Dharm Sansad : भाजपा की राजनीति का सोचा समझा कार्यक्रम है धर्म संसद, नफरत भड़काना और पार्टी को सत्ता में लाना एकमात्र लक्ष्य
हिमांशु कुमार का विश्लेषण
Dharm Sansad : इस समय धर्म संसद चर्चा में हैं। दो धर्म संसद का आयोजन किया गया। पहली उत्तराखंड (Uttarakhand) के हरिद्वार (Haridwar) और दूसरी छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के रायपुर (Raipur) में। हरिद्वार में मुसलमानों को मारने को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए जरूरी बताया गया और रायपुर की धर्म संसद में महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) को गाली दी गई और उन्हें बंटवारे के लिए जिम्मेदार कहा गया।
रायपुर में जिस व्यक्ति ने महात्मा गाँधी के लिए अपशब्द कहे थे उसे गिरफ्तार कर लिया गया है और जब मैं यह लेख लिख रहा हूं भाजपा (BJP) और उससे जुड़े संगठनों के लोग रायपुर में अदालत के बाहर महात्मा गाँधी को गाली देने वाले व्यक्ति के पक्ष में जय श्री राम (Jai Shri Ram) के नारे लगा रहे हैं।
हममें से किसी को भी इसमें तनिक भी कोई संदेह नहीं रखना चाहिए कि इनके संगठन का भले ही नाम कोई भी हो लेकिन यह सब भाजपा को सत्ता में लाने के एक मात्र लक्ष्य के लिए काम करते हैं। इन धर्म संसदों (Dharm Sansad) का आयोजन और इनके माध्यम से नफरत को भड़काना भाजपा की राजनीति का सोचा समझा कार्यक्रम है।
इन नफरती लोगों को भाजपा के समर्थन के अनेकों सबूत आप साफ-साफ देख सकते हैं। रायपुर प्रकरण में महात्मा गाँधी को गाली देने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी का मध्य प्रदेश के भाजपाई मंत्री ने विरोध किया है। इसी प्रकार उत्तराखंड में हिंसा और कत्लेआम का आह्वान करने वाले लोगों के खिलाफ वहां की पुलिस ने अभी तक गिरफ्तारी भी नहीं की है। अलबत्ता नए-नए हिन्दू बने वसीम रिजवी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके अपनी मानसिकता और इरादे की झलक दे दी है।
उत्तर प्रदेश के चुनाव सामने हैं। उत्तर प्रदेश को दिल्ली की गद्दी की सीढ़ी माना जाता है। अगर यूपी हाथ से गया तो अगली बार दिल्ली की गद्दी भी भाजपा के हाथ से निकल सकती है। इसलिए भाजपा यूपी को जीतने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रही है। प्रधानमंत्री मोदी जिनकी इमेज ना झुकने वाले मजबूत नेता की बनाने के लिए भाजपा सरकार ने मीडिया में अरबों रूपये खर्च कर दिए, उन्हें किसानों के सामने हाथ जोड़कर उनकी बात मानकर उन्हें घर भेजने का फैसला लेने को मजबूर होना पड़ा।
मोदी योगी सरकार हर मोर्चे पर विफल हो चुकी हैं। नौजवान बेरोजगारी के कारण तथा बैंक कर्मी डाक्टर शिक्षक सभी योगी सरकार से बुरी तरह नाराज हैं। ऐसे में भाजपा के पास एक ही पैतरा बचता है जो हमेशा से उसका ब्रह्मास्त्र रहा है और वह है चुनावों को हिन्दू मुसलमान के मुद्दे पर लड़ना। इसके लिए भाजपा ने अपने पैतरे खेलने शुरू कर दिए हैं। हरिद्वार की धर्म संसद उसी चाल की एक गोटी है।
असल में धर्म के मुद्दे किसी तरह व्यक्ति को अंदर से डराते हैं और वह किस तरह गुंडे बदमाशों को भी अपना रक्षक समझने लगता है। इस मनोविज्ञान का भाजपा को खूब पता है इसलिए वह लफंगों तथा आईटी सेल के पेड ट्रोलरों के माध्यम से अपना नेरेटिव तैयार करती रहती है। धर्म निरपेक्ष पार्टिया गिरती पड़ती हांफती खांसती भाजपा से आगे निकलने के लिए दौड़ लगाती हैं जिसमें वह कभी इनके नेता मन्दिर जाते हैं। कभी जनेऊ दिखाते हैं। कभी ब्राह्मण सम्मलेन करते हैं। कभी परशुराम की मूर्तियाँ लगाने की घोषणाएं करने लगते हैं।
