Aurangabad News : दलित व्यक्ति को बंगला ना बेचने पर हाउसिंग प्रोजेक्ट के मालिक और कर्मचारियों पर FIR
Aurangabad News : महाराष्ट्र के औरंगाबाद के चिकल थाना पुलिस ने प्राइवेट हाउसिंग प्रोजेक्ट साइट के मालिकों और कर्मचारियों पर एक दलित (Dalit) को घर न बेचने पर एफआईआर दर्ज की है। दरअसल यह एक निर्माणाधीन प्राइवेट हाउसिंग प्रोजेक्ट साइट (Housing Project Site) थी जहां पर एक दलित युवक को बंगला बेचने से इनकार कर दिया गया।
शिकायतकर्ता महेंद्र गंडले (Mahendra Gandle) के मुताबिक वह एक घर खरीदना चाहता था और उसके दोस्त ने इस आवास परियोजना का सुझाव दिया था। जिसके बाद महेंद्र गंडले 7 जनवरी को औरंगाबाद में उस स्थान पर गए, जहां उन्हें साइट पर कर्मचारी द्वारा एक नमूना घर दिखाया गया था।
शिकायतकर्ता ने कहा कि जब उन्होंने घर खरीदने में रुचि दिखाई, तो कर्मचारी ने उनकी जाति के बारे में पूछा और जब उन्होंने इसका खुलासा किया, तो कर्मचारी ने कहा कि परियोजना के मालिकों ने उन्हें किसी भी दलित व्यक्ति को संपत्ति नहीं बेचने के लिए कहा था। इसके बाद शिकायतकर्ता थाने पहुंचा जहां उसने शिकायत दर्ज कराई।
पूरे मामले में छह लोगों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम, 1989, धारा 4, धारा 6 और नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।
इस मामले से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा बड़े-बड़े महानगरों में आज भी छुआछूत और जाति को लेकर लोगों की मानसिकता क्या है। देश आगे तो बढ़ रहा है लेकिन जातिवाद अब भी कहीं ना कहीं उसी स्थान पर खड़ा है। चुनाव में अनुसूचित जाति जनजाति को भारी महत्व दिया जाता है लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो आज भी दलित होने के कारण भेदभाव का सामना कर रहा है।
दलित, जिन्हें पहले अछूत कहा जाता था, जिन्हें पहले ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार दबे कुचले वर्ग के नाम से बुलाती थी। यह वही दलित हैं जिनकी भारत में कुल आबादी 16.6 फीसद से ज्यादा है। जिन्हें अब सरकारी आंकड़ों में अनुसूचित जातियों के नाम से जाना जाता है। ये भारत की कुल आबादी का एक चौथाई है।
आधुनिक भारत में जहां सभी को बराबरी का हक मिलने की बात कही जाती है वहीं आज भी दलित समाज को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें उनके हक से वंचित रखा जाता है। यह समस्या आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है। बीसवीं सदी की शुरुआत में दलितों की हालत, सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक तौर पर एक जैसी ही थी। गिने-चुने लोग ही थे, जो दलितों की गिरी हुई हालत से ऊपर उठ सके थे।
डॉक्टर आम्बेडकर की अगुवाई में दलित आंदोलन ने दलितों को कई फ़ायदे मुहैया कराए जिसका फायदा कहीं ना कहीं उन्हें मिलता है पर आज भी कहीं ना कहीं उन्हें दलित होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है।