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विमर्श

Arms Race : दुनियाभर के 50 से अधिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों की हथियारों पर खर्चे में कटौती की गुहार

Janjwar Desk
15 Dec 2021 7:53 AM GMT
Arms Race : दुनियाभर के 50 से अधिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों की हथियारों पर खर्चे में कटौती की गुहार
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(चीन और भारत दुनिया में सेना पर सबसे अधिक खर्च करने वाले तीन देशों में शामिल हैं)

Arms Race : स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार पिछले वर्ष दुनिया ने हथियारों पर लगभग 2 खरब डॉलर खर्च किया, यह राशि वर्ष 2000 की तुलना में दोगुनी और वर्ष 2019 की तुलना में 2.6 प्रतिशत अधिक है....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Arms Race : दुनिया के 50 से अधिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों ने एक खुले पत्र (Open letter at peace-dividend.org) के माध्यम से दुनिया के सभी देशों से हथियारों की अंधी दौड़ को ख़त्म करने की गुहार लगाई है।इस पत्र के अनुसार दुनिया यदि अगले पांच वर्षों तक हथियारों पर किये जाने वाले खर्चे पर प्रतिवर्ष 2 प्रतिशत की कटौती करती है तब वर्ष 2030 तक मानव जाति के भले के लिए 1 ख़रब डॉलर बचाया जा सकता है।

इस पत्र में बताया गया है कि हथियारों की खरीद में कमी से सरकारें जितनी मुद्रा बचाएंगीं, उसमें से आधा भी यदि संयुक्त राष्ट्र (United Nation) में एक विशेष फंड बनाकर जमा करें तो वर्ष 2030 तक इस कोष में 1 खरब डॉलर से अधिक एकत्रित किया जा सकता है, जिसका उपयोग महामारी की रोकथाम, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और गरीबी को ख़त्म करने में किया जा सकता है|

इस पत्र का समन्वयन इटली के भौतिक शास्त्री कार्ल रोवेल्ली ने मत्तेओ स्मेर्लक (Carlo Rovelli & Matteo Smerlak) के साथ मिलकर किया है, और पीस डिविडेंड कैंपेन की वेबसाइट, peace-dividend.org, पर उपलब्ध है।इसपर हस्ताक्षर करने वालों में भौतिक शास्त्र के नोबेल पुरस्कार प्राप्त 14 वैज्ञानिक, रसायन शास्त्र के 18 वैज्ञानिक, शरीर क्रिया विज्ञान और औषधि के 16 वैज्ञानिक, अर्थशास्त्र के 3 वैज्ञानिक, साहित्य नोबेल पुरस्कार प्राप्त ओल्गा तोकरेजुक (Olga Tokarezuk) (पोलैंड, 2018 में नोबेल पुरस्कार), और शांति पुरस्कार प्राप्त तावाक्कोल कर्मन (Tawakkol Karman) (यमन, 2011 नोबेल शांति पुरस्कार) ने किया है। दलाई लामा (Dalai Lama) ने इसपर हस्ताक्षर तो नहीं किये हैं, पर इसकी प्रशंसा की है और प्रोत्साहित किया है|

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute) के अनुसार पिछले वर्ष दुनिया ने हथियारों पर लगभग 2 ख़रब डॉलर खर्च किया, यह राशि वर्ष 2000 की तुलना में दोगुनी और वर्ष 2019 की तुलना में 2.6 प्रतिशत अधिक है। हथियारों पर सबसे अधिक खर्च करने वाले देशों में भारत तीसरे स्थान पर है।अमेरिका ने पिछले वर्ष इसके लिए 778 अरब डॉलर खर्च किये, इसके बाद चीन ने 252 अरब डॉलर, भारत ने 73 अरब डॉलर, रूस ने 62 अरब और यूनाइटेड किंगडम ने 59 अरब डॉलर खर्च किये। विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार दुनिया के सकल घरेलु उत्पाद का लगभग 2.3 प्रतिशत हथियारों पर खर्च किया जाता है, जबकि भारत के लिए यह संख्या लगभग 3 प्रतिशत है|