लेकिन जनता के दिल में डर पैदा कर और खुद को डराने वाले से ज्यादा खूंखार दिखा कर योगी अमित शाह (Amit Shah) और मोदी (Narendra Modi) जैसे लोग हिन्दुओं के उस डर के सहारे दौड़ जीत जाते हैं। इस काम में ओवैसी जैसे नेता भाजपा का काम करते हैं ओवेसी बयान देते हैं जब योगी मठ में चले जायेंगे और मोदी घर चले जायेंगे तब तुम्हें कौन बचाएगा? मतलब योगी और मोदी ही हिन्दुओं को बचाने वाले हैं यह ओवैसी कह रहा है। क्या अब भी किसी को शक है कि वह भाजपा के लिए काम करता है।
धर्मनिरपेक्ष पार्टियां जब तक भाजपा की शुरू की गई रेस में दौड़ती रहेंगी वह भाजपा से हारेंगी। भाजपा को हराना है तो उसे आर्थिक मुद्दों पर खींचकर ही हराया जा सकता है।
किसानों ने इस देश की राजनीति को उबरने का एक मौका दिया है। किसान आन्दोलन ने साबित किया है कि माहौल को कितना भी हिन्दू मुस्लिम या भारत पकिस्तान वाला बना दिया गया हो फिर भी अगर आपमें राजनैतिक समझ और धैर्य हो तो आप फासीवादियों को भी पीछे धकेल सकते हैं।
अब सवाल यह है कि क्या इस देश में किसानों मजदूरों की बात करने वाली धर्मनिरपेक्ष पार्टियां किसानों से मिली इस सीख को अपने चुनाव अभियान, मेनिफेस्टो या नेरेटिव बनाने में लाभ उठा सकती हैं।
यूपी में कोरोना में लापरवाही, गंगा में बहाई गई लाशें, सीएए एनआरसी के दौरान मुसलमानों के ऊपर सरकार ज़ुल्म, उनकी हत्याएं, उनके घरों की गैरकानूनी कुर्की और बुलडोज़र चलाया जाना जैसे मुद्दे भाजपा की हार की वजह बनाये जा सकते हैं। लेकिन पूरे चुनाव प्रचार में जिस तरह से सियासी पार्टियां मुसलमानों का नाम लेने से बच रही हैं उनके ऊपर हुए ज़ुल्मों को चुनावी मुद्दा बनाने से बच रही हैं वह भाजपा के नेरेटिव की जीत है उसकी नफरती राजनीति की जीत है। धर्म निरपेक्ष पार्टियों (Secular Parties) की यह कायरता से ओवैसी (Asaduddin Owaisi) को मुसलमानों को उनका रक्षक बताने का मौका मिल रहा है और उससे भाजपा हिन्दुओं (Hindus) के वोटों को पोलेराईज़ करने में कर रही है।
भारत में भाजपा ने हिन्दुओं में एक वर्ग ऐसा खड़ा कर दिया है जो सभी को अपना दुश्मन मानता है। वह ना सिर्फ जीसस का पुतला जलाता है बल्कि मुसलमानों को मारने में ही अपने धर्म के बचने को सच मानता है। वह जेएनयू से नफरत करता है। वह बराबरी की मांग करने वाली औरतों को रं* कहता है। वह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अर्बन नक्सली कहता है। वह हर समय गुस्से में है, डरा हुआ है एक काल्पनिक लड़ाई में युद्धरत है। उसके लिए मोदी योगी उस काल्पनिक लड़ाई के सेनापति हैं इसलिए उनका साथ देना जरूरी है और जो कोई भी इनके किसी भी काम कार्यक्रम पर सवाल उठाता है वह हिन्दू विरोधी और भारत विरोधी है।
राजनीतिक पार्टियों के पास अगर इस कैलीबर के बुद्धिजीवी और राजनीतिक चिन्तक भी नहीं हैं जो इसका काउन्टर नैरेटिव तैयार कर सकें तो भारत की राजनीति बहुत दयनीय हालत में है लेकिन इतना तय है कि जो भी पार्टी जनता को अपने नैरेटिव से प्रभावित कर लेगी वही इसमें बाजी मार लेगी।