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समाज

देशव्यापी बन रहा सांप्रदायिकता और हिंसा का गुजरात मॉडल, भेदभाव का सामना कर रहे मुसलमान

Janjwar Desk
10 Jan 2021 8:20 AM GMT
देशव्यापी बन रहा सांप्रदायिकता और हिंसा का गुजरात मॉडल, भेदभाव का सामना कर रहे मुसलमान
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(गुलबर्ग मामले को लेकर जकिया ने नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्व वाली तत्कालीन गुजरात सरकार पर इन दंगों को समर्थन देने का आरोप लगाया था)

जिस तरह भारत में हिंदू राष्ट्रवाद बढ रहा है, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सत्ताधारी भाजपा की गुजरात में नीतियां और कार्य ने प्रणालीगत देशव्यापी भेदभाव के लिए एक मॉडल के रूप में काम किया है।

अंकिता मुखोपाध्याय की रिपोर्ट

नई दिल्ली। फरवरी 2002 में हिंदू श्रद्धालुओं को लेकर जा रही एक ट्रेन में भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात के एक छोटे से शहर गोधरा में आग लग गयी। इसमें दर्जनों लोग मारे गए और स्थानीय मुसलमानों को इसके लिए जिम्मेवार ठहराया गया। इसके बाद पूरे राज्य में तीन दिनों तक हिंसक सांप्रदायिक दंगा फैल गया और करीब 1000 लोग मारे गए और हजारों लोग विस्थापित हुए।

तन्दुल्जा गुजरात के तीसरे बड़े शहर वडोदरा के बगल का इलाका है। 2002 के दंगों के बाद यह जगह मुस्लिम शरणार्थियों के पुनर्वास स्थल के रूप में चिह्नित किया गया और तब समुदाय में तनाव बना हुआ था।

एक स्थानीय निवासी अजहर (बदला हुआ नाम) ने डॉयचे वेले (DW) को बताया कि जब हम लोगों को बताते थे कि हम तंदुल्जा में रहते हैं तो वे हमें भय और अविश्वास से देखते थे। यहां से उत्तर में 110 किलोमीटर पर स्थित अहमदाबाद की स्थिति समान है। यहां के एक स्थानीय निवासी, जो 2002 के दंगों के बाद अपने परिवार के साथ गांव से निकलने के बाद एक एनजीओ द्वारा प्रदान किए गए घर में रहते हैं, ने बताया कि मुसलमानों को लगातार भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

'2002 के बाद जीवन बदतर हो गया है। पुनर्वास क्षेत्र में रहने वाले लड़कों को मुस्लिम होने की वजह से नौकरी नहीं मिलती है। सड़क के उस पार रहने वाले हिंदू हमारे इलाके को पाकिस्तान कहते हैं और अपने इलाके को हिंदुस्तान कहते हैं। जब हमने मोदी सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध किया तो सड़क पार से हम पर पथराव किया गया।'

सेंकेड क्लास सिटीजन

गुजरात के मुस्लिम बहुल शहर गोधरा में जहां 2002 की हिंसा शुरू हुई थी, एक स्थानीय चिकित्सक ने बताते हैं कि वहां के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में अपनी स्थिति स्वीकार कर ली है।

शुजात वाली ने कहा, 'विश्व हिंदू परिषद और पुलिस आपस में मिले हुए हैं। अगर कोई भी मुस्लिम लड़का कभी भी पुलिस की गिरफ्त में आता है तो कोई भी स्थानीय नागरिक या वकील उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आ सकता'।

2002 में साबरमती एक्सप्रेस के कोच को आग लगाने के मुख्य आरोपी के बेटे सईद उमरजी ने कहा कि उनके पिता पर झूठे आरोपों में मुकदमा चलाया गया।

'मेरे पिता ने ट्रेन जलने की घटना के बाद गोधरा में मुस्लिम समुदाय की ओर से माफी मांगी, लेकिन लगभग एक साल के बाद पुलिस द्वारा उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया। उन्होंने दावा किया कि गुजरात की भाजपा सरकार ने 2002 में आतंकवाद निरोधी कानून को जल्दबाजी में पारित किया ताकि उन लोगों पर जिन्हें ट्रेन में आग लगाने का दोषी माना गया है उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सके'।

'हमारा धर्म हमें निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, यही कारण है कि मैं अब अपने धर्म को पकड़ कर नहीं रहना चाहता, क्योंकि यह मेरे उत्पीड़न व भेदभाव का माध्यम है।'

मोदी का गुजरात माॅडल

गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है और कई राजनीतिक विश्लेषकों ने बताया कि भाजपा ने पहली बार राजनीतिक लाभ के लिए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव पैदा करने का प्रयोग करना यहीं शुरू किया।

गुजरात के एक सामाजिक कार्यकर्ता देव देसाई ने बताया कि हिंसा व सांप्रदायिकता का मोदी का गुजरात मॉडल गुजरात से राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया गया है।

फोटो : dw.com

एमएस यूनिवर्सिटी आफ बड़ौदा में इतिहास विभाग के एक पूर्व प्रोफेसर इफ्तिखार खान ने बताया कि 2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक मोदी का उदय गुजरात में हिंदुओं व मुसिलमों के बीच तनाव तिकड़म से हुई। कानून और व्यवस्था की नीति के जरिए हिंसा का जवाब देकर भाजपा कथित तौर पर पूरे भारत में राजनीतिक रैली के रूप में सांप्रदायिक तनाव का उपयोग करने में सक्षम थी।

