मोदीराज में भाजपा समर्थक खुलेआम कर रहे अल्पसंख्यकों पर हमले, ह्यूमैन राइट्स वाच की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
As per the Global Analysis 2023, released by the Human Rights Watch recently, mild cracks appeared in Authoritarian states, and it is a good news for global Human Rights. ह्यूमन राइट्स वाच ने हाल में ही ग्लोबल एनालिसिस 2023 को प्रकाशित किया है, जिसमें वर्ष 2022 में वैश्विक मानवाधिकार की स्थिति का आकलन प्रस्तुत है। इसके अनुसार कुछ देशों की निरंकुश सत्ता के विरुद्ध आवाजें बुलंद होने लगी हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि क्रूर और निष्ठुर सत्ता के विरुद्ध आवाज उठाई जा सकती है, विरोध किया जा सकता है। इसके बाद भी वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। अफगानिस्तान और म्यांमार में मानवाधिकार के साथ ही जीने के अधिकार का भी हनन किया जा रहा है, पर दुनिया खामोश है। चीन में लाखों उगियार और तुर्किक मुस्लिमों को गुलामों जैसी स्थिति में रखा जा रहा है।
ह्यूमन राइट्स वाच की प्रमुख टिराना हसन के अनुसार कुछ देशों में जहां निरंकुश सत्ता के विरुद्ध कभी जनता खड़ी नहीं होती थी, वहां भी बड़े आन्दोलन और प्रदर्शन होते रहे। चीन में ही जीरो-कोविड के नाम पर लगाए गए सख्त प्रतिबंधों के खिलाफ अनेक शहरों में सड़कों पर बड़े प्रदर्शन किया गए। इरान में 22 वर्षीय मेहसा अमिनी की पुलिस द्वारा हत्या के बाद लगभग पूरी आबादी सड़कों पर उतर गयी। इरान जैसे निरंकुश देश में आन्दोलन की बात सोची भी नहीं जा सकती थी, पर इस आन्दोलन में महिलायें, पुरुष और बच्चे भी शामिल रहे, खिलाड़ियों और कलाकारों ने भी सक्रिय हिस्सा लिया। टिराना हसन के अनुसार कुछ घटनाओं के बाद आन्दोलन और प्रदर्शन किये जाते हैं, पर पूरी तरीके से मानवाधिकार की बहाली के लिए ऐसे आन्दोलनों को वैश्विक सहायता की जरूरत होती है, पर दुनिया इन आन्दोलनों को अनदेखा करती है।
दूसरी तरफ जब बात किसी यूरोपीय देश की आती है तब पूरा यूरोप, अमेरिका और दूसरे बड़े देश मदद के लिए एकजुट हो जाते हैं। यह उदाहरण रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले के बाद से लगातार स्पष्ट हो रहा है। यूक्रेन की हरसंभव मदद के लिए लगभग सभी देश खड़े हैं। उनके शरणार्थियों की मदद, रूस के खिलाफ युद्ध अपराधों की जांच और रूस पर तमाम प्रतिबंधों को थोपने में दुनिया ने कोई समय नहीं गंवाया। अनेक दशकों के बाद किसी देश की मदद के लिए इस तरह का अंतरराष्ट्रीय सहयोग नजर आया।
मानवाधिकार की खातिर अंतरराष्ट्रीय साझीदारी में शामिल इन देशों को वर्ष 2023 में यह जरूर सोचना चाहिए कि रूस द्वारा वर्ष 2014 में यूक्रेन पर हमले के समय और वर्ष 2016 में सीरिया पर हमले के समय भी यदि ऐसी साझीदारी और तत्परता दिखाई जाती तब शायद स्थिति इतनी खराब नहीं होती। आज भी अफगानिस्तान, म्यांमार, फिलिस्तीन और इथियोपिया जैसे देशों में मानवाधिकार के बड़े पैमाने पर हनन के बाद भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय चुपचाप बैठकर तमाशा देखता है।
वर्ष 2022 महिला अधिकारों के लिए बहुत ही खराब रहा। अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं से सारे अधिकार छीन लिए गए और अमेरिका में गर्भपात सम्बंधित क़ानून को निरस्त कर दिया गया। पर, दूसरी तरफ मेक्सिको, अर्जेंटीना और कोलंबिया जैसे अनेक दक्षिण अमेरिकी देशों में गर्भपात से सम्बंधित क़ानून का दायरा बढ़ाया भी गया।
