अलीगढ़ विश्वविद्यालय को गुरुजी मिनी इंडिया कह गए और भक्त मिनी पाकिस्तान कहते नहीं अघाते, आखिर खेल क्या है
पूर्व आईपीएस वीएन राय का विश्लेषण
इन जाड़ों में एक शब्द बार-बार राजनीतिक रूप से इस्तेमाल हो रहा है - 'भ्रमित'। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पर घेरा डालने को आतुर किसान आंदोलन के संदर्भ में, दोनों और से, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के जिम्मेदार मंत्रीगण लगातार आंदोलित किसानों को भ्रमित बताते आ रहे हैं, जबकि तमाम किसान संगठन मोदी सरकार पर तीन किसान बिलों के पीछे उनकी नीयत को लेकर भ्रम फैलाने का आक्षेप मढ़ रहे हैं। डर है कि यह जिद्दी स्टेलमेट कहीं किसी बड़े हिंसक टकराव में न बदल जाए।
कुछ यही शब्दावली पिछले जाड़ों में भी शाहीनबाग़ केंद्रित नागरिकता आंदोलन के संदर्भ में सामने आयी थी, तब मोदी सरकार द्वारा नागरिकता कानून में किये गए सांप्रदायिक संशोधनों के खिलाफ मुस्लिम समुदाय के व्यापक आंदोलन को भी भाजपा सरकार भ्रमित बताते नहीं थकती थी, दूसरी तरफ आंदोलनकारी भी सरकार के प्रचार को भ्रम थोपने की ही कवायद बता रहे थे। दुर्भाग्य से इस रस्साकशी की एक परिणति शहादरा, पूर्वी दिल्ली के ख़ूनी सांप्रदायिक दंगों के रूप में सामने आयी।
काश! प्रधानमंत्री का एक बयान या एक सांकेतिक कदम भ्रम के इस स्व-निर्मित कुहासे को सही अर्थों में छांट पाता! मोदी ने इस हफ्ते अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह को संबोधित करते हुए इस ऐतिहासिक परिसर की विविधता को मिनी इंडिया की संज्ञा देकर सभी को आश्चर्यचकित कर डाला। जबकि, अब तक अनेकों अवसरों पर उनकी पार्टी के विभिन्न स्तरों से इसे मिनी पाकिस्तान कहा जा चुका है। लेकिन, इस नए बयान का देश के मुस्लिम मानस पर असर कितना होगा?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसी अलीगढ़ विश्वविद्यालय परिसर में डॉक्टर कफील खान के राष्ट्रवादी भाषण को तोड़-मरोड़ कर उन्हें गैर जमानती एनएसए का मामला बनाकर जेल भिजवा दिया था। नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन के दमन में पुलिस की बर्बर मुस्लिम विरोधी क़ानूनी मुहिम थमी नहीं है। राज्य में लव जिहाद कानून और पुलिस मुठभेड़ के नाम पर मुस्लिमों को निशाना बनाने का राजनीतिक खेल निर्बाध चल ही रहा है। मोदी संबोधन के तुरंत बाद राज्य सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों में शामिल तीन भाजपा विधायकों पर से आरोप पत्र वापस लेने की कार्यवाही शुरू कर दी है।
इसी तरह, मोदी की सिख गुरु तेगबहादुर के प्रकाश-पर्व के अवसर पर ऐतिहासिक गुरुद्वारा रकाबगंज में पगड़ी पहनकर मत्था टेकने की घटना रही। स्पष्टतः मौजूदा किसान आंदोलन में पगड़ीधारी सिख किसान सबसे अधिक और आगे नजर आते हैं। उन्हें सारी दुनिया के सिख अप्रवासियों का भरपूर समर्थन भी मिल रहा है। दूसरी ओर भाजपा के नेता और समर्थक ही नहीं, मोदी सरकार के मंत्री भी उन्हें खालिस्तानी और विदेशी एजेंट तक कहते आ रहे हैं। उनकी मुख्य मांगों, कृषि कानूनों की निरस्ति और एमएसपी को क़ानूनी जामा पहनाने, को सरकार टालती जा रही है जबकि कड़ाके की ठंड में सड़क पर बैठे हजारों आंदोलनकारियों का धैर्य रोज कठोरतम परीक्षा से गुजरने को मजबूर किया जा रहा है।
मोदी और भाजपा को समझना होगा कि जिस एकतरफा कार्पोरेटपरस्ती और विभाजक हिंदुत्ववादी राजनीति की डगर पर वे चल रहे हैं, उसमें जरूरी नहीं कि टाइट.रोप वाकिंग करता उनका हर कदम हमेशा बिना गंभीर चूक के संपन्न होता जाए। बेकाबू कानून-व्यवस्था के खतरों की मंजिलों की ओर जाने से पहले उन्हें ठहर कर इस दिशा में भी सोचना होगा। विश्व शक्ति बनने की राह में अल्पसंख्यक अस्मिता और कृषि अर्थव्यवस्था को भारतीय राष्ट्र का दुःस्वप्न नहीं, भारतीय सामाजिक आर्थिक विविधता का परचम होना होगा।