Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा : भारत पर पहला असर पंजाब में बढ़ सकता है 'नार्को टेररिज्म'

Janjwar Desk
16 Aug 2021 8:30 PM IST
तालिबान का अफगानिस्तान पर कब्जा : भारत पर पहला असर पंजाब में बढ़ सकता है नार्को टेररिज्म
x

(एक पूर्व आईपीएस अधिकारी ने बताया नशा ही नहीं बल्कि नशे के साथ हथियारों की भी तस्करी हो सकती है)

कश्मीर में आतंकी संगठनों के साथ मिल कर पंजाब में गड़बड़ी फैलाने की भी हो सकती है कोशिश। खासतौर पर जम्मू कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के बाद जिस तरह से हालात बन रहे हैं,इसका फायदा तालिबान उठाने की कोशिश कर सकता है....

मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो/चंडीगढ़। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद भारत खासतौर पर पंजाब पर गहरा असर पड़ सकता है। तालिबान के आने का सबसे बड़ा खतरा तो नार्को टेररिज्म का है। इस बात का अंदेशा पिछले दिनों अमेरिका की पत्रिका फॉरेन पॉलिसी में आस्ट्रेलियाई पत्रकार और लेखक लिन ओ डोनेल ने लिखा है कि दुनिया में कुल हेरोइन का 85 प्रतिशत अफगानिस्तान से निकलता है। इससे तालिबान की सालाना आमदनी तीन अरब डॉलर है।

अफगानिस्तान में पैदा की गई हेरोइन की पैकिंग पाकिस्तान में होती है। यहां से हैडलर ने इसकी सप्लाई कश्मीर में की गई। 22 जुलाई को कश्मीर में दो किलो हेरोइन पकड़ी गई थी, पकड़े गए तस्करों ने भी खुलासा किया था कि अफगानिस्तान से नशा आया है। जब से अफगानिस्तान में अस्थिरता का माहौल बना, हेरोइन की तस्करी तेजी से बढ़ गई है।

इसी साल 14 जुलाई को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने फरीदाबाद हरियाणा में एक घर पर छापा मार कर यहां से 354 किलो हेरोइन पकड़ी। इसकी कीमत 2,500 करोड़ रुपए बताई जा रही है। इस हेरोइन की सप्लाई में एक अफगानी का नाम सामने आ रहा है।

पंजाब के एक पूर्व आईपीएस ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि विश्व स्तर पर हेरोइन सप्लाई की एक चेन काम करती है। अफगान से हेरोइन पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम तट पर आती है। यहां से छोटी नौकाओं से पहले भी जब तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज था,तब भी अफीम की खेती को बढ़ावा दिया जाता था। तालिबान तब इस पर 20 प्रतिशत तक जकात लेता िाा। तब तालिबान के शासन में अफगानिस्तान में अफीम की खेती 25 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। जानकारों का मानना है कि इस बार भी ऐसा हो सकता है।

क्योंकि तालिबान को पैसा चाहिए। यह पैसा उन्हें नशे के कारोबार से आसानी से मिल सकता है। पूर्व आईपीएस अधिकारी ने बताया कि यूं भी पंजाब हमेशा ही नशा तस्करों के निशाने पर रहा है। इसलिए अफगानिस्तान में तालिबान का शासन पंजाब में अवैध नशे को बढ़ा सकता है। इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए।

उन्होंने बताया कि नशा ही नहीं बल्कि नशे के साथ हथियारों की भी तस्करी हो सकती है। किसान आंदोलन की वजह से पंजाब के किसान खासतौर पर युवा खासे गुस्से में हैं। विदेश में बैठे आतंकी संगठन लगातार युवाओं को भड़का रहे हैं। इस तरह से देखा जाए तो अफगानिस्तान में तालिबान की उपस्थिति और ज्यादा चिंता की बात है। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जब पंजाब अलगाववादी ताकतों ने मुस्लिम आतंकियों से मदद ली है। यह मदद पहले पाकिस्तान के रास्ते से मिल रही थी। अब अफगानिस्तान के तालिबान इसमें शामिल हो सकते हैं।

