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समाज

'पड़ोसी आंटी ने मेरे मुंह पर दरवाजा न मारा होता तो मैं इस दरिंदगी से बच जाती', एसिड पीड़िता गुलनाज की दरकती सामाजिकता और मरती इंसानियत पर चोट

Janjwar Desk
22 Dec 2022 12:11 PM GMT
पड़ोसी आंटी ने मेरे मुंह पर दरवाजा न मारा होता तो मैं इस दरिंदगी से बच जाती, एसिड पीड़िता गुलनाज की दरकती सामाजिकता और मरती इंसानियत पर चोट
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'पड़ोसी आंटी ने मेरे मुंह पर दरवाजा न मारा होता तो मैं इस दरिंदगी से बच जाती', एसिड पीड़िता गुलनाज की दरकती सामाजिकता और मरती इंसानियत पर चोट

सिरसिरे आशिक की अमानवीयता का शिकार बनी तेजाब पीड़िता गुलनाज भरे गले से कहती है, काश, एसिड अटैक के पहले ही प्रयास के बाद मेरी मदद की गुहार पर मुहल्ले की आंटी ने मेरे मुंह पर दरवाजा बंद करने की जगह मुझे अपने घर में शरण मात्र दे दी होती तो शायद उसकी जिंदगी में भी उजाला होता...

Acid attacks : जिस भारतीय समाज को महिमामंडित करते हुए इसे हम पूरी दुनिया को रास्ता बताने वाला समाज बताते हैं, उसकी बाहरी परत के भीतर बजबजाती सड़ांध के नमूदार होने के मौके यदा कदा दिखते ही रहते हैं, लेकिन उत्तराखंड के एक तेजाबी हमले के बाद अपने जीवन में अंधेरा महसूस कर रही एक एसिड सर्वाइवर ने जिन शब्दों में समाज के लिजलिजे विद्रूप का जिक्र किया है, वह इंसान होने के नाते सभी को शर्मसार करने वाला है।

साल 2014 के 29 नवम्बर की गुनगुनी सर्दियों की वह शाम थी, जब उत्तराखंड के उधमसिंहनगर जिले के जसपुर क्षेत्र के सरफराज नाम के एक मजदूर की 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली नाबालिग बेटी स्कूल से शिक्षा प्राप्त कर घर लौट रही थी। अचानक गुलनाज को अहसास होता है कि कोई उसका पीछा कर रहा है। पीछे पलटकर देखने पर गुलनाज को फरहान उर्फ आशु नाम का एक वह लड़का चेहरे पर कुटिल मुस्कान लिए दिखा, जो कुछ दिनों पहले एकतरफा प्रेम में गुलनाज का अक्सर पीछा किया करता था।

गुलनाज द्वारा उसे सख्ती से पीछा न करने की बात कहने के बाद से यह लड़का उसे दिखाई देना बंद हो गया था। एकाएक इस लड़के को देखकर गुलनाज एक बार तो सहम गई, लेकिन फिर हिम्मत करके वह लड़के को इग्नोर करते हुए आगे बढ़ चली। मगर फरहान उर्फ आशु इस बार गुलनाज का केवल पीछा करने के उद्देश्य से तो आया ही नहीं था, उसके हाथ में एक छोटी कैन और कप था। उसमें गुलनाज की जिंदगी में बदसूरती का रंग भरने का एसिड नामक पदार्थ था। गुलनाज के चेहरे पर एक "छपाक" की आवाज होती है। यह उसके ऊपर एसिड अटैक था, जिसका उसे तत्काल एहसास तक नहीं हुआ। लेकिन चेहरे की खाल उधड़ने का एहसास होते ही गुलनाज को अनहोनी का अंदेशा हो चुका था।

हाथों से चेहरा छिपाने की कोशिश में गुलनाज इससे पहले अपने को बचा पाती, फरहान ने बाकी बचा एसिड भी उस पर उडेल दिया। हमले के बाद गुलनाज बचने के लिए इधर उधर दौड़ते हुए भरी सड़क पर मदद की गुहार लगाती रही, लेकिन मदद तो दूर, उसे देखकर एक महिला जिसे गुलनाज आंटी कहती थी ने तो अपने घर का दरवाजा तक उसके मुंह पर भड़ाक की आवाज के साथ बंद कर दिया।

