मोदी और ट्रंप में गजब समानता, मोदी की भाषा भी जाने-अनजाने ट्रंप की तरह हिंसा और सामाजिक ध्रुवीकरण को देती है बढ़ावा
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
A team of psycholinguists have critically analyzed the languages of Trump and Kamla Harris during their national debate, and found that language of Trump clearly shows his (pseudo) overconfidence, hubris and narcissism. हाल में ही अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति और इस वर्ष के राष्ट्रपति चुनावों में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस के साथ दूसरी बहस में शामिल होने से इनकार कर दिया है। इन दोनों उम्मीदवारों के बीच पहली बहस 10 सितम्बर को फ़िलेडैल्फ़िया में एबीसी न्यूज़ पर हुई थी, जिसमें कमला हैर्रिस का पलड़ा भारी रहा था। बहुत सारी मनोविज्ञान-भाषा विशेषज्ञों (Psycholinguists) ने इस बहस में ट्रम्प और हैरिस के वक्तव्यों की गहन पड़ताल की है और इनके शब्दों के चयन के आधार पर उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण किया है।
“द कन्वर्सेशन” में मैकगिल यूनिवर्सिटी के भाषा वैज्ञानिकों, विवेक अस्टवंश और किंहुई लिऊ ने भी एक ऐसा ही अध्ययन प्रकाशित किया है। इसके अनुसार ट्रम्प ने कमला हैरिस की तुलना में अधिक शब्दों का प्रयोग किया, जबकि हैरिस ने कम पर स्पष्ट शब्दों में अपनी राय रखी। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार अधिक शब्दों का प्रयोग, अनर्गल प्रलाप, या फिर अनुचित शब्दों के प्रयोग का मतलब होता है कि वक्ता मानसिक तौर पर अनिश्चित स्थिति में है, या फिर उसके मन में कुछ और चल रहा है और शब्द कुछ और बयान कर रहे हैं।
ट्रम्प ने बहस के दौरान एक बार भी “कमला” या “हैरिस” का प्रयोग नहीं किया। भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार इसका सीधा सा मतलब यह है कि ट्रम्प जनता को यह संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि कमला हैरिस का उनकी तुलना में कोई अस्तित्व ही नहीं है। ट्रम्प के वक्तव्य लगातार भूतकाल या फिर भविष्य काल से सम्बंधित होते हैं, जबकि कमला हैरिस ने लगातार वर्तमान चुनौतियों और समस्याओं पर ही बात की। ट्रम्प के लिए भूतकाल वह समय है जब वो अमेरिका के राष्ट्रपति थे, और वे लगातार अपने समय की समस्याओं को जो बाईडेन की नाकामियों के तौर पर प्रचारित करते रहे।
बहस ने यह भी जाहिर किया कि डोनाल्ड ट्रम्प एक आत्मकेद्रित और आत्ममुग्ध व्यक्ति हैं, जबकि कमला हैरिस में इस विचारधारा से ठीक विपरीत समाज के साथ चलने का भाव है। ट्रम्प ने अधिकतर वाक्यों को “मैं” से शुरू किया, जबकि हैरिस के अधिकतर वाक्य “हमलोग” से शुरू हो रहे थे। ट्रम्प ने अधिकतर उपलब्धियों के सन्दर्भ में अपने को केंद्र में रखा, जबकि हैरिस की अधिकतर उपलब्धियां सरकार की थीं।
भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार हरेक विषय के केंद्र में स्वयं को ही रखना व्यक्ति में अनावश्यक आत्म-विश्वास, अहंकार, दंभ और आत्ममोह को दर्शाता है। इस बहस के दौरान रूस-उक्रेन युद्ध और इजराइल-हमास युद्ध की चर्चा दोनों प्रतिभागियों ने की पर ट्रम्प ने हैर्रिस के मुकाबले यह चर्चा कई गुना अधिक की। भाषा-वैज्ञानिकों के अनुसार इससे ट्रम्प की हिंसा में रुचि स्पष्ट होती है।
ट्रम्प जैसी ही भाषा प्रधानमंत्री मोदी की भी है, अनर्गल प्रलाप उनकी अमिट पहचान है। मोदी पिछले 10 वर्षों से राहुल गांधी पर बेतुके और आधारहीन बयान दे रहे हैं, पर शायद ही कभी राहुल गांधी को अपने भाषणों में राहुल या गांधी कहा हो। राहुल गांधी के लिए मोदी हमेशा साहबजादे, नवाबजादे जैसे शब्द गढ़ते हैं। भाषणों में मोदी की गारंटी का जिक्र उनकी आत्ममुग्धता को दर्शाता है। उनका हरेक भाषण मैं से ही शुरू होकर इसी पर ख़त्म होता है। भाषा मनोवैज्ञानिकों ने ट्रम्प की भाषा की जितनी भी विशेषताएं बताईं हैं, सभी प्रधानमंत्री मोदी की भाषा में हैं। मोदी की भाषा भी जाने-अनजाने हिंसा और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रही है।
वर्ष 2018 में अमेरिका में एक पुस्तक प्रकाशित की गयी है, फीयर: ट्रंप इन द व्हाइट हाउस। इस पुस्तक के लेखक हैं, बॉब वुडवॉर्ड। बॉब वुडवॉर्ड दुनिया में सबसे प्रमुख खोजी पत्रकारों में एक हैं और पिछले 4 दशकों से अधिक समय से पत्रकारिता से जुड़े है। बॉब वुडवॉर्ड ने अनेक चर्चित किताबें लिखी हैं – आल द प्रेसिडेंट्स मेन, बुश एट वार, द लास्ट ऑफ़ द प्रेसिडेंट्स मेन, द प्राइस ऑफ़ पॉलिटिक्स, स्टेट ऑफ़ डिनायल इनमें प्रमुख हैं।
