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उत्तराखण्ड में 8 साल से वर्दी की आड़ में अवैध वसूली का आरोप, हाईकोर्ट में दायर होगी जनहित याचिका
सवालों के घेरे में सीपीयू (Photo : facebook)
सलीम मलिक की रिपोर्ट
देहरादून, जनज्वार। क्या उत्तराखण्ड राज्य में यातायात व्यवस्था को दुरुस्त रखने के नाम पर पुलिस महानिदेशक द्वारा आठ साल पहले गठित सिटी पेट्रोल यूनिट (सीपीयू) पुलिस की वर्दी की आड़ में अब तक अवैध वसूली करती आ रही थी, यह एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है।
यह सवाल सीपीयू के गठन के आज आठ साल के बाद उस समय मौजू हो गया है, जब देहरादून के एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने पुलिस मुख्यालय से सूचना मांगते हुए पुलिस विभाग की इस यूनिट का पोस्टमार्टम शुरू कर दिया। सूचना के जवाब में विभाग द्वारा दी गयी सूचना से सीपीयू के वैधानिक अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। बिना किसी शासनादेश के सीपीयू द्वारा अभी तक के काटे चालान अवैध की श्रेणी में आ गए हैं।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में पुलिस की एक नई यूनिट "सिटी पेट्रोल यूनिट" यानी सीपीयू के नाम से जानी जाती है। आठ साल पहले इस यूनिट का गठन पूर्व डीजीपी बीएस सिद्धूू ने किया था। यह यूनिट यातायात व्यवस्था का काम देखती है तथा यातायात के उल्लंघन करने वालों से जुर्माना भी वसूल करती है। शुरू में इस यूनिट को केवल बड़े शहरों में लागू किया गया था, लेकिन बाद में इसका विस्तार राज्य के हर शहर तक हो गया था। इतना ही नहीं यह यूनिट गुरिल्ला तर्ज पर ग्रामीण इलाकों में भी अपने शिकार की खोज में निकलने लगी।
यातायात सुधारने के नाम पर गठित इस यूनिट को जल्द ही लोगों ने इसकी ताबड़तोड़ चालान काटने की कार्यशैली के कारण सरकार के लिए जबरन वसूली करने वाली संस्था के रूप में देखना शुरू कर दिया। इस यूनिट का प्रदेश में इस कदर आतंक मच गया था कि जनता को कई जगह इसके खिलाफ आंदोलित तक होना पड़ा। जहां यह यूनिट लोगों में अपने व्यवहार के कारण मुसीबत बनी हुई थी तो कहीं-कहीं यह बेलगाम ड्राइव करने वाले शोहदों-उत्पाती लोगों पर भी अंकुश लगा रही थी, लेकिन अब यह पूरी यूनिट ही सवालों के घेरे में खड़ी हो गयी है।
आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश सिंह नेगी ने सीपीयू के गठन को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने सीपीयू के गठन को लेकर जारी शासनादेश सहित कई बिंदुओं पर विभाग से सूचना मांगी, जिसके जवाब में पुलिस महानिदेशक कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी उपमहानिरीक्षक सेंथिल अबूदई कृष्णराज एस ने जानकारी दी है कि सीपीयू के गठन को लेकर अब तक कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ है। सीपीयू का गठन तत्कालीन डीजीपी बीएस सिद्धू के कार्यालय ज्ञाप पत्रांक डीजीपी-अप.- 294/2013 जो कि 19 नवम्बर 2013 को जारी किया गया है, के तहत किया गया है।
एडवोकेट विकेश नेगी का कहना है कि इस आधार पर सीपीयू का गठन पूरी तरह से गैर-कानूनी है। उनके अनुसार इस तरह की पुलिस का उल्लेख पुलिस एक्ट में भी नहीं है। ऐसे में सीपीयू के गठन पर सवाल खड़े होते हैं।
अधिवक्ता व आरटीआई एक्टिविस्ट विकेश नेगी ने सीपीयू के गठन से संबंधित शासनादेश, अधिनियम की छाया प्रति, सीपीयू के अधिकार क्षेत्र, सीपीयू की वर्दी से संबंधित शासनादेश तथा अधिनियम व पुलिस की सभी यूनिट्स (ट्रैफिक पुलिस, सामान्य पुलिस, सिटी पेट्रोल यूनिट) द्वारा चालान से जमा रकम राज्य सरकार के जिस मद में जमा होती है, उससे संबंधित शासनादेश की छायाप्रति मांगी थी।
एडवोकेट विकेश नेगी ने जनज्वार को बताया कि जो सूचना उन्हें मिली, उसके अनुसार डीजीपी के कार्यालय ज्ञाप से 2013 में गठित सीपीयू का प्रमुख कर्तव्य यातायात व्यवस्था को सुचारु रूप से बनाए रखना है। स्ट्रीट क्राइम, चेन स्नेचिंग पर अंकुश तथा यातायात का उल्लंघन करने वाले वाहन चालकों के विरुद्ध प्रवर्तन की कार्रवाई करना है। सीपीयू कर्मी जिले के एसएसपी के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन आते हैं। सीपीयू की वर्दी से संबंधित विवरण की छाया प्रति के साथ पुलिस ने बताया कि सीपीयू यूनिट जनपद पुलिस द्वारा चालान से वसूल की गयी धनराशि को राजकोष में कराया जाता है।
आरटीआई एक्टिविस्ट एडवोकेट विकेश सिंह नेगी का कहना है कि पुलिस एक्ट में इस सीपीयू की वर्दी का कहीं कोई जिक्र नहीं है। इसका सीधा मतलब है कि यह पुलिस एक्ट के बाहर काम करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सीपीयू को मिलने वाली सुविधाओं पर खर्च किया जाने वाला बजट किस निधि से आ रहा है इसकी भी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है।
पुलिस द्वारा दी गयी सूचना को एडवोकेट विकेश नेगी ने आधा-अधूरा माना है। वो इस सूचना से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने इस मामले में प्रथम अपीलीय अधिकारी के यहां अपील की है। एडवोकेट नेगी के अनुसार पुलिस ने उन्हें गोलमोल जवाब दिये हैं। यानि सूचना भ्रामक है। उन्हें सीपीयू के गठन के शासनादेश की छाया प्रति उपलब्ध नहीं करायी गयी। अब पुलिस ने मान लिया कि इस संबंध में कोई शासनादेश नहीं है। पुलिस द्वारा काटे गये चालान को परिवहन विभाग के पास जमा कराया जाता है, जबकि पुलिस का कथन है कि यह राजकोष में जमा कराया जाता है। इस सूचना को लेकर भी भ्रम की स्थिति है।
एडवोकेट विकेश नेगी का दावा है कि यह पूरी तरह गैरकानूनी प्रक्रिया है, जो कि लगातार प्रदेश में आठ साल से धड़ल्ले से चल रही है। वह इस पूरे मामले को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल में जनहित याचिका दायर करने जा रहे हैं।