इस रिपोर्ट में भारत के बारे में बताया गया है कि बीजेपी सरकार लगातार अल्पसंख्यकों को कुचलने का कम कर रही है और इसके समर्थक बिना किसी भय के अल्पसंख्यकों पर हमले करते हैं। बीजेपी की धार्मिक और छद्म राष्ट्रीयता की भावना अब न्याय व्यवस्था और नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन जैसे संवैधानिक संस्थाओं में भी स्पष्ट होने लगी है। न्याय व्यवस्था भारी-भरकम बुलडोज़र के नीचे दब गयी है और अल्पसंख्यकों पर बुलडोज़र चलाने के समर्थन में जनता और मीडिया खडी रहती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और स्वतंत्र पत्रकारों की आवाज को पुलिस और प्रशासन कुचल रहे हैं।
देश में एक पुलिस राज स्थापित हो गया है, और वह कभी भी किसी की भी हत्या करने के लिए स्वतंत्र है। वर्ष 2022 के पहले 9 महीनों के दौरान ही पुलिस कस्टडी में 147 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1882 मौतें और पुलिस द्वारा तथाकथित एनकाउंटर में 119 मौतें दर्ज की गयी हैं। जम्मू कश्मीर में अभिव्यक्ति की आजादी और आन्दोलनों के अधिकार को कुचलने के लिए क्रूरता का पैमाना बढ़ गया है। लम्बे से से कश्मीरी पंडितों के साथ खड़े होने का दावा करने वाले नेता और राजनीतिक दल इन्ही पंडितों की हत्या के बाद इन्हें धमकाने लगे हैं।
जनवरी 2022 में बीजेपी समर्थित कुछ तथाकथित पत्रकारों ने कश्मीर प्रेस क्लब पर हमला कर उसपर अधिकार जमा लिया। अगस्त 2019 के बाद से अब तक 35 से अधिक पत्रकारों पर हिंसा की गयी है या उन्हें पुलिस द्वारा प्रताड़ित किया गया है और अनेक पत्रकार जेलों में बंद हैं। देश में मानवाधिकार हनन करने वाली भारत सरकार ने अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी मानवाधिकार हनन करने वाली सरकारों के साथ एकजुटता दिखाई है। संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार, बांग्लादेश, सीरिया और रूस में मानवाधिकार हनन के लिए सरकारों की भर्त्सना के सभी मामलों में भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया।
जीवंत लोकतंत्र के प्रतीक के तौर पर दशकों से यूनाइटेड किंगडम का नाम सबसे आगे रहा है। पर, बोरिस जॉनसन से लेकर ऋषि सुनक के कार्यकाल तक देश ऐसी स्थिति में पहुँच गया जब ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार यह देश मानवाधिकार हनन करने वाले देशों की सूचि में शामिल होने के कगार पर पहुँच गया है। वहां मानवाधिकार को सुरक्षित रखने वाले अधिकतर कानूनों को निरस्त कर दिया गया है, या फिर निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। वहां भी अभिव्यक्ति, प्रदर्शन और आन्दोलन पर प्रतिबन्ध लगाए जा रहे हैं।
ह्यूमन राइट्स वाच के अनुसार सबसे आश्चर्यजनक मामला ईजिप्ट के जेल में बंद ब्रिटिश मूल के मानवाधिकार कार्यकर्ता अला अब्द अलफतह का है। ईजिप्ट में जब जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित वैश्विक सम्मलेन आयोजित किया जा रहा था, तब उसमें हिस्सा लेने पहुंचे प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बार बार कहा था कि वे ईजिप्ट में जेल में बंद अला अब्द अलफतह से जरूर व्यक्तिगत तौर पर मिलेंगे और जेल से निकालने का प्रयास भी करेंगे, पर ऋषि सुनक ईजिप्ट में ना तो जेल में मिलने पहुंचे और ना ही अधिकारियों से रिहाई की कोई बात की। ईजिप्ट से लौटने के बाद उन्होंने कभी इस बारे कभी चर्चा भी नहीं की।
निरंकुश सत्ता के विरुद्ध वर्ष 2022 में कुछ आवाजें तो उठीं, पर क्या इस वर्ष भी ऐसा होगा और विरोध का सिलसिला चलता रहेगा, यह तो समय ही बताएगा। पर भारत जिससे पारंपरिक प्रजातंत्र में जब लोकतंत्र द्वारा बार-बार निरंकुश सत्ता की वापसी होती है, तब निश्चित तौर पर यह खतरे का संकेत है।