100 करोड़ टीकाकरण की उपलब्धि के पीछे का सच, देश के 10 करोड़ से अधिक वयस्कों ने नहीं कराया दोबारा वैक्सीनेशन
(100 करोड़ टीके का जश्न मना रही है सरकार)
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
100 Crore Vaccination। देश में 100 करोड़ टीके का जश्न मनाती सरकारें और मीडिया कोविड 19 (Covid 19) के मामले में सरकार की कितनी प्रशंसा कर सकती है, यह सबने देखा। शहर धनयवाद मोदी जी के पोस्टर से पट गए और प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों ने इस सरकारी झूठ को भी खूब हवा दी कि मोदी जी (Narendra Modi) के कुशल नेतृत्व में भारत ऐसा कारनामा करने वाला पहला देश है (India first country to administer 100 crore jabs)। जबकि तथ्य यह है कि हमारे 100 करोड़ टीके के जश्न के बीच ही चीन में 105 करोड़ लोगों को टीके की दोनों डोज़ दी जा चुकी है, भारत में यह संख्या महज 32 करोड़ ही है। हमारे देश में वयस्कों की आबादी 94.4 करोड़ है, और इसमें से महज 34 प्रतिशत आबादी को ही दोनों टीके लगाए जा सके हैं।
यदि आप सरकारी उत्सवों से परे भी सोच सकते हैं, तो यह जानना आवश्यक है कि भारत में टीके की केवल यही समस्या नहीं है, बल्कि मीडिया की चाटुकारिता से दूर एक बड़ी और चिंताजनक खबर यह है कि देश में 10.34 करोड़ लोगों ने टीके की पहली डोज के बाद दूसरे टीके का समय बीतने के बाद भी (10.34 crore have not turned up for second covid jab) अब तक टीका नहीं लगवाया है। शायद ही किसी को आश्चर्य हो कि यह खबर देश मी मीडिया और सरकारी वक्तव्यों से ओझल कर दी गयी है।
अक्टूबर के अंत में चंडीगढ़ प्रशासन के स्वास्थ्य विभाग ने भी बताया था कि वहां 75526 लोग पहले टीके के बाद दूसरे टीके लगवाने की अवधि बीत जाने के बाद भी टीका लगवाने नहीं पहुंचे हैं। इससे पहले लोकलसर्किल (LocalCircle) नामक ऑनलाइन प्लेटफ़ोर्म ने एक देशव्यापी सर्वे के बाद बताया था कि देश की लगभग 7 प्रतिशत आबादी टीके पर विश्वास नहीं करती, और टीके नहीं लगवाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह सर्वेक्षण देश के 311 जिलों के 12810 लोगों पर किया गया था, जिसमें 67 प्रतिशत पुरुष और 33 प्रतिशत महिलायें हैं।
कोविड 19 के टीके से जुडी केवल यही समस्या नहीं है कि लोग इसपर भरोसा नहीं कर रहे हैं, बल्कि समस्या यह भी है कि देश के अधिकतर आबादी को कोवैक्सीन (Covaccine) दी गयी है, जिसे आज तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी (not approved by WHO) नहीं मिली है।
मंजूरी नहीं मिलना भी एक कुतूहल और आश्चर्य का विषय है, क्योंकि इस वैश्विक महामारी की रोकथान के जितने भी टीके दुनियाभर में तैयार किये गए हैं, उनमें कोवैक्सीन को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा टीका हो जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इतने लम्बे समय तक मंजूरी नहीं दी हो। सबसे बड़ा प्रश्न यह भी है कि यदि इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन की मंजूरी भविष्य में मिलती भी है तब भी उन लोगों का क्या होगा जिन्होंने मंजूरी से पहले ही वैक्सीन ले ली है।
कोविड 19 के एक टीके के बाद समय बीतने के बाद भी दूसरा टीका नहीं लगवाना, एक तरीके से बिना टीके के समतुल्य है क्योंकि एक टीके के बाद शरीर में एंटीबाडीज बनाते हैं जो धीरे—धीरे ख़त्म होने लगते हैं। यह लोगों की लापरवाही तो है ही, सरकारी तंत्र की भी आपराधिक लापरवाही है। जब, पूरा टीकाकरण कार्यक्रम ऑन-लाइन ऐप के माध्यम से किया जा रहा है, तब निश्चित ही सबके नाम पते सरकारी तंत्र में मौजूद है।
सरकार ने मास्क नहीं लगाने के नाम पर और भीड़ के नाम पर खूब जुर्माना वसूला है। पर इस मामले पर खामोश है। स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस मामले पर ध्यान देने की बात कहा है, पर आज तक कुछ किया नहीं है। हमारे प्रधानमंत्री जी कोविड 19 पर ताली-थाली बजवाते हैं, मोमबत्तियां जलवाते हैं, पर उन्होंने भी कभी इसे नहीं बताया है।
दूसरी तरफ, तमाम जगहों पर कोविड 19 से सम्बंधित सरकारी विज्ञापन प्रधानमंत्री की तस्वीर के साथ लगाए गए हैं, पर उनमें शायद ही कोई ऐसा हो जिसमें बताया गया हो कि टीके की दूसरी डोज क्यों जरूरी है। एक तरफ प्रधानमंत्री समेत पूरा सरकारी तंत्र और मीडिया कोविड 19 के मसले पर मोदी जी को शाबाशी देने पर व्यस्त है और दूसरी तरफ इतने गंभीर मसले पर सब खामोश हैं।