खान ने कहा, 'दिल्ली के बुद्धिजीवियों के पास इस प्रक्रिया को समझने की राजनीतिक कल्पना नहीं थी। वे मोदी के नेतृत्व में भाजपा की बढत को समझने में चूक गए और स्वयं हैरत में पड़ गए'।

दक्षिण गुजरात में भाजपा के मीडिया संयोजक विनोद जैन ने इन दावों का खंडन किया कि गुजरात में मुसलमानों के साथ अलग व्यवहार किया जाता है। जैन ने कहा, 'नरेंद्र मोदी ने हमेशा कहा है कि गुजरात के सभी निवासी उनके परिवार के सदस्य हैं। हमने बिजली, पानी और गैस अहमदाबाद के सभी क्षेत्रों को प्रदान किया है। कोई भेदभाव नहीं है। गुजरात में मुसलमानों के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। उनके कारोबार फल-फूल रहे हैं और वे आगे बढ रहे हैं'।

राजनेताओं द्वारा की गयी सामूहिक हिंसा?

मोदी से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता का मानना है कि 2002 में गुजरात में भाजपा की प्रतिक्रिया और 2020 में दिल्ली दंगों की प्रतिक्रिया के बीच समनताएं हैं।

उन्होंने कहा, 'दंगा होने की स्थिति में जैसे कि हमने दिल्ली में देखा भाजपा ने 2002 की तरह तार खींच दिए। इसने संसद और पुलिस जैसे सत्ता की संस्थाओं का धूर्तता से प्रबंधन किया और दंगों के बावजूद कोई दावा नहीं किया'।

मेहता ने दावा किया कि गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान भाजपा से जुड़े राजनेताओं ने भीड़ को हिंसा के लिए उकसाया।

मेहता आगे जोड़ते हैं, 'किसने भीड़ को इकट्ठा किया, उन्हें हथियार सौंपे? लोग जब कतल कर रहे थे तब पुलिस क्यों चुप थी? प्रशासन के खिलाफ बोलने वाले सभी लोग या तो जेल में बंद हैं या डर में जीते हैं। यह डर अब राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया है, क्योंकि सत्ता में रहने वालों के खिलाफ सबूत को आसानी से पब्लिक फोरम से हटा दिया गया है'।

भारत के हिंदू व मुसलमान बंट गए

अब गुजरात के मुसलमान एक ऐसे कानून को लेकर चिंतित हैं जो हिंदुओंऔर मुसलमानों की बसावट के लिए अलग-अलग सीमाओं की बात करता है। अशांत क्षेत्र अधिनियम के अंतर्गत, क्षेत्र के सांप्रदायिक दंगों के इतिहास के आधार पर अधिकारी हिंदू और मुस्लिम के लिए अलग बसावट के रूप में सीमांकन कर सकते हैं।

यदि किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है तो इसके तहत निवासियों को किसी अलग समुदाय के किसी व्यक्ति को अपना घर बेचने की अनुमति नहीं है।

नई दिल्ली स्थित वकील सौरभ चौधरी ने बताया कि इस एक्ट का उद्देश्य दंगों में मुनाफाखोरी रोकने की मंशा है, क्योंकि दंगे लोगों के पलायन का कारण बन सकते हैं और उन्हें नीचे की कीमतों पर मूल्यवान संपत्ति बेच कर पलायन को मजबूर होना पड़ सकता है। वे इसमें यह जोड़ते हैं कि इसका कार्यान्वयन इस पर निर्भर करता है कि इसे कैसे लिखा गया है।

2017 में गोधरा के 10 इलाकों को दंगों के 15 साल बाद अशांत क्षेत्र अधिनियम के तहत रखा गया था। वडोदरा और अहमदाबाद के कुछ हिस्सों को जहां सालों से सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई है, उन्हें इस कानून के तहत रखा गया है।

मानवाधिकार कार्यकर्ता जेएस बंधुवाला ने कहा, 'इस अधिनियम के तहत मुस्लिमों व हिंदुओं के लिए अलग निवास क्षेत्र का सीमांकन किया गया जो कुल मिलाकर एक नयी बांटो औ राज करो की नीति है'।

उन्होंने डीडब्ल्यू को कहा, 'वर्तमान राजनीतिक स्थिति अंततः राष्ट्रीय स्तर पर अशांत क्षेत्र अधिनियम को मैंडेट देगी और अंततः हिंदू और मुस्लिम के लिए अलग-अलग क्षेत्र हो जाएंगे। गुजरात के बाहर के बहुत सारे लोग इसे नहीं देख पा रहे हैं, लेकिन हम ऐसा समझ पा रहे हैं'।

लेकिन, भाजपा के नेता विनोद जैन ने कहा कि अशांत क्षेत्र अधिनियम वास्तव में शांति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए है।

जैन ने कहा, 'सूरत के गोपीपुरा इलाके में 3,000 साल पुराने मंदिर हैं, अगर मुसलमान इस इलाके में आते हैं और मांस खाते हैं तो यह शाकाहारी जैन और हिंदुओं के लिए असंवेदनशीलता होगी'। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम क्षेत्रों में टकराव को रोकता है।

(दिल्ली की रहने वाली अंकिता मुखोपाध्याय DW जर्मनी के अंतरराष्ट्रीय प्रसारक के साथ एक संवाददाता के बतौर जुड़ी हैं। इंडियन एक्सप्रेस और दैनिक भास्कर में उनकी कई रिपोर्टें प्रकाशित। अंकिता का ट्वीटर हैंडल @ muk_ankita है। उनकी यह रिपोर्ट पहले dw.com पर प्रकाशित।)

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