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अवसाद में घिरे मां-बाप डेढ़ साल तक गंगाजल और डिटॉल से धोते रहे इनकम टैक्स अधिकारी बेटे का शव, ममी बन गई लाश तब भी करते रहे जिंदा होने का दावा

Janjwar Desk
24 Sep 2022 6:44 AM GMT
अवसाद में घिरे मां-बाप डेढ़ साल तक गंगाजल और डिटॉल से धोते रहे इनकम टैक्स अधिकारी बेटे का शव, ममी बन गई लाश तब भी करते रहे जिंदा होने का दावा
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अवसाद में घिरे मां-बाप डेढ़ साल तक गंगाजल और डिटॉल से धोते रहे इनकम टैक्स अधिकारी बेटे का शव, ममी बन गई लाश तब भी करते रहे जिंदा होने का दावा

Kanpur news : विमलेश की मां कहती है, ‘मैने अपने बेटे की धड़कन सुनी थी, इसलिए उसे अपने पास रखकर देखभाल कर रहे थे।’ विमलेश के पिता भी मानते हैं कि अगर बेटा मरा होता तो बदबू आती, वह जिंदा था, इसलिए उसकी देखभाल करते रहे....

Kanpur news : 'डेढ़ साल से मेरा बेटा इसी हाल में है। हमने उसके शरीर पर कोई केमिकल नहीं लगाया है। शरीर को गंगाजल से पोंछते थे। शुरूआत में कुछ महीने बदबू आई, लेकिन कुछ माह बाद ही बदबू आनी बंद हो गई। हमारा बेटा जिंदा है।' यह बातें मृतक विमलेश के पिता राम औतार और मां ने जांच टीम से कही। रावतपुर थाना क्षेत्र के रोशन नगर के रहने वाले विमलेश हैदराबाद की नौकरी से 2019 में बीमारी के चलते अवकाश पर घर आये थे, लेकिन इसके बाद वे ड्यूटी पर नहीं पहुँचे।

मृतक विमलेश सोनकर अहमदाबाद में इनकम टैक्स में डबल एओ के पद पर तैनात थे। परिजनों का मानना है कि विमलेश अभी भी जीवित है, जबकि उसे कोरोना काल में 18 अप्रैल 2021 में ही मृत घोषित किया जा चुका था। जांच करने पहुंची सीएमओ और डॉक्टरों की टीम इस मामले को देखकर हैरत में है। मृतक विमलेश सोनकर को कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 22 अप्रैल 2021 को तबीयत बिगड़ने पर मोती हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया था, जहां इलाज के दौरान 22 अप्रैल 2021 को उनकी मौत हो गई थी। उसेका डेथ सर्टिफिकेट भी परिवार को दिया गया था।

पिछले साल अप्रैल से ड्यूटी पर न जाने की वजह से विभाग के अधिकारियों ने परिजनों से उनके बीमार होने का प्रमाणपत्र मांगा। पत्नी मितालीने उन्हें जवाब दिया कि घर में ही उनका इलाज चल रहा है। उनका मेडिकल सार्टिफिकेट नहीं बन पा रहा है।

जानकारी के मुताबिक 22 अप्रैल 2021 को जब विमलेश का परिवार उसके अंतिम संस्कार की तैयारी कर ही रहा था तभी शव का दिल धड़कने की बात कह परिवार ने अंतिम संस्कार टाल दिया और उसे श्मशान घाट से घर लेकर आ गये। जानकारी के मुताबिक विमलेश सोनकर अपनी पत्नी मिताली के साथ रहते थे। मिताली को.ऑपरेटिव बैंक में जॉब करती हैं। दोनो की लव मैरिज थी। दावा है कि डेढ़ साल से रोजाना घर पर ऑक्सीजन सिलेंडर भी लाए जाते थे, इसलिए कभी पड़ोसियों तक को विमलेश की मौत का आभास नहीं हुआ, जिसके चलते पुलिस को भी भनक नहीं लगने दी गई।

मृतक विमलेश सोनकर की पत्नी मिताली दीक्षित ने बताया कि वह अनाथ थी। सात साल पहले उसने विमलेश से प्रेम विवाह किया था। दोनों का एक पांच साल का बेटा और तीन वर्ष की बेटी भी है। अपने तीन मंजिला मकान में मिताली ससुर राम औतार, सास रामदुलारी के अलावा देवर सुनील और दिनेश के साथ रहती है। विमलेश साल 2019 में बीमारी के चलते हैदराबाद से घर आए थे, जिसके बाद वह वापस ही नहीं पहुँचे।

17 महीने से विमलेश के शव के साथ उसके पिता रामऔतार, मां रामदुलारी, पत्नी मिताली दीक्षित, 4 साल काबेटा सम्भव और बेटी दृष्टि, भाई सुनील और दिनेश अपनी पत्नियों के साथ रह रहे थे। इन सबको विश्वास था कि विमलेश की सांसें चल रही हैं, बस वह कोमा में चला गया है। एक दिन वह ठीक होकर चलने लगेगा, पहले की तरह जीवन हो जायेगा।

