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विमर्श

भारत में वायु प्रदूषण चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है | Why is air pollution not an election issue in India?

Janjwar Desk
11 Jan 2022 12:31 PM IST
भारत में वायु प्रदूषण चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है | Why is air pollution not an election issue in India?
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Air Pollution air pollution causes: चुनाव आते हैं, हंगामे होते हैं, तमाशा होता है, सभी पार्टियां एक अदद घोषणापत्र प्रकाशित करती हैं, नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते हैं – पर अफ़सोस यह है कि हमारे देश में चुनावों में जनता के मुद्दे गायब होते हैं|

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Air Pollution air pollution causes: चुनाव आते हैं, हंगामे होते हैं, तमाशा होता है, सभी पार्टियां एक अदद घोषणापत्र प्रकाशित करती हैं, नेता एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते हैं – पर अफ़सोस यह है कि हमारे देश में चुनावों में जनता के मुद्दे गायब होते हैं| जो जनता महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और पुलिसिया व्यवस्था से त्रस्त रहती है उसे नेता हाईवे, एयरपोर्ट और बांधों का सब्जबाग दिखाते हैं| इन सबके बीच पर्यावरण विनाश का मुद्दा ना तो जनता उठाती है और ना ही नेता कभी उसपर कुछ कहते हैं| वायु प्रदूषण भी एक ऐसा ही मुद्दा है, जिससे जनता परेशान होती है, मरती है, जनता का दम भी फूलता है – पर इस मसले पर खामोश रहती है|

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के तमाम नेता और पूरी भारत सरकार पिछले तीन महीनों से डेरा जमाये बैठी है, तमाम पुरानी परियोजनाओं का दुबारा-तिबारा उद्घाटन किया जा रहा है, प्रधानमंत्री लगातार वाराणसी के दौरे में व्यस्त हैं – पर इसी राज्य के लखनऊ, कानपूर, इलाहाबाद, मेरठ, मुरादाबाद, नॉएडा, गाजियाबाद और वाराणसी जैसे शहर वायु प्रदूषण के सन्दर्भ में सबसे प्रदूषित शहर हैं, जिनपर कोई चर्चा नहीं की जाती| हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लन्दन (Harvard University & University College of London) के वैज्ञानिकों ने वायु प्रदूषण पर विस्तृत अध्ययन कर पिछले वर्ष एक शोधपत्र एनवायर्नमेंटल रिसर्च (Environmental Research) नामक जर्नल में प्रकाशित किया था| इसके अनुसार दुनिया में हरेक वर्ष लगभग 87 लाख असामयिक मौतें केवल इंधन के जलने से उत्पन्न धुएं के कारण होती हैं, और यह आंकड़ा कुल मौत के आंकड़े का 20 प्रतिशत है| इस रिपोर्ट के अनुसार इस सन्दर्भ में सबसे खराब हालत चीन और भारत की है| चीन में केवल इंधन जलने से उत्पन्न धुएं के प्रभाव से 39 लाख मौतें होती हैं, जबकि भारत के लिए यह आंकड़ा 24 लाख है| इस अध्ययन में हमारे देश का राज्यवार विवरण भी है, जिसके अनुसार वायु प्रदूषण से सबसे प्रभावित राज्य उत्तर प्रदेश है जहां वायु प्रदूषण के कारण 47 लाख मौतें प्रतिवर्ष होती हैं, इसके बाद 2.9 लाख मौतों के साथ बिहार का स्थान है| दुनिया के सन्दर्भ में कुल मौतों की तुलना में वायु प्रदूषण के कारण 20 प्रतिशत मौतें होतीं हैं, वहीं भारत के लिए यह संख्या 30.7 प्रतिशत है|

हाल में ही द लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ (The Lancet Planetary Health) नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनिया की 86 प्रतिशत शहरी आबादी अत्यधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में बसती है, यह संख्या 2.5 अरब के लगभग है| इस प्रदूषण के कारण शहरी क्षेत्रों में प्रतिवर्ष 18 लाख से अधिक असामयिक मौतें होती हैं| इस समस्या से पूरी दुनिया ग्रस्त है, पर सबसे अधिक प्रभाव दक्षिण एशिया, मध्य-पूर्व और अफ्रीका में पड़ रहा है| इसमें से सबसे अधिक मौत भारत में होती है|

इसी जर्नल में प्रकाशित एक दूसरे शोधपत्र के अनुसार दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में अस्थमा (Pediatric asthma) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं| अनुमान है कि प्रदूषण के कारण बच्चों में अस्थमा के लगभग 20 लाख नए मामले सामने आते हैं, जिसमें से दो-तिहाई शहरी क्षेत्रों में देखे जाते हैं| इसका कारण उद्योगों और वाहनों से उत्सर्जित होने वाला नाइट्रोजन डाइऑक्साइड है| यह अध्ययन दुनिया के 13000 शहरों के आंकड़ों के आधार पर किया गया है, जिसमें भारत के सभी बड़े शहर शामिल हैं| वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में अस्थमा के सबसे अधिक मामले 760000 चीन में, इसके बाद 350000 भारत में और 240000 मामले अमेरिका में प्रतिवर्ष देखे जाते हैं| विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया में अस्थमा के कुल 26.2 करोड़ मामले थे और इससे 4.61 व्यक्तियों की मौत हो गयी थी| भारत में अस्थमा के कुल 3.4 करोड़ मामले हैं, जिसमें से एक-चौथाई से अधिक बच्चे हैं| हमारे देश में दुनिया के कुल अस्थमा मामलों में से 11 प्रतिशत मामले हैं, पर इससे होने वाली मौतों के सन्दर्भ में भारत का योगदान 42 प्रतिशत है|

तीन वर्ष पहले फ्रांस की एक संस्था ने भारत में अध्ययन कर बताया था कि यहाँ बच्चों में अस्थमा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और इसका सबसे बड़ा कारण बढ़ता वायु प्रदूषण है| पिछले 5 वर्षों के अध्ययन कर इस संस्था ने यह बताया था कि बच्चों में अस्थमा के 90 प्रतिशत मामलों का कारण वायु प्रदूषण है, जबकि वयस्कों में इसका योगदान 50 प्रतिशत ही है|

लगातार वैज्ञानिक वायु प्रदूषण के घातक प्रभाव हमारे सामने रख रहे हैं, पर हमारी आबादी और सरकार इस प्रभावों से उदासीन है| चुनाव होते हैं, सत्ता पहले से अधिक प्रदूषण फैलाती है, पर यह मुद्दा नहीं बनता| दरअसल सत्ता ने और मीडिया ने जनता के मस्तिष्क को इतना प्रदूषित कर दिया है कि अब वास्तविक प्रदूषण किसी को नजर ही नहीं आता, यही देश की सबसे बड़ी विडम्बना है|

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