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पद्मश्री छुटनी देवी : डायन प्रताड़ना की शिकार महिला के इसके खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन जाने की कहानी

Janjwar Desk
26 Jan 2021 4:52 AM GMT
पद्मश्री छुटनी देवी : डायन प्रताड़ना की शिकार महिला के इसके खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन जाने की कहानी
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बीच में छुटनी देवी।    फाइल फोटो।

छुटनी देवी ने अपने जीवन में बहुत मुश्किलों को झेला। उन्होंने डायन बताकर प्रताड़ना, छोटे बच्चों सहित गांव से निर्वासन और यौन हमले की कोशिशों को झेला। इन मुश्किलों ने उन्हें अंदर से मजबूत बना दिया और वे झारखंड सहित पूर्वी राज्यों में डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई की सबसे मुखर आवाज व चेहरा बन गयीं...

जनज्वार। झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले की छुटनी देवी का नाम इस बार के पद्म पुरस्कारों की सूची में है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर सोमवार को घोषित पद्म पुरस्कारों की सूची में पद्म श्री के लिए छुटनी देवी का नाम शामिल है। छुटनी देवी को यह सम्मान डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई में उनके योगदान के कारण देने का निर्णय लिया गया है। छुटनी देवी खुद अपने जीवन में डायन प्रताड़ना की शिकार रहीं। डायन प्रथा की आड़ में उन पर यौन हमले का भी प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने हर मुश्किलों से डट कर मुकाबला किया और बाद के सालों में खुद इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई की प्रतीक बन गयीं।

छुटनी देवी झारखंड के प्रमुख शहर जमशेदपुर से सटे गम्हरिया के बीरबांस पंचायत की भोलाडीह गांव की रहने वाली हैं। शुरुआत में वे छुटनी महतो के नाम से जानी जाती थीं, लेकिन डायन प्रथा के खिलाफ लड़ाई के बाद वे छुटनी देवी के नाम से पहचानी जाने लगीं। मात्र 12 साल की उम्र में धनंजय महतो से उनकी शादी हुई और बाद में वे चार बच्चों की मां बनीं।। जीवन की गाड़ी चल रही थी, इसी दौरान 1995 के सितंबर में उनके पड़ोस की एक बच्ची बीमार हो गयी। इसके बाद उसके परिवार व अन्य दूसरे लोगों ने आरोप लगाया कि छुटनी ने डायन कर दिया है जिससे वह बीमार हो गयी है।

इसके बाद गांव में पंचायत बैठी और उसमें भी छुटनी को डायन करार दिया गया और 500 का जुर्माना लगाया गया। आज से 25 साल पहले एक सामन्य परिवार के लिए यह बड़ी रकम थी लेकिन उन्होंने बिना अपराध के लगाए गए उस जुर्माने को भरा। पर, गांव वालों का रवैया नहीं बदला। गांव वालों ने अंधविश्वास का सहारा लिया और और ओझा-गुणी को बुलाया। ओझा गुणी ने ढकोसला वाला कर्मकांड व मंत्र-तंत्र किया और छुटनी को मैला पिलाने का फैसला लिया गया। यह कहा गया कि अगर वह मानव मल पी लेगी तो बीमार बच्ची पर से डायन का प्रकोप उतर जाएगा।

जब छुटनी महतो ने मैला नहीं पिया तो उन्हें जबरन उसे पिलाने की कोशिश की गयी। इसमें भी लोग विफल रहे तो उनके शरीर पर मैला फेक दिया। इसके बाद उन्हें बच्चों सहित गांव से निकाल दिया गया। वे इलाके के कुछ प्रभावशाली लोगों से मदद मांगने पहुंची लेकिन मदद नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने थाने में रिपोर्ट दर्ज करायी जिसके बाद लोगों की गिरफ्तारी तो हुई लेकिन बाद में वे छूट गए। छुटनी को मुश्किलों से छुटकारा नहीं मिला। इस दौरान उन पर यौन हमले की भी कोशिशें हुई जिसमें अपराधियों को सफलता नहीं मिली।

शादी के 16 साल बाद छुटनी महतो के साथ 1995 में डायन बताकर हिंसा व उत्पीड़न की शुरुआत हुई थी और इस दौरान उनके ससुराल वालों व मायके वालों ने भी साथ नहीं दिया। वे पति को छोड़ कर बच्चों को लेकर जंगल में रहने लगीं। इससे पहले पेड़ में बांध कर उन्हें पीटा गया था और जान लेने की कोशिश हुई।

बाद के दिनों में छुटनी देवी ने डायन पीड़ित महिलाओं का संगठन बनाया और इसमें करीब 70 पीड़िताओं को शामिल किया और संघर्ष की शुरुआत की। उन्हें उनके संघर्ष में फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के प्रेमचंद का पूरा सहयोग मिला। प्रेमचंद अंधविश्वास व डायन प्रथा के खिलाफ लड़ने वाले एक प्रमुख कार्यकर्ता हैं और उनकी कोशिशों से सात राज्यों में डायन प्रथा के खिलाफ कानून बना है। छुटनी को इस कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष को लेकर प्रेमचंद विभिन्न मंचों पर लेकर गए जिससे उनकी कहानी और संघर्ष सबको मालूम हुआ।

पद्मश्री मिलने के सूचना सोमवार की शाम छुटनी देवी के बेटे अतुल चंद्र महतो ने उन्हें जगाकर दी। खुद को पद्मश्री मिलने की सूचना पर उन्होंने कहा कि प्रताड़ित किए जाने के बाद मैंने प्रण लिया था कि न इसे सहन करूंगी और न किसी और को इसका शिकार होने दूंगी। इसके बाद मैंने संघर्ष की शुरुआत की और यह मरते दम तक यह जारी रहेगा।

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