उत्तराखंड : चमोली की त्रासदी का एक महीना, कारपेट के अंदर छिपा दी गई बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी
जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखंड की त्रासदी को एक महीना पूरा हो गया है। 7 फरवरी 2020 को नंदादेवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने के बाद धौली गंगा में आई बाढ़ से कम से कम 70 लोगों की मौत हुई थी और 135 से ज्यादा लोग लापता हो गए। इनमें ज्यादातर लोग मजदूर थे जो ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। बता दें कि साल 2013 में भी उत्तराखंड में आपदा आयी थी जिसमें भारी जान-माल का नुकसान हुआ था।
इन लगातार हो रही घटनाओं ने पर्यावरण को लेकर चिंताओं को एक बार फिर बढ़ा दिया है। पर्यावरण के मामलों को लंबे समय से कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी ने जनज्वार से बात की। हृदयेश जोशी ने बताया कि उत्तराखंड में त्रासदियों की श्रृंखला में यह एक त्रासदी थी। यह कोई पहली त्रासदी नहीं थी और दुर्भाग्य से ऐसा भी नहीं है कि यह आखिरी त्रासदी है। केवल उत्तराखंड ही नहीं देश और दुनिया के संवेदनशील इलाकों में आपदाओं की संख्या बढ़ रही है और उनकी तीव्रता भी बढ़ रही है। लेकिन उत्तराखंड की आपदा से एक बात साफ हो गई कि एक तो हम पुरानी गलतियों से नहीं सीख रहे हैं और दूसरा हमारा आपदा प्रबंधन बहुत त्रुटिपूर्ण है। इन चीजों पर सरकार काम नहीं कर रही है। आज की स्थिति यह है कि जो लापता लोग अब तक नहीं मिले हैं। वही चीजें फिर से करने के लिए सरकारी अधिकारी वापस लौट रहे हैं। बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी कारपेट के अंदर छिपा दी गई है।
हृदयेश आगे कहते हैं, '2004 में जो सुनामी आई थी उसके बाद आपदा प्रबंधन के लिए एक अथॉरिटी बनाई गई थी। दो दशक का वक्त बीत गया है। हमारे पास एनडीआरएफ, एसडीआरएफ हैं लेकिन वो उस स्तर पर नहीं हैं जिस स्तर पर होनी चाहिए थी। जितना खर्चा हमने आपदा प्रबंधन पर किया है उतना आपदा खर्चा हमने आपदाओं को रोकने के लिए नहीं किया है।' नीचे लिंक पर क्लिक कर देखें चर्चा का पूरा वीडियो-