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विमर्श

भारत में यह कैसी संस्कृति फैला रहा FACEBOOK, भक्त इसके खिलाफ क्यों नहीं उठा रहे आवाज

Janjwar Desk
19 Oct 2020 10:52 AM GMT
भारत में यह कैसी संस्कृति फैला रहा FACEBOOK, भक्त इसके खिलाफ क्यों नहीं उठा रहे आवाज
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फेसबुक ने दुनिया के कई देशों में दंगे फैलाने या सत्ता पलटने में अहम भूमिका का निर्वाह किया है, भारत में भी वह भाजपा और संघ परिवार के एजेंडों को आगे बढ़ा रहा है.....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

जिस सोशल मीडिया के विश्वव्यापी प्लेटफार्म फेसबुक को शुरू में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक आवाज़ों के लिए वरदान के रूप में प्रचारित किया गया और उसके ऐसे चरित्र पर भरोसा कर करोड़ों लोग इसके साथ जुडते चले गए, वही फेसबुक अब अश्लीलता और नफरत फैलाने वालों के हाथ का खिलौना बनकर रह गया है। वह लोकतांत्रिक आवाज़ों की पहुंच को कम कर रहा है।

दक्षिणपंथियों के नफरती अभियानों के खिलाफ लिखने वालों के पोस्ट मिटा रहा है और अश्लीलता के विज्ञापनों को बड़े पैमाने पर प्रचारित कर रहा है। वैसे भी भारत के करोड़ों युवाओं का रोजगार मोदी सरकार छीन चुकी है और कुंठित नई पीढ़ी को गुमराह करने के लिए और उनको मनोरोगी बनाने के लिए फेसबुक की तरफ से सेक्स चैट के विज्ञापनों के प्रचार को हम एक गहरी साजिश समझ सकते हैं।

हाल ही में नेटफ्लिक्स ने 'सोशल डिलिमा' नामक डाक्यूमेट्री जारी की है जो फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों के दानवीय चरित्र का खुलासा करती है। फेसबुक ने दुनिया के कई देशों में दंगे फैलाने या सत्ता पलटने में अहम भूमिका का निर्वाह किया है। भारत में भी वह भाजपा और संघ परिवार के एजेंडों को आगे बढ़ा रहा है।

इस डाक्यूमेंटरी में दावा किया गया है कि लाभ के लिए मानव व्यवहार के हेरफेर को इन कंपनियों में मैकियावेलियन परिशुद्धता के साथ कोडित किया गया है: अनंत स्क्रॉलिंग और प्रायोजित सूचनाएं उपयोगकर्ताओं को लगातार व्यस्त रखती हैं; वैयक्तिकृत अनुशंसाएँ डेटा का उपयोग न केवल भविष्यवाणी करने के लिए करती हैं बल्कि हमारे कार्यों को प्रभावित करने के लिए भी होती हैं, जो उपयोगकर्ताओं को विज्ञापनदाताओं और प्रचारकों के आसान शिकार में बदल देती हैं।

तेजतर्रार रूप से संपादित साक्षात्कारों में डाक्यूमेंटरी के निर्देशक ओर्लोव्स्की पुरुषों और महिलाओं के साथ बात करते हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया का निर्माण करने में मदद की और अब उपयोगकर्ताओं के मानसिक स्वास्थ्य और लोकतंत्र की नींव पर अपनी रचनाओं के प्रभावों से डरते हैं।

"पहले कभी इतिहास में 50 डिजाइनरों ने ऐसे निर्णय नहीं लिए हैं जिनका दो अरब लोगों पर प्रभाव पड़ेगा," ट्रिस्टन हैरिस कहते हैं, जो गूगल के में एक पूर्व डिजाइनर हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की एक व्यसन विशेषज्ञ एना लेम्बके बताती हैं कि ये कंपनियां पारस्परिक संबंध के लिए मस्तिष्क की विकास संबंधी जरूरतों का फायदा उठाती हैं। और रोजर मैकनेमी, जो फेसबुक में शुरुआती निवेशक हैं, एक खतरनाक आरोप लगाते हैं: रूस ने फेसबुक को हैक नहीं किया; उसने बस प्लेटफार्म का इस्तेमाल किया।

सोशल मीडिया के उपयोग बढ्ने के साथ मानसिक बीमारी में वृद्धि हुई है। ध्रुवीकरण, दंगों और नफरत आधारित हिंसा के पीछे सोशल मीडिया की भूमिका को ऐतिहासिक संदर्भ के साथ डाक्यूमेंटरी में प्रस्तुत किया गया है।

भारत की सवा अरब जनसंख्या में लगभग 70 करोड़ लोगों के पास फ़ोन हैं। इनमें से 25 करोड़ लोगों की जेब में स्मार्टफ़ोन हैं। 15.5 करोड़ लोग हर महीने फ़ेसबुक आते हैं और 16 करोड़ लोग हर महीने व्हाट्सऐप पर रहते हैं।

अपनी किताब 'आई एम ए ट्रोल' में स्वाति चतुर्वेदी भाजपा के सोशल मीडिया कंट्रोल रूम के बारे में बताती हैं कि बॉलीवुड अभिनेता आमिर ख़ान को ट्रोल करने, फ़िल्म दिलवाले के बहिष्कार की अपील करने, कांग्रेस नेताओं के ख़िलाफ़ ट्वीट करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया गया था। वो बताती हैं कि पार्टियों के पास हज़ारों ऐसे ट्विटर अकाउंट है जिनका इस्तेमाल वो ज़रूरत पड़ने पर करते हैं।

डेटा के दुरुपयोग के जरिये अपार धन कमाने की लालसा के चलते फेसबुक के मालिक भारत में संघ परिवार की रणनीतियों को साकार कर रहे हैं। पिछले दिनों इस बात की पुष्टि भी हो चुकी है जब एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि फेसबुक पर भाजपा नेताओं के घृणा फैलाने वाले पोस्ट को लेकर नरमी बरती जाती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में फेसबुक की पॉलिसी डायरेक्टर आंखी दास ने भाजपा नेता टी राजा सिंह के एक पोस्ट पर फेसबुक की पॉलिसी के लागू नियम का विरोध किया था। बता दें कि टी राजा तेलंगाना से भाजपा विधायक हैं।

रिपोर्ट में कहा गया था कि फेसबुक सत्ताधारी पार्टी से कोई पंगा लेना नहीं चाहती है, क्योंकि उसे अपने कारोबार के प्रभावित होने का डर है। यह दावा अमेरिकी अखबार 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल' की एक रिपोर्ट में किया गया था। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि फेसबुक बीजेपी नेताओं के हेट स्पीच वाले कंटेंट पर कार्रवाई नहीं करती है।

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