

महिलाओं और बच्चियों पर हिंसा रोकने के लिए जितने भी उपाय दुनियाभर में किये गए हैं, लगभग सभी नाकाम रहे हैं। जाहिर है, अब इस दिशा में नए सिरे से पहल करने की जरूरत है, वरना यह महामारी दुनिया से कभी ख़त्म नहीं होगी।

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