कल्पना कीजिए, एक बच्ची किसी दरिंदे से बचने के लिए भरी सड़क पर चीख पुकार मचा रही है। राहगीरों से रोते बिलखते मदद की गुहार लगा रही है, लेकिन मदद नहीं मिलती। लोगों के इस व्यवहार से जहां गुलनाज को कोई मदद नहीं मिलती तो वहीं दरिंदे फरहान को पूरा हौसला मिलता है। सड़क पर गिरी गुलनाज के सिर पर चढ़कर राक्षसी अट्टहास के साथ वह गुलनाज के गले पर चाकू से भी वार करता है।

तेजाबी हमले के बाद चाकू के इस वार से सहमी घायल बच्ची गुलनाज अपनी जिंदगी की टूटती उम्मीद के बीच एक बार फिर अपने शरीर की सारी शक्ति इकट्ठा करते हुए मदद की गुहार लगाती है। अचानक एक बाइक सवार रुककर फरहान को टोकता है। केवल टोकने भर से ही फरहान का हौसला आधा रह जाता है। गुलनाज को मरणासन्न हालात में छोड़कर वह मौके से भाग निकलता है। मदद की इस छोटी सी कोशिश को याद करते हुए भरे गले से गुलनाज ने बताया कि "काश, एसिड अटैक के पहले ही प्रयास के बाद मेरी मदद की गुहार पर मुहल्ले की आंटी ने मेरे मुंह पर दरवाजा बंद करने की जगह मुझे अपने घर में शरण मात्र दे दी होती तो शायद उसकी जिंदगी में कुछ अंधेरा होता।"

सड़क पर बेसुध पड़ी गुलनाज के चेहरे, गर्दन, छाती और हाथों से तेजाब से गलकर खाल के टुकड़े शरीर का साथ छोड़ रहे थे। आंखों तक में तेजाब जाने की वजह से आंखे भी नहीं खुल रही थी। गुलनाज पर हमले की खबर सुनकर गुलनाज की मां जब दौड़ते हुए मौके पर पहुंची तो गुलनाज की हालत देखकर खुद भी एक झटके से बेहोश होकर सड़क पर गिर पड़ी। अब मौके पर मजमा लग चुका था।

कुछ ही देर बाद मां और बेटी अपने अपने इलाज के लिए जसपुर के अस्पताल में थे। एसिड अटैक में गुलनाज 60 फीसदी से भी ज्यादा जल गई थी। उसका दाहिना कान पूरी तरह चला गया था और दूसरे कान की 50 प्रतिशत सुनने की क्षमता भी चली गई थी। गुलनाज के चेहरे, छाती और हाथ सहित शरीर के ऊपरी हिस्से में ऐसे गंभीर जलन की चोटें आई थी, जिन्हें मेडिकल की भाषा में थर्ड डिग्री बर्न का दर्जा दिया जाता है।

डॉक्टर्स के सामने पहला टास्क गुलनाज की आंखों को रोशनी को बरकरार रखने के लिए आंखों के ऑपरेशन का था। काशीपुर के एक निजी अस्पताल में यह ऑपरेशन हुआ। गरीब परिवार की गुलनाज को अपनी गरीबी के चलते आगे के इलाज के लिए देहरादून के एक धर्मार्थ अस्पताल में जाना पड़ा। चार महीने के बाद चेहरे सहित पूरे शरीर पर सर्जरी के कई जख्म लिए गुलनाज जब अपने घर लौटी तो उसकी मां तो सबसे पहला काम घर के सभी आईने (मुंह देखने वाला शीशा) छिपाने का किया। अभी गुलनाज की गर्दन भी पूरी सीधी नहीं हो रही थी। गर्दन झुकाए गुलनाज घर के शीशों को छिपाए जाने का अर्थ तो समझ रही थी, उस अर्थ से लड़ने का रास्ता भी तलाश रही थी। गुलनाज बताती है कि घटना के दो साल बाद उसने पहली बार अपने चेहरे को पानी की भारी बाल्टी में बने अपने प्रतिबिंब के माध्यम से देखा।

