हमारे देश का आइना है अमेरिका की राजनीति और समाज | American Politics and Society is mirror image of India
महेंद्र पाण्डेय की रपोर्ट
American Politics and Society is mirror image of India | हमारे देश में झूठ और बेतुकी बातें आग की तरह फैलती हैं, इन्हीं बातों पर मीडिया चर्चा करती है, और अनेक मामलों में न्यायालय भी ऐसी ही बातों पर प्राथमिकता से बहस करते हैं| इसका सबसे बड़ा उदाहरण हाल में ही सामने आया है| भाड़े की और तथाकथित लाभार्थियों की भीड़ से घिरे होने के सुखद अहसास से परे जब देश के प्रधानमंत्री का देश की वास्तविक जनता से जब पाला पड़ा, तब फिर प्रधानमंत्री को अपने जान पर खतरा नजर आया या नहीं, यह तो नहीं पता पर आगे की चुनावी रैलियों में चीखने का एक नया मौका मिल गया| इस मामले में क्या हुआ यह हम देख रहे हैं| अब मुद्दा यह नहीं है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक थी या नहीं, बल्कि मुद्दा है कौन सा नेता कितने महामृत्युंजय मन्त्र का पाठ करवा रहा है| सुरक्षा की चूक का मुद्दा एक हास्यास्पद मोड़ पर है, और जनता को सही में विपक्ष मारना चाहता था, यह जनता के तमाम सोशल मीडिया पोस्ट से जाहिर भी हो रहा है| जनता अचानक से प्रधानमंत्री को हरिशंकर पारसाई के शब्दों में, बेचारा भला आदमी, समझाने लगी है|
छद्म राष्ट्रवाद, धार्मिक उन्माद और अंध-कट्टरवाद के मिश्रण से लबरेज नेता इस दौर में जब राजनैतिक दुनिया में आता है, तो जनता उसे शासक बना देती है| फिर वही शासक उस जनता को तबाह करता रहता है, पर जनता धर्म, हिंसा और उन्माद के अफीम के नशे में चूर रहती है – शासक की क्रूरता बढ़ती जाती है, पर अफीम के नशे में डूबी जनता की प्रतिबद्धता में कमी नहीं आती| अपने देश में ऐसा ही माहौल है, पर पृथ्वी के दूसरे गोलार्ध में बसा अमेरिका में भी राजनीति का स्वरुप यही है| 6 जनवरी को अमेरिका में ट्रम्प के भड़काने के बाद उनके समर्थकों द्वारा कैपिटल (The Cpaitol), यानि संसद पर किये गए हिंसक हमले की पहली बरसी थी| यह हमला धर्म, हिंसा और उन्माद के अफीम का नतीजा है| इस दिन आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति बाईडेन (Jo Biden) ने ट्रम्प (Donald Trump) का नाम लिए बिना ही जोरदार और स्पष्ट शब्दों में उन्हें इसका जिम्मेदार ठहरा दिया|
हमारे देश में अनेक राजनैतिक और सामाजिक विश्लेषक कहते हैं कि हमारे देश में नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद से जिस तरह से समाज में धर्म, हिंसा और कट्टरता का समावेश किया गया है – यदि मोदी सरकार चली भी जाए तो इनका असर अगले कई दशकों तक बना रहेगा| अमेरिका में भी ट्रम्प का ऐसा ही प्रभाव है| यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेरीलैंड (University of Maryland) के साथ मिलकर वाशिंगटन पोस्ट (Washington Post) ने एक सर्वेक्षण किया, इस वर्ष पहली जनवरी को प्रकाशित नतीजों के अनुसार 34 प्रतिशत अमेरिकन मानते है कि सरकार के विरुद्ध हिंसा कोई गुनाह नहीं है| ऐसा मानने वालों में सभी राजनैतिक विचारधारा के लोग हैं – 40 प्रतिशत रिपब्लिकन, 41 प्रतिशत स्वतंत्र और 23 प्रतिशत डेमोक्रेट सरकार के विरुद्ध हिंसा को जायज मानते हैं| ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के 50 प्रतिशत से अधिक समर्थक अमेरिका के प्रजातंत्र पर भरोसा ही नहीं करते, दूसरी तरफ अमेरिका की 60 प्रतिशत से अधिक जनता एक वर्ष पहले संसद पर किये गए हमले के लिए डोनाल्ड ट्रम्प को सीधे तौर पर जिम्मेदार मानती हैं|
