मोदी सरकार के संकटमोचक CJI ने किसान आंदोलन को निपटाने के लिए बनाई कारपोरेट दलालों की कमेटी
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
भारतीय न्यायपालिका की जो थोड़ी सी लज्जा बची हुई थी, मंगलवार को उस लज्जा का झीना आवरण भी तार-तार हो गया जब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) एसए बोबडे ने मोदी सरकार के संकटमोचक की भूमिका निभाते हुए किसान आंदोलन को निपटाने के लिए कारपोरेट के घोषित दलालों को लेकर मध्यस्थता के लिए कमेटी बनाने की घोषणा कर दी। चीफ जस्टिस महोदय ने रंजन गोगोई की तरह अपनी अंतरात्मा का सौदा राज्यसभा की सीट के लिए या राज्यपाल के पद के लिए किया है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर कलंक तो लगा ही दिया है।
सोमवार को चीफ जस्टिस ने सरकार को फटकारने का जो नाटक किया उसका असली स्वरूप मंगलवार को देश के सामने उजागर हो गया जब उन्होंने चार सदस्यीय कमेटी बनाने की बात कही और किसान कानून को होल्ड पर रखने का आदेश दिया। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने सेंट्रल विस्टा परियोजना को भी इसी तरह होल्ड पर रखा था और एक पखवाड़े के बाद ही इस विनाशकारी परियोजना को हरी झंडी दिखा दी थी। उनके पिछले रिकार्ड को देखकर कहा जा सकता है कि कमेटी की नौटंकी की शुरुआत कर वह किसान आंदोलन को समाप्त करना चाहते हैं और फिर अपने आका को खुश करने के लिए हरी झंडी दिखाना चाहते हैं। यह कोई संयोग की बात नहीं कि पिछले दिनों मोदी सरकार के मंत्री गण किसानों को सुप्रीम कोर्ट में जाने की सलाह देते रहे हैं। ये मंत्री जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में उनका अपना आदेश पालक बैठा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया है, जो कि कोर्ट को कानूनों को लेकर रिपोर्ट देगी। इस कमेटी में बेकीयू अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन के अनिल धनवट हिस्सा होंगे। कमेटी के गठन के आदेश के बाद से ही समिति के सदस्यों पर सवाल भी उठने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी में कई ऐसे सदस्य हैं, जोकि पहले ही सरकार के कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। इनमें से कुछ ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करके अपना समर्थन जताया था तो किसी ने कानूनों के पक्ष में बयान दिया था।
कमेटी के सदस्य और बीकेयू के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान पहले कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। 14 दिसंबर को हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु से किसानों ने कृषि मंत्री से मुलाकात की थी। उन्होंने कुछ संशोधनों के साथ कानूनों को लागू करने की मांग की थी। यह किसान संगठन ऑल इंडिया किसान कॉर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले कृषि मंत्री से मिला था। इसके अभी चेयरमैन भूपिंदर सिंह मान हैं। उस समय मान ने कहा था कि कृषि को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सुधारों की आवश्यकता है। हालांकि, किसानों की सुरक्षा के लिए कुछ विसंगतियों को भी ठीक किया जाना चाहिए। इसके अलावा, मान ने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को पत्र लिखा था।इसमें उन्होंने कहा था, ''आज भारत की कृषि व्यवस्था को मुक्त करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में जो तीन कानून पारित किए गए हैं, हम इन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं। हम जानते हैं कि उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में एवं विशेषकर दिल्ली में जारी किसान आंदोलन में शामिल कुछ तत्व इन कृषि कानूनों के बारे में किसानों में गलतफहमियां उत्पन्न करने की कोशिश कर रहे हैं।''
कमेटी के सदस्यों में एक शेतकारी संगठन के अनिल धनवट भी हैं। उन्होंने पिछले महीने कहा था कि केंद्र सरकार को कृषि कानूनों को वापस नहीं लेना चाहिए। हालांकि, किसानों की मांग को ध्यान में रखते हुए कुछ संशोधन करने चाहिए। संगठन के अध्यक्ष अनिल धनवत ने कहा था कि सरकार ने कानूनों को पारित कराने से पहले किसानों से विस्तार से बात नहीं की, जिसकी वजह से गलत सूचना फैली। उन्होंने कहा, ''इन कानूनों को वापस लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसने किसानों के लिए अवसरों को पूरी तरह से बढ़ा दिया है।'' वहीं, कमेटी के एक अन्य सदस्य अशोक गुलाटी ने इंडियन एक्सप्रेस में आर्टिकल लिख कर कहा था कि इन कानूनों का मतलब किसानों को अपनी उपज बेचने और खरीदने के लिए खरीदारों को अधिक विकल्प एवं स्वतंत्रता प्रदान करना है, जिससे एग्रीकल्चरल मार्केटिंग में कॉम्प्टीशन पैदा हो सके। यह प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को प्रोत्साहित करेगा, जिससे बर्बादी में कमी और मूल्य के अस्थिरता को कम करने में मदद मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के सदस्यों पर राजनैतिक दलों ने भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। हालांकि, अभी तक किसी नेता का बयान नहीं आया है, लेकिन कांग्रेस ने ट्विटर हैंडल पर सवाल उठाए हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ट्विटर पर लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सभी सदस्य पहले ही कृषि बिल का समर्थन कर चुके हैं। इसके अलावा, उसमें कुछ आर्टिकल्स और खबरों के लिंक हैं जोकि कमेटी के सदस्यों से जुड़े हुए हैं। ट्वीट में सरकार पर किसानों के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया गया है। वहीं, कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने भी कहा कि वे किसानों के साथ बातचीत करेंगे और कमेटी में कौन-कौन सदस्य शामिल हैं, इसके बाद ही आगे की रणनीति तय करेंगे।
सीधा मतलब है कि मोदी सरकार के निर्देश पर कमेटी में खास तौर पर ऐसे लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने चुनकर रखा है जो कारपोरेट के हितों का समर्थन करते हैं और जो एक स्वर में किसानों की मांग को ठुकराने का परामर्श देने के लिए तैयार हैं। अदालत ने अपनी विश्वसनीयता को दांव पर लगाते हुए किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन को समाप्त करने की मोदी सरकार की साजिश में अपना योगदान किया है। जिस मसले का हल सरकार को करना चाहिए, उस मसले को टालने के लिए मोदी सरकार हमेशा की तरह न्यायपालिका का इस्तेमाल करना चाहती है। वह पहले भी लोकतंत्र विरोधी फैसलों को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दुरुपयोग कर चुकी है। इतना तो तय है कि किसान नेता मोदी सरकार और सुप्रीम कोर्ट के गठजोड़ को समझ रहे हैं और वे इस झांसे में नहीं आएंगे।