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समाज

लापुंग में आदिवासियों पर पुलिसिया दमन के खिलाफ झारखंड जनाधिकार महासभा ने उठायी आवाज, कहा बंद करो युवाओं को नक्सली घोषित करना

Janjwar Desk
15 Jun 2025 1:53 PM IST
लापुंग में आदिवासियों पर पुलिसिया दमन के खिलाफ झारखंड जनाधिकार महासभा ने उठायी आवाज, कहा बंद करो युवाओं को नक्सली घोषित करना
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पुलिस का कहना है ग्रामीणों ने उन्हें पीटा और थाना प्रभारी का सर फोड़ दिया, लेकिन ग्रामीण इसका स्पष्ट खंडन कर रहे हैं। ग्रामीण बोल रहे हैं कि भागने के क्रम में थाना प्रभारी गिरे जिससे उनका सर फूटा...

रांची। रांची के लापुंग थाना क्षेत्र के कोयनारा गाँव की 3 जून 2025 को आदिवासियों पर पुलिसिया दमन की घटना सामने आयी। अख़बारों की रिपोर्ट के अनुसार गाँव में पड़हा समिति भूमि विवाद सम्बन्धित बैठक का आयोजन किया था, जिसमें क्षेत्र के पूर्व जमींदार के वंशज वैभवलाल शाहदेव को बुलाया गया था, लेकिन उनके बजाय लापुंग थाना प्रभारी संतोष कुमार यादव दो सिपाही समेत पहुंचे। फिर ग्रामीणों के साथ बातचीत हुई और पुलिस के अनुसार ग्रामीणों ने उनपर हमला किया जिसके जवाब में पुलिस ने फायरिंग की। फायरिंग में कम से कम एक आदिवासी घायल हुए। फिर पुलिस ने बयान दिया कि नक्सलियों के प्रभाव में बैठक व हिंसा की गयी और युवाओं को नक्सली भी कहा। पुलिस ने ग्रामीणों पर प्राथमिकी दर्ज कर दी है।

झारखंड जनाधिकार महासभा ने इस घटना पर बयान जारी कर कहा है, 'पुलिस ग्रामीणों पर उनके द्वारा की गयी हिंसा को छुपा रही है और भूमि विवाद में आदिवासियों के अधिकारों के विरुद्ध कार्यवाई कर रही है। कुछ ग्राउंड रिपोर्ट से मामले की सच्चाई सामने आई है, जिसके मुताबिक —

1) गांव के जमीन पर ग्रामीणों के अधिकार पर हो रहे हमले और संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए ग्रामसभा व पड़हा समिति के लोग बैठे थे। बैठक में पड़हा ने पूर्व जमींदार के वंशज वैभावलाल शाहदेव को बुलाया था विवाद पर अपना पक्ष रखने, लेकिन उनके बजाय बिना ग्रामसभा की सहमति के पुलिस स्थल पर पहुंची।

2) थाना प्रभारी समेत दो पुलिसकर्मी बोलेरो गाड़ी से स्थल पर पहुंचे और ग्रामीणों के साथ उनकी बहस हुई। पुलिस का कहना है ग्रामीणों ने उन्हें पीटा और थाना प्रभारी का सर फोड़ दिया, लेकिन ग्रामीण इसका स्पष्ट खंडन कर रहे हैं। ग्रामीण बोल रहे हैं कि भागने के क्रम में थाना प्रभारी गिरे जिससे उनका सर फूटा।

3) पुलिस ने हवा में व ग्रामीणों पर गोली चलाई, जिससे कम-से-कम एक निर्दोष आदिवासी जतरु मुंडा को गोली लगी।

4) घायल आदिवासी को अन्य ग्रामीणों के मदद से खुद इलाज करवाने स्थानीय अस्पताल व RIMS जाना पड़ा। प्रशासन ने कोई सहयोग नहीं किया।

5) पुलिस घायल आदिवासी और उनको अस्पताल पहुंचाने वाले कुछ युवाओं को नक्सली कह रही है और 5 दिनों से उन्हें अस्पताल से वापिस जाने नहीं दे रही है। अस्पताल में पुलिस युवाओं से पूछताछ कर रही है, उनके मोबाइल फोन को चेक कर रही है। एक युवा का फोन भी पुलिस ने रख लिया है।

6) जमीन विवाद से सम्बंधित ग्रामीणों की बैठक को पुलिस नक्सली बैठक के साथ जोड़ रही है और इसी आरोप पर कई लोगों पर प्राथमिकी भी दर्ज की गई है। ग्रामीण इसका स्पष्ट खंडन कर रहे हैं।

इससे साफ है कि पुलिस द्वारा आदिवासियों पर गोली चलाई गई जिसमें एक आदिवासी को गोली लगी। प्रशासन ने इनके इलाज में सहयोग नहीं किया। पुलिसिया हिंसा को छुपाने के लिए पुलिस बिना तथ्यों के पीड़ित समेत अन्य युवाओं को नक्सली करार दे रही है। भूमि अधिकार के मामले को दबाने की कोशिश कर रही है। झारखंड जनाधिकार महासभा जल्द मामले की ज़मीनी तथ्यों के जांच के लिए जाएगी।

इस परिप्रेक्ष्य में झारखंड जनाधिकार महासभा से जुड़े अजय एक्का, अफज़ल अनीस, अलोका कुजूर, अमन मरांडी, अम्बिका यादव, अम्बिता किस्कू, अपूर्वा, अशोक वर्मा, भरत भूषण चौधरी, बिंसय मुंडा, बिरसिंग महतो, चार्लेस मुर्मू, चंद्रदेव हेम्ब्रम, दिनेश मुर्मू, एलिना होरो, जेम्स हेरेंज, जॉर्ज मोनिपल्ली, ज्यां द्रेज़, ज्योति बहन, ज्योति कुजूर, कुमार चन्द्र मार्डी, लीना, मंथन, मनोज भुइयां, मेरी हंसदा, मुन्नी देवी, मीना मुर्मू, नरेश पहाड़िया, प्रवीर पीटर, प्रेम बबलू सोरेन, पी एम टोनी, प्रियाशीला बेसरा, नन्द किशोर गंझू, परन, प्रवीर पीटर, रिया तुलिका पिंगुआ, राजा भाई, रंजीत किंडो, रमेश जेराई, रोज खाखा, रोज मधु तिर्की, रमेश मलतो, रेजिना इन्द्वर, रेशमी देवी, राम कविन्द्र, संदीप प्रधान, संगीता बेक, सिराज दत्ता, शशि कुमार, संतोषी लकड़ा, सिसिलिया लकड़ा, शंकर मलतो, टॉम कावला, टिमोथी मलतो, विनोद कुमार और विवेक कुमार ने राज्य की हेमंत सोरेन सरकार से मांग की है कि आदिवासियों पर गोली चलाने एवं एक आदिवासी को गोली से घायल करने के दोषी पुलिसकर्मियों पर प्राथमिकी दर्ज हो और न्यायसंगत कार्रवाई हो।

युवाओं को नक्सली करार देना तुरंत बंद हो। ग्रामीणों के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी वापिस लिया जाए। पीड़ित व अन्य युवा जो अस्पताल में हैं, उन्हें तुरंत घर भेजा जाए।

इस मामले का वरीय पदाधिकारी द्वारा निष्पक्ष सुपरविजन करवाया जाए और जांच के सभी तथ्यों को पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक किया जाए। साथ ही, इस पूरे मसले पर जांच के लिए एक निष्पक्ष समिति का गठन हो जिसमें ग्रामसभा प्रतिनिधि, पड़हा प्रतिनिधि व TAC सदस्य रहें।

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