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Uttarakhand में दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारने का प्रयास, कफल्टा कांड दोहराने की धमकी देने का आरोप

Janjwar Desk
4 May 2022 11:51 AM GMT
Uttarakhand में दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारने का प्रयास, कफल्टा कांड दोहराने की धमकी देने का आरोप
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Uttarakhand में दलित दूल्हे को घोड़ी से उतारने का प्रयास, कफल्टा कांड दोहराने की धमकी देने का आरोप। प्रतीकात्मक तस्वीर

Uttararkhand : ग्राम प्रधान विजय ध्यानी ने बताया कि मजबाखली के एक हिस्से में पहले से ही लोग विवाह के मौके पर घोड़े पर सवार नहीं होते हैं, ग्रामीणों ने दूल्हे से विनम्रतापूर्वक घोड़े से उतरने का आग्रह किया था....

Uttarakhand : उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले (Almora) के सल्ट क्षेत्र में एक दलित दूल्हे को सवर्ण समुदाय द्वारा जबरन घोड़ी से उतारने के प्रयास का सनसनीखेज आरोप लगा है। सल्ट के ग्राम थला तड़ियाल (मौडाली) में कुछ सवर्णों पर दलित दूल्हे (Dalit Groom) को घोड़े से उतरने की कोशिश करने और बारातियों को रोकने का आरोप लगाते हुए दूल्हे के पिता और अन्य लोगों ने एसडीएम को ज्ञापन देकर कार्यवाही की मांग की है। लेकिन इस मामले में ग्राम प्रधान ने दूल्हा पक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज किया है।

जानकारी के मुताबिक ग्राम थला तड़ियाल निवासी दर्शन लाल ने एसडीएम गौरव पांडे को दिए ज्ञापन में कहा, 'मेरे पुत्र विक्रम कुमार का विवाह दो मई को था। बारात प्रस्थान के समय ग्राम थला तडियाल के तोक मजबाखली के कुछ महिलाओं व पुरूषों तारा देवी पत्नी कुबेर सिंह, जिबुली देवी पत्नी रमेश सिंह, रूपा देवी पत्नी शिव सिंह, भगा देवी पत्नी आनन्द सिंह, मना देवी पत्नी रतन सिंह कुबेर सिंह पुत्र मकुन्द सिंह आदि लोगों द्वारा दूल्हे को अनुसूचित जाति के होने के कारण घोड़े से जबरन उतारने की कोशिश की गयी।'

'साथ ही जाति सूचक शब्दों का प्रयोग किया गया और समस्त बारातियों को मारने व कफल्टा काण्ड की धमकी दी गयी कि अगर दुल्हा को घोडे से उतारा नहीं गया तो पूरी बारातियों को कफल्टा काण्ड की तरह ही मार दिया जायेगा। महोदय ऐसा उनके द्वारा बार-बार किया जाता रहा है। और उनके द्वारा यह कहा गया है।'

'आज आप लोगों किस्मत अच्छी है कि आज हमारे गांव के सभी पुरूष वर्ग घर में नहीं हैं, घर पर होते तो आज ही सारी बारातियों को यही पर जिन्दा जला दिया जाता। यदि फिर से कोई अनुसूचित जाति की बारात में दुल्हा घोडे में बैठ कर आयेगा तो सभी बारातियों को जिन्दा जला दिया जायेगा। आज भी शिक्षित समाज में स्वर्ण जाति के लोगों द्वारा जाति-पाति का भेद-भाव किया जा रहा है जो एक अमानवीय व्यवहार है जिन्दा जला दिये जाने व कफल्टा काण्ड की धमकी से समस्त अनुसूचित जाति वर्ग दहशत में आ गया हैं।'

'इन लोगों के विरुद्ध तत्काल नियमानुसार कड़ी कार्यवाही की जाए। कार्यवाही नहीं होने पर समस्त अनुसूचित जाति वर्ग आन्दोलन करने को बाध्य होगा जिसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी शासन प्रशासन की होगी।' ज्ञापन देने वालों में नरेंद्र कुमार, विनोद कुमार, गणेश राम, आनन्द प्रकाश, देव राम, सुरेशचन्द्र, महेश चन्द्र , चिन्ताराम, जीवनराम आदि शामिल थे।


इस मामले में एसडीएम ने कहा कि राजस्व विभाग की टीम मामले की जांच कर रही है। जबकि उधर ग्राम प्रधान विजय ध्यानी ने बताया कि मजबाखली के एक हिस्से में पहले से ही लोग विवाह के मौके पर घोड़े पर सवार नहीं होते हैं। ग्रामीणों ने दूल्हे से विनम्रतापूर्वक घोड़े से उतरने का आग्रह किया था। दूल्हा वहां से घोड़े से ही रवाना हुआ था।

क्या था कफल्टा कांड ?

दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने के लिए कथित रूप से जिस कफल्टा कांड की बात कही जा रही है वह अल्मोड़ा जिले के माथे पर लगा वह कलंक है जो बयालीस साल बाद भी नुमायां हो जाता है।

9 मई 1980 की तारीख उस समय उत्तराखण्ड के इतिहास की सबसे काली तारीख में से एक बनकर रह गई थी जब कुमाऊं के कफल्टा नाम के एक छोटे से गाँव में जातीय दंभ के चलते पड़ोस के बिरलगाँव के चौदह दलितों की नृशंस हत्या कर डाली गई थी। संचार के माध्यमों की हालत उन दिनों यह थी कि इतनी बड़े हत्याकांड का अगले दिन तक जिला प्रशासन व राज्य सरकार को भी पता नहीं चल पाया था।

एक दलित जो किसी तरह बच के भागा था, सीधे रामनगर पहुंचा। वहाँ से बस पकड़ी। दिल्ली में पूरी घटना का विवरण केंद्र सरकार तक जैसे-तैसे पहुंचाया। तो उसके बाद दिल्ली से अल्मोड़ा के तत्कालीन जिलाधिकारी सुरजीत किशोर दास को जो फोन आया वह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव आरके धवन का था।

इसके बाद देश भर का मीडिया यहां इकठ्ठा होने लगा था। दिल्ली से तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिंह को भी मौके पर पहुंचना पड़ा था। तीसरे दिन जब तक डीएम गाँव पहुंचे तब तक सारे शव सड़ांध छोड़ रहे थे। सवर्ण शवों को छूने को भी राजी नहीं थे। दलित गाँव छोड़ के भाग गए थे।

ऐसे शर्मनाक और वीभत्स हत्याकांड के 17 साल बाद आरोपियों (16) को अदालत से सजा हुई। तब तक 3 आरोपियों की मौत हो चुकी थीं। हालांकि इस घटना को आज बयालीस साल हो चुके हैं। लेकिन उत्तराखंड के दलित इस घटना को याद करके आज भी सिहर उठते हैं।

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