हालांकि एसिड अटैक की इस आरोपी को साल 2016 के 14 मार्च को 10 साल की सजा के साथ ही 20 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अपराधी को मिली सजा से गुलनाज के जख्म नहीं भर पाए थे। कुछ महीने के लगातार इलाज के बाद गुलनाज ने अपनी आगे की पढ़ाई भी जारी रखी। लेकिन बड़ा सवाल यह था कि गुलनाज़ के साथ हुए इस जघन्य अपराध की प्रतिपूर्ति क्या राज्य सरकार के द्वारा हो सकती है, जो उनकी सुरक्षा और एक उनके इज्जत से जीने के अधिकार को बनाए रखने में अक्षम रहा?

कटोचने वाले इसी सवाल के साथ गुलनाज खान साल 2019 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय की चौखट पर एक माकूल जवाब की तलाश में दस्तक देती है, जिसके कानूनी पहलुओं को समझने के साथ उसकी इस राह में उसे उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस कर रही युवा अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी का मार्गदर्शन मिलता है। मामला कोर्ट में चला तो अपनी जिम्मेदारी से बचने वाली गैरजिम्मेदार सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर कोर्ट में पेश हुए सरकारी पक्ष ने दलील दी कि "उनको हर चीज का प्रमाण एक अलग फोरम पर देना चाहिए, माननीय उच्च न्यायालय में सीधे रिट याचिका नहीं करनी चाहिएI" इतना ही नहीं, सरकारी पक्ष ने कोर्ट में यह तक कह डाला कि "एक ऐसे प्रकरण में लाभ देने से सभी लोग ऐसी प्रतिपूर्ति चाहेंगे।"

सरकारी पक्ष के इंसानियत को शर्मसार करने वाले इस बयान पर एडवोकेट स्निग्धा तिवारी ने भरी कोर्ट में सरकारी पक्ष को आईना दिखाते हुए कहा कि "कैसे एक एसिड अटैक पीड़िता के मामले में उचित मुआवजा नहीं दिया जा रहा। जबकि राजनीतिक मामलों में सरकार करोड़ों रुपए सरकारी खजाने से लुटा देती है।"

घटना के बाद एसिड अटैक पीड़िता की जिंदगी की तमाम मुश्किलों की चर्चा करते हुए स्निग्धा ने यह भी बताया गया कि "एक पीड़िता की इज्जत और पूरी जिंदगीभर जिस तरीके से उसको इस साए में रहना पड़ेगा उसकी प्रतिपूर्ति के रूप में न्यायालय को पीड़िता के पक्ष में कोई सकारात्मक आदेश पारित करना चाहिए। अधिवक्ता स्निग्धा के तर्कों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की एकल पीठ न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा की अदालत ने पीड़िता को सरकार द्वारा 35 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने का निर्देश दिया था। इसके साथ ही गुलनाज के चल रहे उपचार में अतिरिक्त जो भी चिकित्सा का हर्जा खर्चा और उनकी सर्जरी पर व्यय होगा वह सब भी राज्य सरकार के पैसे से ही किया जाएगा। चाहे वह इलाज किसी अन्य संस्थान में उत्तराखंड राज्य के बाहर दिल्ली या चंडीगढ़ में हो।

राहत की बात यह है कि गुलनाज को लंबी लड़ाई के बाद कोर्ट में माध्यम से इंसाफ तो मिला, लेकिन इस बात का दुख भी है कि अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में समाज से जो चोटें गुलनाज को आज भी मिल रही हैं उनमें कहीं कोई कमी नहीं आई है। एसिड सर्वाइवर के साथ मानवीयता और बराबरी का व्यवहार करने लायक तमीज अभी भारतीय सीख ही नहीं पाए हैं।

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