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विमर्श

जन्मदिवस विशेष : जब राजेंद्र प्रसाद की उत्तर पुस्तिका में एग्जामनर ने दर्ज की थी ऐतिहासिक टिप्पणी

Janjwar Desk
3 Dec 2020 12:17 PM GMT
जन्मदिवस विशेष : जब राजेंद्र प्रसाद की उत्तर पुस्तिका में एग्जामनर ने दर्ज की थी ऐतिहासिक टिप्पणी
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स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देने वाला जिला स्कूल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है, आज यहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं, जिला स्कूल आज अपना स्वर्णिम अतीत को बस याद भर कर रहा है, आज इस स्कूल के कई भवन जिला के शिक्षा विभाग के कब्जे में हैं.....

राजेश पाण्डेय की रिपोर्ट

जनज्वार। आज देश के प्रथम राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जयंती है। इस अवसर पर राजेन्द्र बाबू के बारे में बड़े-बुजुर्गों से सुने कई किस्से और मिथक याद आ रहे हैं। राजेन्द्र बाबू का जन्म बिहार के तत्कालीन सारण जिला और वर्तमान में सीवान जिला के जीरादेई में हुआ था। उनकी हाई स्कूल तक की शिक्षा-दीक्षा छपरा में हुई थी।

छपरा के जिला स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही परीक्षा में 'EXAMINEE IS BETTER THAN EXAMINER' यह ऐतिहासिक टिप्पणी उनके परीक्षक द्वारा दर्ज की गई थी। वर्ष 1902 में सारण जिला मुख्यालय स्थित जिला स्कूल के पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए आयोजित परीक्षा में तत्कालीन अंग्रेज़ परीक्षक ने उनके आंसरशीट पर यह टिप्पणी दर्ज की थी। वही छात्र आगे जाकर देश का पहले राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद बना। जिन्होंने जिला स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। उनके मैट्रिक परीक्षा की उत्तर पुस्तिका जांच के लिए कोलकाता गई थी, जहां अंग्रेज परीक्षक ने उनके उत्तर पुस्तिका की जांच की थी और राजेंद्र बाबू की मेधा से प्रभावित होकर उन्होंने यह टिप्पणी की थी।

हालांकि, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देने वाला जिला स्कूल आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आज यहां बुनियादी शिक्षण सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। जिला स्कूल आज अपना स्वर्णिम अतीत को बस याद भर कर रहा है। आज इस स्कूल के कई भवन जिला के शिक्षा विभाग के कब्जे में हैं।

देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का जन्म 03 दिसम्बर 1884 में तत्कालीन सारण जिला वर्तमान में सिवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। छपरा के जिला स्कूल में राजेंद्र बाबू का नामांकन वर्ष 1893 में आठवीं वर्ग में हुआ था, जो उस वक्त का प्रारंभिक वर्ग था। उस समय आठवीं वर्ग से उतीर्ण होने के बाद इसी स्कूल में नामांकन के लिए आया करते थे, जिसे अव्वल दर्जा का वर्ग कहा जाता था। राजेंद्र बाबू इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि उन्हें वर्ग आठ से सीधे वर्ग नौ में प्रोमोट कर दिया गया था।

उन्होंने इसी जिला स्कूल से 1902 में एंट्रेस की परीक्षा दी थी, तत्कालीन जिसमें पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आसाम, बर्मा और नेपाल के पूरे इलाके के विद्यार्थोयों में प्रथम स्थान प्राप्त कर उन्होंने अपने प्रान्त का नाम रौशन किया था। लेकिन लाख प्रयास करने के बाद भी वो उत्तर पुस्तिका कोलकाता से बिहार नहीं आ सका है, जिसमें अंग्रेज परीक्षक ने वह ऐतिहासिक टिप्पणी दर्ज की है।

राजेन्द्र बाबू के बारे में एक यह भी कहा जाता है कि उन्होंने गरीबी के कारण लैंप पोस्ट के नीचे पढ़ाई की थी। हालांकि यह एक मिथक की तरह है, क्योंकि राजेन्द्र बाबू इतने गरीब परिवार से नहीं आते थे। जीरादेई में उनका पैतृक मकान आज बिहार सरकार के जिम्मे है और राज्य का पुरातत्व विभाग उसकी देखभाल करता है। यह घर काफी बड़ा है और उस जमाने में भी पक्का का बना हुआ है। इस घर मे कई कमरे हैं। यहां उनसे जुड़ी स्मृतियों को संजो कर रखा गया है। उनके कमरे में आज भी उनका पलँग, उनकी स्टडी टेबल आदि को संभाल कर रखा गया है।

राजेन्द्र बाबू के बड़े भाई महेंद्र बाबू भी एक बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे और छपरा से उनकी कई स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यहां महेंद्र मंदिर ट्रस्ट उनके नाम पर बना हुआ है, जहां हर वर्ष उनकी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। राजेन्द्र बाबू के नाम पर छपरा के राजेन्द्र कॉलेज, राजेन्द्र कॉलेजिएट स्कूल सहित बिहार में कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई है।

राजेन्द्र बाबू ने संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में बखूबी अपनी भूमिका निभाई थी। इसके अलावा वे कांग्रेस के भी अध्यक्ष रहे थे। स्वतंत्रता आंदोलन में उनका अहम योगदान था और देश के आजाद होने के बाद वे प्रथम राष्ट्रपति बनाए गए थे।

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