Ground Report: रोहिंग्या शरणार्थियों का छलका दर्द, बोले 'हम सबको इकट्ठा गोली मार दो, हम इसमें खुश हैं'
जम्मू से फैजान मीर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। बांग्लादेश से जान बचाकर भागे रोहिंग्या इन दिनों फिर अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हाल ही में जम्मू के भथिंडी के किरयानी तालाब मोहल्ले में उस वक्त तनाव पैदा हो गया जब पुलिस ने रोहिंग्याओं के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी। बताया जा रहा है कि इसके पीछे की बड़ी वजह यह थी कि ये लोग पुलिस के बुलावे पर अपने काग़ज़ों की जाँच कराने दिन में ही वहाँ गए थे। लेकिन दिनभर चली जाँच के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने कुछ लोगों को तो घर जाने की अनुमति दे दी, लेकिन वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में जमा हुए रोहिंग्या को जम्मू कश्मीर पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतज़ाम के बीच कठुआ ज़िले की उप-जेल हीरानगर के 'होल्डिंग सेंटर' में भेज दिया।
पुलिस ने यह कार्रवाई ऐसे समय में की है जब उनमें से कुछ के पास से फ़र्जी दस्तावेज़, जिनमें आधार कार्ड और पासपोर्ट शामिल हैं, बरामद हुए थे। वहीं दूसरी ओर उनके अपने देश म्यांमार में हाल ही में सैन्य तख्तापलट हुआ है। जनज्वार की टीम ने जम्मू में रोहिंग्याओं से जाकर मुलाकात की और उनका दर्द भी जानने की कोशिश की।
एक रोहिंग्या शरणार्थी रोते हुए जज्वार से कहते हैं, ' मेरे मां-बाप दोनों को पुलिस ले गई। दोनों का अस्पताल में चल रहा था। उनको पता नहीं कहा ले गए हमें भी नहीं पता। हम यही गुजारिश करते हैं कि उन्हें वापस भेज दें या हमें भी वहीं ले जाएं। हमारे देश (म्यांमार) में वैसे ही इतना जुल्म चल रहा है कि सभी मुस्लिमों को काटा जा रहा है। हम भारत इसीलिए आए क्योंकि यहां के हालात ठीक हैं, यहां सभी लोग ठीक हैं। अचानक हमारे ऊपर ये कार्रवाई कर दी है, हमें कुछ पता ही नहीं चला। हमारे मां-बाप को यहां ला दीजिए फिर कहीं भी भेज दीजिए।
एक महिला रोहिंग्या शरणार्थी रोते हुए कहती हैं, साहब आपसे मैं माफी मांगती हूं। हमारा दुनिया में कोई नहीं है। मेरे मां-बाप नहीं हैं। मेरी बेटी और बहन को ले गए। मैं भी खुद बीमार हूं। मेरी बहन को मिला दो। एक बुजुर्ग महिला शरणार्थी कहती हैं, 'मेरे यहां छोटे छोटे बच्चे हैं। हमारे बेटे को ले गए हैं। हमने चार पांच दिन से खाना नहीं खाया है। हमारे पास खाना खिलाने के लिए कुछ नहीं है। छोटे बच्चे रो रहे हैं कि मेरे पापा कहां चले गए। हम हिंदू नहीं हैं, हम मुसलमान हैं। हमने कौन सी गलती की है। हमने न चोरी की है और न ही हमारे पास कोई नौकरी है। हमने कोई गलत नहीं किया है। हम झोपड़ी में रहते हैं। हम गर्मी में ऐसे पड़े रहते हैं। मैं पूरे दिन-रात रोते हैं। हमारे बेटे वापस दे दो। अगर कोई गोली चलानी है तो मुझपर चला दो लेकिन मेरे बेटे को वापस भेज दो।'
जोहरा बीबी नाम की शरणार्थी कहती हैं, हमें स्टेडियम में बुलाया गया। वहां फॉर्म भरने के लिए कहा गया। कोरोना का टेस्ट कराने के लिए कहा गया। वो भी हमने कर दिया। फिर बाद में हमें एक जगह बिठा दिया। फिर हमें घर भेज दिया। लेकिन हमारे परिवार के कुछ लोगों को वहां रख दिया। फिर हमें दूसरे दिन पता चला कि उन्हें हीरानगर जेल में भेजा गया है। हमारे समझ में नहीं आ रहा है कि हमारा कसूर क्या है। हम बर्मा नहीं जाएंगे, हम भारत में ही जहर पीकर मर जाएंगे।
एक अन्य रोहिंग्या शरणार्थी ने एक गर्भवती महिला की ओर इशारा करते हुए बताया कि इनके पति को पकड़कर ले गए हैं। जिस दिन इनके पति को पकड़कर ले गए हैं उसी रात को यह गर्भवती हुई हैं। बच्चा अभी दो तीन का है। इस महिला के पास कोई नहीं है। बच्चे ने अभी तक अपने बाप को नहीं देखा है। इनके पास खाने के लिए चावल भी नहीं हैं। दवाई भी नहीं है। इनके पास यूएन का कार्ड वगैरह सबकुछ है। ये बहुत बड़ी नाइंसाफी है।
एक अन्य रोहिंग्या शरणार्थी ने बताया कि यहां अचानक से कुछ लोग आए। उन्होंने कहा कि आपका फिंगर प्रिंट लेना है। इंटरव्यू लेना है। फिर आपको वापस झुग्गी में भेजा जाएगा। लेकिन वहां ले गए तो कुछ लोग वापस नहीं आए। उन्हें हीरानगर जेल में ले गए। वह ऐसे लोगों को ले गए जिनका इलाज करने के लिए कोई नहीं है। वहां बीमार लोगों को ले गए हैं। वहां कुछ भी हो सकता है। हमारे मां-बाप को भी वहां ले गए हैं। उनके पास यूएनएचसीआर का कार्ड भी है लेकिन उसके बावजूद कह रहे हैं कि इनके पास कोई कार्ड नहीं है। हम अपने बच्चों को अकेले नहीं छोड़ सकते। हम सबको इकट्ठा होकर गोली मार दो, हम राजी हैं।