जाति व्यवस्था के कारण युवाओं की शादियों में आ रही बड़ी मुश्किल, गुजरात हाईकोर्ट की टिप्पणी
जनज्वार ब्यूरो। जाति आधारित मतभेदों के कारण परिवार से अलग कर दिए गए एक दंपति को राहत देते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रभाव के कारण ही ऐसी घटनाएं होती हैं।
जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने कहा, देश में जाति व्यवस्था युवा लोगों के लिए अपने जीवन साथी बनाने का फैसला करने के लिए इसे और अधिक कठिन बना रही है और परिवार के वयस्कों के मन की कठोरता मानवीय संबंधों के विभाजन का गंभीर कारण बन रहा है।
कानूनी मामलों की समाचार वेबसाइट 'लाइव लॉ' की रिपोर्ट के मुताबिक, खंडपीठ ने आगे कहा कि इस तरह की सामाजिक और भावनात्मक उथल-पुथल की घटनाएं संभालने में प्रशासन को बेहद मुश्किलें हो रही है जो आखिरकार कानूनी लड़ाई में बदल रही हैं।
वर्तमान मामले में इस दंपति ने जनवरी 2020 में शादी की और फरवरी के महीने में हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस सुरक्षा दी गई थी। फिर जब दंपति ने राजस्थान का दौरा किया तो वे अलग हो गए। इसके याचिकाकर्ता पति ने बंदी-प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर गर्भवती पत्नी को वापस अपने घर भेजने की मांग की।
कोर्ट ने मैरीज सर्टिफिकेट का अवलोकन कर पाया कि दंपति ने कानूनन विवाह किया था। इससे पहले दंपति ने पालनपुर जिला न्यायालय ने पत्नी की प्रस्तुतियां भी नहीं ली थी जो उसने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए प्रस्तुत की थी जिसमें उसने इच्छा जाहिर की थी कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती हैं।
इसके मद्देनजर हाईकोर्ट ने पालनपुर के अतिरिक्त जिला न्यायधीश को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि पत्नी को पुलिस की सुरक्षा के साथ उसके अपने वैवाहिक घर तक सुरक्षित पहुंचाया जाए। कोर्ट ने कहा कि दंपति को संरक्षण चार महीने की अवधि तक के लिए जारी रहेगा। इसके बाद की जिम्मेदारी पालनपुर के पुलिस अधीक्षक के पास रहेगी जो यह तय करेंगे कि इस तरह की सुरक्षा जारी रखी जाए या नहीं।
सुनवाई के दौरान पत्नी की मां ने शादी को लेकर अपना विरोध जताया और धमकी दी कि अगर उनकी बेटी ने अपने पति के साथ जाना पसंद किया तो आत्महत्या कर लेंगी। इसलिए कोर्ट ने पालनपुर के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वह पक्षकारों के बीच एक सौहार्दपूर्ण समाधान लाने का प्रयास करें या पालनपुर के मध्यस्थता केंद्र को रेफर करें ।