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विमर्श

दुनिया की 72 फीसदी आबादी पर निरंकुश सत्ता कर रही राज, निरंकुश शासकों में प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी शामिल !

Janjwar Desk
7 Oct 2024 11:18 AM GMT
दुनिया की 72 फीसदी आबादी पर निरंकुश सत्ता कर रही राज, निरंकुश शासकों में प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी शामिल !
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file photo

प्रोफ़ेसर केसिलिया मेंजिवर ने अपने साक्षात्कार में प्रजातंत्र के सहारे सत्ता तक पहुंचे निरंकुश शासकों के उदाहरण में भारत के प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी लिया है। दूसरे उदाहरण हंगरी, तुर्कीये, एल साल्वाडोर, निकारागुआ, फिलीपींस, रूस और वेनेज़ुएला के हैं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

Globally, more population is governed by Autocracies than Liberal Democracy – it is new and dangerous trend. वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 में बताया गया था कि पिछले अनेक दशकों के बाद पहली बार ऐसा हुआ है जब पारंपरिक प्रजातंत्र की तुलना में निरंकुश सत्ता वाले देश अधिक हैं और दुनिया की 72 प्रतिशत आबादी प्रजातंत्र से दूर निरंकुश सत्ता के नियंत्रण में है। इस रिपोर्ट के आने के बाद से ऑस्ट्रिया, फ्रांस, नीदरलैंड और नॉर्वे जैसे जीवंत प्रजातंत्र के उदाहरण देशों में भी दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों के सत्ता में पहुँचने के बाद से निरंकुश सत्ता का चक्रव्यूह शुरू हो चुका है।

कोर्नेल यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्रियों द्वारा वर्ल्ड पॉलिटिक्स नामक जर्नल में प्रकाशित अपने अध्ययन में बताया है कि दुनियाभर में निरंकुश सत्ता का तेजी से विस्तार हो रहा है, यहाँ तक कि समृद्ध औद्योगिक देश जो जीवंत प्रजातंत्र के लिए जाने जाते थे, और पूरी दुनिया को प्रजातंत्र का पाठ पढ़ाते थे, अब निरंकुश सत्ता की चपेट में हैं। निरंकुश सत्ता प्रजातांत्रिक व्यवस्था, न्याय प्रणाली, स्वतंत्र मीडिया, सिविल सोसाइटी और संवैधानिक संस्थानों को खोखला कर देती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया में समाज विज्ञान की प्रोफ़ेसर केसिलिया मेंजिवर ने हाल में ही अमेरिकन बिहेवियरल साइंटिस्ट नामक जर्नल के निरंकुश सत्ता से सम्बंधित विशेष अंक का सह-सम्पादन किया है और इसकी भूमिका लिखी है। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा है कि दुनियाभर में निरंकुश शासक पनपते जा रहे हैं। अधिकतर निरंकुश शासक प्रजातांत्रिक तरीके से सत्ता तक पहुंचते हैं और फिर प्रजातांत्रिक तंत्र को खोखला कर अपनी ताकत बढाते हैं। निरंकुश शासक सत्ता तक पहुँचने के लिए या फिर सत्ता में टिके रहने के लिए भय का वातावरण, गलत सूचनाओं का व्यापक प्रसार, प्रजातंत्र की व्यवस्था को खोखला कर, क़ानून-व्यवस्था को भ्रष्ट कर और सामाजिक ध्रुवीकरण वाले हिंसक समूहों को बढ़ावा का सहारा लेते हैं।

भय का प्रसार निरंकुश सत्ता का सबसे खतरनाक अस्त्र होता है। इसमें समाज को दो वर्गों –‘हम” और “वे” – में बाँटकर दूसरे वर्ग के बारे में ऐसी अफवाहें फैलाई जाती हैं जिससे हम उनसे डरने लगें और धीरे-धीरे उन्हें अपना दुश्मन समझने लगें। इसके लिए समय-समय पर झूठी खबरें चलाई जाती हैं और हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया इस काम में विश्व-गुरु बन चुका है। तमाम सामाजिक सिद्धांतों और राजनीति शास्त्र की परिभाषाओं के बाद भी धरातल पर प्रजातंत्र और निरंकुश शासन के बीच बहुत अंतर नहीं है।