जानकारों का कहना है कि न सिर्फ अफीम बल्कि अफगानिस्तान में पिछले कुछ सालों से क्रिस्टल मेथ का उत्पादन भी तेजी से बढ़ रहा है। यह नशा युवाओं में खासा लोकप्रिय है।

पिछले साल यूरोपियन मॉनिटरिंग सेंटर फॉर ड्रग्स एंड ड्रग एडिक्शन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अफगानिस्‍तान जो कभी हेरोइन के उत्‍पादन में नंबर वन था अब क्रिस्टल मेथ के उत्पादन में आगे बढ़ रहा है।

इधर दूसरी ओर पंजाब के सीनियर पत्रकार और 30 साल से पंजाब को कवर कर रहे सीनियर पत्रकार सुखबीर सिंह का कहना है कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने से पंजाब को चिंतित होना लाजिमी है। क्योंकि अभी तक नार्को टेररिज्म पर तो बात ही नहीं हो रही है। अभी तक तो यह देखा जा रहा है कि तालिबान के आने से भारतीय परियोजना और वहां रह रहे भारतीयों पर क्या असर आ सकता है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी वहां रह रहे सिखों और हिंदुओं की सुरक्षा की मांग उठाई है। सुखबीर सिंह ने बताया कि यह तो तात्कालिक असर है, इसके दूरगामी परिणामों के बारे में पता नहीं क्यों सोचा नहीं जा रहा है। जबकि होना तो यह चाहिए कि इसके दूरगामी परिणाम क्या निकलेंगे। इससे कैसे निपटना है? इसे लेकर भी रणनीति बननी चाहिए। जिसका अभी तक अभाव नजर आ रहा है।

सुखबीर सिंह ने इस बात को लेकर भी चिंता व्यक्त की है कि जम्मू कश्मीर खासतौर पर धारा 370 तोड़ने के बाद वहां एक तरह का गुस्सा है,इसी तरह का गुस्सा पंजाब में भी नजर अा रहा है। अगले साल पंजाब में विधानसभा चुनाव है। किसान आंदोलन की आड़ में बार बार संसद घेराव और लाल किले तक जाने की बातें हो रही है। इसके पीछे किसी न किसी स्तर पर खालिस्तान एजेंडा चलाने वाली ताकतें काम कर रही है।

उनकी पूरी कोशिश है कि पंजाब और कश्मीर के माहौल को खराब किया जाए। इस स्थिति में यदि तालिबान ने खालिस्तानी मूवमेंट को हवा दे दी तो पंजाब की स्थिति खराब हो सकती है। एक और समस्या यह भी है कि तालिबानी कट्टर धार्मिक संगठन है, खालिस्तानी भी सिख धर्म की आड़ में अपना एजेंडा चला रहे हैं। वह तालिबान का उदाहरण देते हुए खालिस्तान मूवमेंट को मजबूत करने की कोशिश कर सकते हैं। इस सब से निपटने की रणनीति पर अभी से काम करना होगा।

इधर पंजाब के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक लेखक मानवेंद्र सिंह मानी ने बताया कि उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार का तालिबान शासन पहले जैसा नहीं होगा। तालिबानी प्रवक्ता बार बार उदारवादी रवैया अपनाने की बात कर रहे हैं। इसलिए इंतजार करना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार स्थिति खराब नहीं होगी।

मानवेंद्र सिंह मानी ने उम्मीद जताई कि संभव है, इस बार तालिबानी नशे को अफगानिस्तान से पूरी तरह से खत्म कर दें। यदि ऐसा होता है तो इसका पंजाब पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। हालांकि उन्होंने कहा कि हमें हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए रणनीति बनानी चाहिए। क्योंकि कब हालात पलट जाए, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।

Next Story

विविध