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विमर्श

महिलाओं की देश और समाज में स्थिति तभी सुधरेगी जब उन्हें अपने घरों में मिलेगा सम्मान

Janjwar Desk
12 Oct 2020 8:35 AM GMT
महिलाओं की देश और समाज में स्थिति तभी सुधरेगी जब उन्हें अपने घरों में मिलेगा  सम्मान
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कोरोना के बाद रिन्यूवल एनर्जी के क्षेत्र में भारत ने की वापसी, मगर महिलाओं की भागीदारी अब तक के सबसे निचले स्तर पर

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने विगत दिनों महिलाओं पर होने वाले अपराध से जुड़े आकड़ें जारी किए, यह बताते हैं कि महिलाओं पर होने वाले शोषण से जुडे़ सामाजिक व व्यक्तिगत अपराधों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.....

प्रदीप श्रीवास्तव की टिप्पणी

निर्भया केस के बाद से उठे जन आंदोलन और महिलाओं की आवाज़ के कारण महिला विरोधी कानूनों में भारी बदलाव किए गए, जिससे ऐसा लगने लगा कि शोषण को लेकर महिलाओं की स्थिति में काफ़ी सुधार होगा। लेकिन, एनसीआरबी की मानें तो साल दर साल महिलाओं पर होने वाले अपराध बढ़ रहे हैं। जो, बताते हैं कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप के बदलाव किए बिना सिर्फ़ कानून बदलने से हालात नहीं बदलते हैं। नहीं तो हमारे देश में निर्भया केस के बाद हाथरस गैंग रेप जैसे केस नहीं होते।

वैज्ञानिक प्रगति ने समाज के ढांचे में काफी बदलाव किया है, लेकिन कुछ मामलों में हम आज भी सामंती युग में जी रहे हैं। पूंजीवाद को महिलाओं के अधिकार का लंबरदार माना जाता है, लेकिन बहुत से मूल्यों के मामलों में एशिया के अलावा दुनिया के बहुत से देशों में पूंजीवाद ही महिलाओं की पैर की बेड़ी बन गया है। पूंजीवादी समाज आधुनिक के साधन महिलाओं को गुलाम बनाने के मूल्य परोस रहे हैं। निजीकरण व उदारीकरण के दौर में महिलाओं पर होने वाले अपराधों की संख्या में वृद्धि हुई है। इसकी वजह, मुख्यधारा की मीडिया का महिला विरोधी मूल्यों का परोसना है। प्रचार माध्यामों में महिलाओं को पुरूषों से कमतर और भोग की वस्तु दिखाया जाता है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े महिलाओं पर होने वाले सामाजिक अपराधों में वृद्धि दिखाते हैं।

भारत में नारीवादी चेतना का विकास आजादी की लड़ाई तक ही सीमित रहा। उस समय शिक्षा, विधिक एवं प्रशासनिक संस्थाओं की स्थापना, परिवहन एवं संचार के नये साधन, देशी व अंग्रेजी मुद्रण तकनीक और प्रेस में कार्य करने की आजादी महिलाओं की पहुंच से दूर ही रहे, जिनके लिए आज भी संघर्ष जारी है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने विगत दिनों महिलाओं पर होने वाले अपराध से जुड़े आकड़ें जारी किए। यह बताते हैं कि महिलाओं पर होने वाले शोषण से जुडे़ सामाजिक व व्यक्तिगत अपराधों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है।

रिपोर्ट के अनुसार देश भर में 2015 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 3,29,243 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2016 में ये आंकड़ा 3,38,954 पहुंच गया। साल 2017 में यह बढ़कर 3,59,849 हो गया। सन 2018 में भी इसमें बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, इस साल 3,78,277 केस दर्ज किए गए।

महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज मामलों में यौन शोषण, हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ क्रूरता और अपहरण आदि शामिल हैं। महिलाओं पर होने वाले अपराध में उत्तर प्रदेश में अव्वल रहा। उत्तर प्रदेश में 59,445 केस दर्ज किए गए, जबकि महाराष्ट्र 35,497 केस के साथ दूसरे नंबर पर और 30,394 केस के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे नंबर पर रहा। रिपोर्ट की मानें तो 31।9 प्रतिशत महिआलों का शोषण उनके पतियों या नज़दीकी रिश्तेदारों ने किया।