चुनावों में हारने के बाद से ट्रम्प ने लगातार यह भ्रम फैलाया कि चुनावों में और इसके नतीजों में बड़े पैमाने पर धांधली के कारण उनकी हार हुई है – हालां कि तमाम कोशिशों के बाद भी ट्रम्प अपने पक्ष में एक भी सबूत या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं| पर, अपने राष्ट्रपति काल के दौरान उन्होंने जनता के सामने लगातार जिस राष्ट्रवाद, धार्मिक कट्टरता, हिंसा और उन्माद का महिमामंडन किया है, वह बिना किसी सबूत के भी अपने देश के चुनाव प्रणाली पर अविश्वास करने लगी है| हाल में ही ऐक्सियोस-मुमेंटीव (Axios-Momentive Survey) नामक संस्था द्वारा किये गए सर्वेक्षण के नतीजे प्रकाशित किये गए हैं| इसके अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक अमेरिकी नागरिक मानते हैं कि जो बाइडेन का राष्ट्रपति चुना जाना वैध नहीं है| इन नतीजों के बाद एक खतरनाक तथ्य उभर का सामने आया है – पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष उन नागरिकों की संख्या कम हो गयी है, जो मानते थे कि ट्रम्प की हार के कारणों का चुनावी प्रक्रिया से कोई नाता नहीं है| वर्ष 2020 में ऐसी आबादी 58 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2021 के अंत तक 55 प्रतिशत ही रह गयी| जाहिर है, ट्रम्प के झूठ का असर व्यापक होता जा रहा है|
इस सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिका की 57 प्रतिशत जनता यह मानती है कि अमेरिकी संसद पर यह आख़िरी हमला नहीं था, बल्कि भविष्य में और भी ऐसे हमले होंगें| पिछले वर्ष अमेरिकी संसद पर हमले के बाद 63 प्रतिशत जनता ने कुछ समय के लिए यह मान लिया था कि अमेरिकी प्रजातंत्र (American Democracy) ख़त्म हो चुका है, पर प्रजातंत्र पर उनका भरोसा धीरे-धीरे वापस आ गया| हमले के बाद से 31 प्रतिशत जनता ने आज तक अमेरिकी प्रजातंत्र पर भरोसा नहीं किया है| सर्वेक्षण के अनुसार, महज 49 प्रतिशत, यानि आधे से भी कम अमेरिकी नागरिक मानते हैं कि अमेरिका में प्रजातंत्र है|
6 जनवरी को पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सन्देश दिया है कि अमेरिकी प्रजातंत्र को उस दिन उतना खतरा नहीं था जब कैपिटल पर हिंसा हो रही थी, बल्कि प्रजातंत्र पर असली खतरा अब है, जब जनता इस हिंसा को सही ठहराने लगी है| जो बाईडेन ने अपने सन्देश में कहा है कि डोनाल्ड ट्रम्प झूठ का एक जाल बन रहे हैं, जिसके अनुसार चुनावों में धांधली की गयी थी| उन्होंने कहा कि, पिछले वर्ष अमेरिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब एक हारा हुआ राष्ट्रपति अपने हिंसक समर्थकों के साथ संसद पर हमला कर सत्ता के हस्तांतरण को बाधित करने का प्रयास कर रहा था, पर वह अपने इरादों में असफल रहा| बाईडेन ने यह भी कहा कि जो कदम-कदम पर झूठ बोलता हो और लगातार जनता को गुमराह करता हो – वह देशभक्त तो कतई नहीं हो सकता है| जो बाईडेन का यह वाक्य तो हमारे देश के सन्दर्भ में भी सटीक बैठता है| ट्रम्प आज भी उसी झूठ के जोश से भरे हैं, जबकि कैपिटल पर हमले के अनेक अभियुक्त भी सीधे तौर पर उन्हें ही हिंसा का जिम्मेदार बताते हैं|
ट्रम्प धार्मिक कट्टरता और नफरत की राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं| आज के दौर में यही गुण नेताओं को महान बनाते हैं| ट्रम्प पूरे अमेरिका को क्रिश्चियनमय करना चाहते हैं और काले लोगों के खिलाफ वे लगातार जहरभरे बयान देते हैं| अब तो उनकी भाषा भी अभद्र और हिंसक हो चुकी है| इसके बाद से उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है| भले ही यह अमेरिका की बात हो पर इसे आप अपने देश के सन्दर्भ में भी देख सकते हैं, जहां लोकतंत्र को तानाशाही बनते हम लगातार देख रहे हैं, पर मूक दर्शक बने हैं| हमारे देश में तो सुरक्षा में चूक का मामला महामृत्युंजय मन्त्र में बदलते देर नहीं लगती और चुनाव के समय नेताओं के सपनों में लगातार भगवान् आने लगते हैं|