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संघर्ष की दास्तान : पिता सायकिल पर गांव-गांव फेरी लगाकर बेचते हैं कपड़े, बेटा बना IAS

Janjwar Desk
6 Aug 2020 6:33 AM GMT
संघर्ष की दास्तान : पिता सायकिल पर गांव-गांव फेरी लगाकर बेचते हैं कपड़े, बेटा बना IAS
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UPSC की परीक्षा में सफलता के बाद अनिल को मिठाई खिलाते हुए माता-पिता

यह एक गरीब पिता के अथक संघर्ष की जीवंत दास्तान है, अब बेटे अनिल बोसक ने UPSC की Civil Services- 2019 की परीक्षा में देश में 616 वीं रैंक प्राप्त कर ली है..

जनज्वार ब्यूरो, पटना। सायकिल पर कपड़े लाद घर-घर फेरी लगाकर बेचने वाले का बेटा अब IAS बन गया है। बिहार के किशनगंज (Kishanganj) में घूम-घूमकर कपड़े बेचनेवाले एक गरीब पिता का सपना पूरा हो गया है। गरीब पिता के संघर्ष की यह एक जीवंत दास्तान (Live story) है। इससे यह भी साबित हो गया है कि प्रतिभा (Merit) किसी की मोहताज नहीं होती।

बिहार के पिछड़े जिलों में से एक किशनगंज निवासी विनोद बोसक (Vinod bosak) सायकिल से कपड़ों की फेरी लगाते हैं। उनके बेटे अनिल बोसक (Anil Bosak) ने सिविल सेवा की परीक्षा में देश में 616वीं रैंक लाकर अपने पिता के अरमानों (Dreams) को पूरा करने के साथ ही बिहार का नाम भी रोशन किया है।

सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि कितने कष्ट सहकर पिता ने बेटे के पढ़ाया होगा। अब सीमांचल के बेटे अनिल बोसक पर सबको गर्व है, क्योंकि लोगों ने अपने बेटे को गढ़ने के लिए एक पिता का संघर्ष देखा है। वह बेबसी देखी है, जिसे झेलकर उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाया। इस दौरान महाजन के कर्ज से भी लद गए, लेकिन बेटे को अहसास तक नहीं होने दिया। अब अनिल बोसक ने सिविल सर्विसेज-2019 की परीक्षा में 616 वां स्थान लाकर अपने पिता के सीने को गर्व से चौड़ा कर दिया है। अनिल को दूसरे प्रयास में यह सफलता मिली है।

अनिल के पिता बिनोद बोसक कपड़े की फेरी लगाकर गांव-गांव में बेचते हैं। चार भाइयों में दूसरे नंबर पर अनिल है। अनिल के पिता की माली हालत ऐसी नहीं थी कि बेटे की पढ़ाई पर ज्यादा खर्च कर पाते। बचपन से पढ़ाई- लिखाई में अनिल मेधावी रहा। इसी कारण स्कॉलरशिप के सहयोग से काफी हद तक आगे की पढ़ाई में सहयोग मिल सका। आर्थिक स्थिति खराब होने के बावजूद अनिल ने हार नहीं मानी। अनिल ने आठवीं की पढ़ाई ओरिएंटल पब्लिक स्कूल से की। वर्ष 2011 में अररिया पब्लिक स्कूल से मैट्रिक, 2013 में 12 वीं की परीक्षा बालमंदिर सीनियर सेकेंड्री स्कूल से पास की।

इसके बाद वर्ष 2014 में आइआइटी दिल्ली में दाखिला मिला। वर्ष 2018 में आइआइटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग की बीटेक डिग्री पूरी की।

अनिल का पैतृक घर किशनगंज जिले के ठाकुरगंज प्रखंड के खारुदह गांव में है। रोजी-रोटी की तलाश में इनके पिता किशनगंज के तांती बस्ती मोहल्ले में आए और साइकिल से गांव-गांव कपड़े की फेरी लगाकर कपड़े बेचकर बेटे का सपना पूरा किया।

अनिल के पिता विनोद ने कहा 'अपने बेटे का अरमान पूरा करने के लिए वो कर्ज के बोझ में दब गए थे, लेकिन हिम्मत नही हारी।'

अपनी इस सफलता पर अनिल ने कहा 'उन्हें यूपीएससी की तैयारी की प्रेरणा अपने शिक्षक से मिली थी। अगर ईमानदारी और लगन के साथ मेहनत किया जाए तो सफलता कदम चूमती है।'

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