सबसे बड़ी बात तो यह कि विमलेश की पत्नी मिताजी जोकि कोऑपरेटिव बैंक की मैनेजर हैं, रोज सुबह आफिस उसे बताकर जाती थी। यही नहीं सिरहाने बैठकर उसे निहारती भी थी। उसके सिर पर हाथ फेरती थी और उसे बोलकर जाती थी कि जल्दी ही ऑफिस से लौटकर आती हूं। सभी घरवाले मानते थे कि उसकी धड़कन चल रही है। विमलेश के बच्चे उसकी बाॅडी के पास खेलते थे, उसे छूते थे। कहा जा रहा है कि विमलेश के भाई जब अपने काम से घर लौटते थे तो आकर विमलेश से उसका हालचाल पूछते थे। विमलेश की खामोशी के बावजूद वे उसे जीवित मानते रहे। पड़ोसी कहते हैं कि डेढ़ साल तक विमलेश की डेड बाॅडी के साथ रह रहे इस परिवार के बच्चे से लेकर बूढ़े तक को देखने से कहीं से ऐसा नहीं लगता कि कुछ असामान्य है, हां, इस बीच इतना जरूर हुआ कि यह परिवार समाज से कट चुका था।

डेटॉल और गंगाजल से साफ करते रहे शव

बीते साल 2021 की 22 अप्रैल को जब विमलेश का शव माता-पिता को मिला तो दोनों को यकीन नहीं हुआ कि उनका बेटा मर चुका है। वे लोग उसे जिंदा मानकर ही चल रहे थे। कुछ महीने तक तो ऑक्सीजन भी लगाई गई थी। रोजाना शव को गंगाजल और डेटॉल से साफ किया जाता रहा, जिसके कारण शव धीरे-धीरे सूखता चला गया, लेकिन मां बाप की उम्मीदें जिंदा रहीं। दोनों इस कदर अवसाद में बताये जा रहे हैं कि अब तक सच्चाई को मानना ही नहीं चाहते। डॉक्टरों का दावा है कि मां-बाप की देखभाल के चलते विमलेश का शव सड़ नहीं पाया और लंबी-चौड़ी ममी में तब्दील हो गया।

पोस्टमार्टम से इनकार के बाद हुआ अंतिम संस्कार

विमलेश के परिजनों ने शुक्रवार 23 सितंबर की शाम शव का पोस्टमार्टम कराने से इनकार कर दिया था। काफी माथापच्ची के बाद पुलिस को कागजी कार्यवाही पूरी कर शव को परिजनों के हवाले करना पड़ा। इसके बाद परिजनों ने देर शाम पुलिस की मौजूदगी में भैरव घाट स्थित विद्युत शवदाह गृह में विमलेश का अंतिम संस्कार कर दिया। इसके बाद परिजन घर लौट गये।

सभी को बताया जिंदा है विमलेश

विमलेश के परिजन उसके शव को डेढ़ साल तक घर में रखने के सवाल पर एक ही बात कहते थे कि विमलेश जिंदा है। पूरे मुहल्ले के लोगों को भी यही जानकारी थी। पड़ोसी बताते हैं कि विमलेश के इलाज के लिए पांच महीने तक ऑक्सीजन सिलिंडर भी घर आते रहे। विमलेश की मां कहती है, 'मैने अपने बेटे की धड़कन सुनी थी, इसलिए उसे अपने पास रखकर देखभाल कर रहे थे।' विमलेश के पिता भी मानते हैं कि अगर बेटा मरा होता तो बदबू आती। वह जिंदा था, इसलिए उसकी देखभाल करते रहे।

क्या बोले डॉक्टर?

GSVM मेडिकल कॉलेज की एनाटॉमी विभागाध्यक्ष डॉ सुनिति पांडेय ने विमलेश मामले में कहती हैं, शरीर के अंदर काफी सारे बैक्टीरिया होते हैं, जो मौत के आठ घंटे बाद ही अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते हैं। विमलेश की लाश पर बैक्टीरिया और मक्खियों का असर माता-पिता की देखभाल के चलते नहीं हो पाया। शव को हवादार जगह में रखने के कारण भी शव नहीं गला। शरीर भीतर से डीकम्पोजिश होता रहा और मॉइस्चर धीरे-धीरे सूखता रहा। इसी कारण शव नहीं सड़ा और ममीफिकेशन की तरफ बढ़ता रहा।

GSVM मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभाग के HOD डॉ. धनंजय चौधरी बताते हैं, कभी-कभी लोग मौत को स्वीकार नहीं कर पाते। ऐसा अत्यधिक लगाव की वजह से होता है, जब परिजन मौत को मानसिक रूप से स्वीकार नहीं कर पाते। इसे असामान्य शोक की स्थिति कहते हैं। अमूमन ऐसी स्थिति छह महीने रहती है, लेकिन कभी-कभी यह स्थिति अधिक लंबी भी हो सकती है।

कानपुर पुलिस कमिश्नर बीपी जोगदंड ने कहा कि, सीएमओ की मांग पर स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ पुलिस फोर्स मौके पर भेजा गया था। शव को पुलिस की मौजूदगी में कब्जे में लेकर हैलट लाया गया, जहां डॉक्टरों की टीम ने उसका परीक्षण किया। जिसके बाद परिवार की मांग पर पोस्टमार्टम न कर दाह संस्कार करवाया गया है।

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