पुरूषवादी सोच हमारे चारों ओर है। लड़कियों को बचपन से सिखाया जाता है कि दब कर रहना चाहिए। पुरूषवादी व गुलामी की सोच से ग्रसित बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं बच्चियों को सिखाती हैं कि जिनसे उनकी शादी होगी, वह पति परमेश्वर के समान होगा। इसीलिए, औरतें घरेलू हिंसा को छिपाती हैं। महिलाओं को बच्चा जनने तक का अधिकार नहीं है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार महिला नसंबदी करीब 95 प्रतिशत और पुरूष नसबंदी 5 प्रतिशत है।

परिवार नियोजन को भी लेकर हमारा समाज पुरूषवादी मानसिकता से ग्रसित है। सरकारी विज्ञापनों का नारा है दो ही बच्चे अच्छे, लेकिन इस नारे के पीछे सोच दो बच्चे यानी एक लड़का और एक लड़की की है। परिवार नियोजन के विज्ञापन के लोगो में माता पिता के साथ प्रतिकात्मक तौर पर दिखाए गए दो बच्चों में, एक बच्चे को फ़्राक पहने हुए और बालों में चोटी किए हुए, जबकि दूसरे को छोटे बाल और हॉफ़ पैंट पहने हुए दिखाया गया। यानी एक लड़का और एक लड़की, एक परिवार के लिए अच्छे हैं। परिणाम, समाज भी संपूर्ण परिवार की परिभाषा एक लड़का या एक लड़की से लगाता है।

मर्दवादी सोच महिलाओं को दोयम दर्ज़े के नागरिक बनने पर मजबूर करती है, जो शोषण के बहुरूपों का शिकार होती हैं, फिर वह चाहे उनके स्वास्थ्य का मामला ही क्यों न हो। दुनियाभर में महिलाओं की मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण पीरियड्स हैं। यह सामान्य प्राकृतिक शरीरिक चक्र है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं। पीरियड्स पर खुलकर बात करने की जगह उसे छिपाने की कोशिश की जाती है। इससे वह कई प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होकर असमय मौत का शिकार हो जाती हैं।

शिक्षा विभाग के अनुसार हमारे देश में हर साल करीब 23 लाख लड़कियां पीरियड्स की शुरुआत होते ही स्कूल छोड़ देती हैं। स्कूलों में लड़कियों को पीरियड्स के दौरान मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिलती हैं। अनहाइजीनिक और असुरक्षित साधनों के प्रयोग की वजह से लड़कियां पीरियड्स के दौरान अनेक संक्रमणों से ग्रस्त हो जाती हैं। महिलाओं के यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन व सर्वाइकल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की चपेट में आने की मुख्य वजह पीरियड्स के समय अनुचित साधनों का उपयोग है। विश्व में हर साल लगभग 8 लाख महिलाओं की मृत्य का कारण पीरियड्स के दौरान उचित साफ सुथरे साधनों का प्रयोग नहीं करना है।

महिलाओं की असमय मौत का एक कारण ब्रेस्ट कैंसर भी है। समाज में फैली भ्रांतियों एवं पुराने मूल्यों के कारण महिलाएं ब्रेस्ट से जुड़ी बातचीत या समस्याओं पर कम ध्यान देती हैं। वहीं, ग्रामीण इलाकों या छोटे शहरों में महिला डाक्टरों का अभाव है, जिस कारण से यह छोटी बीमारी भी एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। दुनिया में हर साल 21 लाख महिलाएं ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित होती हैं। इसमें भी भारत में 1,62,468 महिलाएं इससे पीड़ित होती हैं और प्रत्येक साल ब्रेस्ट कैंसर के कारण 87,090 महिलाएं असमय मौत की शिकार हो जाती हैं।

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