इस पुस्तक में उन्होंने बताया है कि उन्होंने ट्रम्प के समय व्हाइट हाउस जैसा था, वैसा पहले कभी नहीं रहा। ट्रम्प के बारे में उन्होंने जितना लिखा है, उसकी खासियत यह है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री से बहुत समानता है। बहुत सारे वाक्य तो ऐसे हैं कि यदि नाम और देश हटा दिया जाए तो पूरा भारत का वर्णन है। वुडवॉर्ड ने लिखा है कि ट्रंप तथ्यों पर भरोसा नहीं करते, या तभी भरोसा करते हैं जब तथ्य उनके या उनकी पार्टी के पक्ष में हों। ट्रम्प का मानना है कि आंकड़ें कुछ नहीं होते, और इन्हें अपनी सुविधानुसार कभी भी गढ़ा जा सकता है।
वुडवॉर्ड आगे लिखते हैं कि उन्होंने इसके पहले कभी किसी राष्ट्रपति को देश या दुनिया की वास्तविकता से इतना उदासीन नहीं देखा है। ट्रम्प अपनी हरेक योजना के गुण खुद ही गाते हैं और हरेक योजना को पूरी दुनिया में सबसे अच्छा और सबसे बड़ा बताते हैं। हमारे प्रधानमंत्री भी यही सब करते हैं, सबसे बड़ी मूर्ति, जन-धन योजना, मोदीकेयर योजना, उज्ज्वला योजना, सब दुनिया में सबसे बड़ा और अच्छा है, भले ही इसका लाभ किसी को मिल रहा हो या नहीं मिला रहा हो।
ट्रम्प को लगता है कि दुनियाभर का सारा ज्ञान उनके पास ही है, चुटकियों में हरेक समस्या हल कर सकते हैं। अपने देश में प्रधानमंत्री जी का यही हाल है। चलो मान लिया कि तथाकथित एंटायर पोलिटिकल साइंस से राजनीति का पूरा ज्ञान होगा पर प्रधानमंत्री जी तो इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और विज्ञान पर भी अपना एकाधिकार समझते हैं। ट्रम्प अपने भाषणों में हमेशा अपनी जिन्दगी का उदाहरण देते हैं, भले ही उसका कोई सबूत हो या नहीं हो, जरा याद कीजिये चाय बेचने से लेकर हिमालय पर तपस्या के आज तक कोई सबूत नहीं है। सबूत तो खैर शिक्षा के भी नहीं हैं।
दूसरी तरफ अमेरिका में वॉक्स न्यूज़ ने वर्ष 2019 में डेविड फारिस के इंटरव्यू को प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है, “व्हाई दिस पोलिटिकल साइंटिस्ट थिंक्स द डेमोक्रेट्स हैव टू फाइट डर्टी”। डेविड फारिस रूज़वेल्ट यूनिवर्सिटी में राजनीतिक वैज्ञानिक हैं, और एक पुस्तक प्रकाशित की है, इट इस टाइम टू फाइट डर्टी। इस इंटरव्यू में डेविड फारिस ने अनेक वाक्य ऐसे कहे जिसमें पार्टी का नाम हटा कर पढ़ने पर पूरी स्थिति अपने देश की नजर आती है।
डेविड फारिस बताते हैं, ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ऐसा व्यवहार करती है जैसे उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं हो और न ही भविष्य में उनकी जिम्मेदारी कोई तय करेगा। ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी नीतियों पर चुनाव नहीं लड़ती, बल्कि इनके लिए चुनाव तो एक प्रक्रियात्मक युद्ध है। रिपब्लिकन पार्टी ने पिछले दो दशकों से संविधान में कमियां खोज कर पूरी की पूरी सरकारी संरचना और संवैधानिक संस्थाओं को अपने पक्ष में कर लिया है। यह पार्टी यदि संविधान के अनुसार काम करती भी है तब भी संविधान की सोच और विचारधारा की हत्या करती है।
डेविड फारिस बताते हैं, हम इस समय अमेरिका के पूरे इतिहास के सबसे खतरनाक मोड़ पर हैं। इस समय संवैधानिक संस्थाओं पर लोगों का भरोसा उठ चुका है और लोग चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल उठाने लगे हैं। ट्रम्प प्रशासन देश को राजनैतिक संस्कृति और परंपरा को खतरनाक तरीके से बदलने में कामयाब रहा है।
फारिस का आकलन सही है, केवल नीतियों से चुनाव नहीं जीते जाते और अमेरिका अपने इतिहास के सबसे खतरनाक दौर में है, और शायद हम भी। दुनिया में जब से कट्टर दक्षिणपंथी विचारधारा वाले निरंकुश शासकों का वर्चस्व बढ़ा है, वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक गिरावट राजनीतिक भाषा में देखी जा रही है। इसी हिसक और अश्लील भाषा का प्रसार सोशल मीडिया से घरों तक पहुँच रहा है और समाज पहले से अधिक हिंसक और नैतिक तौर पर कमजोर होता जा रहा है।
संदर्भ:
1. https://theconversation.com/the-trump-harris-debate-shows-how-personality-can-reveal-itself-in-language-238963
2. https://www.nytimes.com/2018/09/05/books/review-fear-trump-in-white-house-bob-woodward.html