विजयादशमी के दिन सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा आदिवासी महिषासुर जिंदाबाद, जानें वजह
महिषासुर की प्रतिमा।
जनज्वार। विजयादशमी के दिन रविवार को सोशल मीडिया पर आदिवासी महिषासुर जिंदाबाद सोशल मीडिया ट्रेंड कर रहा हैं। लोग इस हैशटैग पर ट्वीट कर इसका समर्थन व विरोध दोनों जता रहे हैं। विजयादशमी का त्यौहार हिंदू धर्म में देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध करने को लेकर मनाया जाता है और यह मान्यता है कि यह असुरी शक्तियों पर विजय का प्रतीक है।
वहीं, एक वर्ग इस त्यौहार का विरोध करने वाला भी है और वह कहता है कि महिषासुर के वंशज असुर जनजाति के लोग हैं। असुर जनजाति के आदिवासी झारखंड के पलामू सहित कुछ अन्य क्षेत्र, छत्तीसगढ सहित कुछ दूसरे राज्यों में यह जनजाति पायी जाती है। हालांकि इस जनजाति की आबादी बहुत कम है।
Asur are great scientist Engineers Doctors People of their state live happily #आदिवासी_महिषासुर_ज़िंदाबाद pic.twitter.com/kTSgNFjsWZ
— आकाश वाल्मीकि Aakash Valmiki (@aakshValmeki) October 25, 2020
असुर जनजाति को को आदिम जनजाति माना जाता है और यह एक संरक्षित श्रेणी की जनजाति है। स्वयंसेवी संस्था बदलाव फाउंडेशन की एक पुस्तक के अनुसर, 2001 की जनगणना में 9100 आदिम जनजातियों की गणना की गई थी, लेकिन 2011 की जनसंख्या में देश में इनकी कुल संख्या 22459 दर्ज की गई। यानी 10 साल के अंतराल पर उनकी जनसंख्या के दर्ज किए जाने के प्रतिशत में 146 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
Mahishasura, the valiant Warrior of the Asura Adivasi tribe,
— Manoj Tandi (@ManojTandi9) October 25, 2020
Received a tribute of honor and martyrdom on the day of martyrdom.#आदिवासी_महिषासुर_जिंदाबाद@HansrajMeena @TribalArmy pic.twitter.com/4IbkyJTvCf
यह आंकड़ा इस मायने में चकित करने वाला है कि आम तौर पर आदिम जनजातियों की संख्या घटते हुए क्रम में दर्ज की जाती है, लेकिन इस आदिम जनजाति की संख्या बढते क्रम में दर्ज की गई और वह भी पहले से डेढ गुणा अधिक की अतिरिक्त वृद्धि।
वास्तव में जनसंख्या वृद्धि दर कितनी भी अधिक रहने पर किसी भी जनजाति की आबादी इतनी तीव्र गुणात्मक दर से नहीं बढ सकती है। इससे यह पता चलता है कि 2001 की जनगणना में बहुत सारे असुर जनजातियों तक पहुंच नहीं हो पायी होगी इसलिए उनका ब्यौरा दर्ज नहीं हो सका होगा। इसकी वजह है कि वे सुदूर वन क्षेत्र व दुर्गम पहाड़ों पर रहते हैं।
#आदिवासी_महिषासुर_जिंदाबाद shame on those Hindus who are leaving their gods for becoming pray to jihadis.@KanganaRanautFC @sdeo76 @AmitShah @sambitswaraj pic.twitter.com/Tcf8tofLzP
— Sanjiv Agrawal (@SanjivAgrawal5) October 25, 2020
विजयादशमी के मौके पर हर साल यह जनजाति एक बार चर्चा में आती है और पौराणिक प्रतीकों के बहाने एक-दूसरे पर हमले करने और भत्र्सना करने का दौर भी चलता है, लेकिन असुर जनजाति के वास्तविक मुद्दों का कोई समाधान नहीं हो पाता है, जो मूलभूत सुविधाओं से अब भी बहुत दूर हैं।