पत्र के अनुसार, दुनिया हथियारों की अंधी दौड़ से सुरक्षित नहीं बल्कि पहले से अधिक अशांत होती जा रही है।एक देश दूसरे देश को देखकर हथियारों की खरीद बढाने लगते हैं और एक अंतहीन सिलसिला शुरु होता है।इस दौर में उक्रेन पर रूस के रवैय्ये से, ताईवान के कारण चीन और अमेरिका में बढ़ाते तनाव और भारत की हथियारों के सन्दर्भ में पाकिस्तान और चीन पर बढ़त बनाने की जिद ने हथियारों की खरीद को नए आयाम दिए हैं|

पिछले वर्ष स्टॉकहोम स्थित इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में देशों द्वारा सेना के ऊपर किया जाने वाला खर्च बढ़ता जा रहा है।वर्ष 2019 में सेना के बजट में जो बृद्धि हुई थी, वह वर्ष 2010 के पूरे दशक में सर्वाधिक है।वर्ष 2019 में दुनिया ने सेना के ऊपर 1.9 ख़रब डॉलर का खर्च किया जो वर्ष 2018 की तुलना में 3.6 प्रतिशत अधिक है।

एक और खासियत यह है कि एशिया के दो देश, चीन और भारत, दुनिया में सेना पर सबसे अधिक खर्च करने वाले तीन देशों में शामिल हैं। इस संदर्भ में पहले स्थान पर अमेरिका है, जिसने वर्ष 2019 में सेना पर 732 अरब डॉलर का खर्च किया, जो इससे पहले के वर्ष की तुलना में 5.3 प्रतिशत अधिक है।पूरी दुनिया सेना पर जितना खर्च करती है, उसका 38 प्रतिशत अकेले अमेरिका करता है|

इस महामारी के दौर में अधिकतर देशों के समाज विज्ञानी रक्षा बजट में कटौती कर स्वास्थ्य बजट को बढाने की वकालत कर रहे हैं।दुनिया में बहुत कम ऐसे देश हैं जिनका रक्षा बजट स्वास्थ्य बजट से अधिक है, पर भारत ऐसे ही देशों की कतार में खड़ा है। इस सूची में भारत को छोड़कर कोई भी लोकतांत्रिक देश नहीं है।हमारे देश में सकल घरेलू उत्पाद का महज 1.28 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाता है, जबकि रक्षा सेवाओं पर यह खर्च 2.9 प्रतिशत है।अमेरिका में सकल घरेलु उत्पाद का 14.3 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है, जबकि महज 3.2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च होता है।

इसी तरह चीन में 2.9 प्रतिशत स्वास्थ्य पर और 1.9 प्रतिशत रक्षा पर खर्च होता है।इस सन्दर्भ में भारत की हालत पाकिस्तान और सऊदी अरब जैसी है – पाकिस्तान में स्वास्थ्य और रक्षा बजट क्रमशः 0.5 और 4 प्रतिशत है, जबकि सऊदी अरब में ये आंकड़े क्रमशः 5.2 और 8.8 प्रतिशत है|

सेना पर खर्च के मामले में तो हम अमेरिका और चीन से होड़ कर रहे हैं तो दूसरी तरह स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आमदनी पर आधारित युएनडीपी के ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स में लगातार पिछड़ते जा रहे हैं।स्वास्थ्य सुविधाओं में भी हम बहुत पीछे हैं – अमेरिका, चीन और भारत में प्रति 10000 आबादी पर चिकित्सकों की संख्या क्रमशः 26, 20 और 9 है, प्रति हजार आबादी पर अस्पतालों में उपलब्ध बेड की संख्या क्रमशः 2.8, 4.3 ओर 0.5 है, जबकि प्रति लाख आबादी के लिए उपलब्ध वेंटीलेटर्स की संख्या क्रमशः 48, 30 और 3 है|

जाहिर है हमारे देश की सरकार की प्राथमिकता स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और कृषि जैसे जनता से सीधे जुड़े मामले हैं ही नहीं, बल्कि सरकार पाकिस्तान और चीन के बहाने अपने रक्षा बजट बढाने पर जुडी है, जिससे जनता को कोई फायदा नहीं है।

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