प्रजातंत्र की व्यवस्थाओं का उपयोग करते हुए निरंकुश शासकों की संख्या बढ़ती जा रही है। यही कारण है कि निरंकुश शासकों की बढ़ती संख्या के बाद भी प्रजातांत्रिक देशों की सख्या में कमी नहीं आ रही है। प्रोफ़ेसर केसिलिया मेंजिवर ने अपने साक्षात्कार में प्रजातंत्र के सहारे सत्ता तक पहुंचे निरंकुश शासकों के उदाहरण में भारत के प्रधानमंत्री मोदी का नाम भी लिया है। दूसरे उदाहरण हंगरी, तुर्कीये, एल साल्वाडोर, निकारागुआ, फिलीपींस, रूस और वेनेज़ुएला के हैं।

देश के मरे प्रजातंत्र का हाल तो देखिये, संसद एक मजाक भर रह गयी है। अब संसद प्रजातंत्र का मंदिर नहीं, बल्कि बीजेपी का अघोषित मुख्यालय बन गया है। एक बड़ा अंतर यह है कि घोषित मुख्यालय में देश चलाने के क़ानून नहीं पारित होते पर अघोषित मुख्यालय में यह काम बड़ी आसानी से किया जाता है और लगातार किया जा रहा है। जिस देश में जनता अफीम खा कर सो गयी हो, पूरा मीडिया नंगा खड़ा हो, सभी संवैधानिक संस्थाएं अपनी रीढ़ सत्ता के हाथों में सौप चुकी हैं और न्यायालयों के विद्वान न्यायाधीश क़ानून-व्यवस्था की बातें केवल न्यायालय के बाहर अपने भाषणों में सीमित रखते हों – वहां प्रजातंत्र की बात करना ही बेमानी है। देश की सत्ता वर्ष 2016 की नोटबंदी के बाद से आश्वस्त है कि जनता मर भी जाये तब भी उसे केवल मोदी ही दिखाई देंगे, पर आश्चर्य यह है कि इतने सालों बाद भी विपक्ष देश में प्रजातंत्र पर हमले की बात कर रहा है – तथ्य यह है कि देश में प्रजातंत्र का अस्तित्व ही नहीं है और जिसका अस्तित्व ही नहीं है उस पर कैसा हमला?

संसद में अब वही होता है जो सत्ता की मर्जी होती है, दोनों सदनों के सभापति पूरी निष्ठा से सत्ता के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं, और यही इनकी एकमात्र विशेषता है। पूरा मणिपुर जल रहा है, खुलेआम हत्याएं की जा रही हैं, सामूहिक तौर पर शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा है, महिलाओं से सामूहिक बलात्कार किये जा रहे हैं – पर देश की संसद, इसके अध्यक्ष और सत्ता के लिए यह संसद का विषय नहीं है। देश में बेरोजगारी बढ़ रही है और बेरोजगारों में आत्महत्या की दर बढ़ रही है – पर यह संसद का विषय नहीं है। यही हालत किसानों की भी है। संसद में यदि किसी विषय पर चर्चा की भी जाती है तो सरकार के पास आंकड़े नहीं होते।

संसद में सत्ता के पास आंकड़े भले ही नहीं हों पर सडकों पर लगे पोस्टरों में बिना किसी आधार वाले आंकड़े नजर आ जाते हैं। मसलन संसद में भले ही गरीबी के आंकड़े नहीं हों, पर पोस्टरों में 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन, 55 करोड़ लोगों को हरेक वर्ष 5 लाख तक मुफ्त इलाज और 16 करोड़ किसानों को 6000 रुपये की वार्षिक सहायता नजर आती है। इन सबके बीच सत्ता जनता को विकसित भारत और तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का बेशर्म सपना दिखा रही है।

देश में प्रजातंत्र मर चुका है – यह तथ्य अब विपक्षी नेताओं को भी स्वीकार करने की जरूरत है। अब विपक्षी नेताओं को दिल्ली का मोह और जंतर-मंतर रोड से संसद भवन तक पैदल मार्च का मोह त्याग कर जनता के बीच नए सिरे जाना होगा और उन्हें जगाना होगा। यह काम कठिन है पर देश में प्रजातंत्र फिर से बहाल करने का यही एकमात्र तरीका बचा है। हमारी वर्तमान सत्ता तो हिंसा के मामले में अब अंतरराष्ट्रीय तौर पर भी बदनाम हो चली है, फिर प्रजातंत्र की उम्मीद ही बेमानी है।

सन्दर्भ:

1. https://v-dem.net/documents/29/V-dem_democracyreport2023_lowres.pdf

2. Rachel Beatty Riedl et al, Democratic Backsliding, Resilience, and Resistance, World Politics (2024). DOI: 10.1353/wp.0.a917802

3. https://phys.org/news/2024-09-expert-discusses-authoritarian-tactics-presidential.html

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