अपनी आज़ादी को नेताओं के हाथ मत बेचें, पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर जुलिओ रिबेरो की खुली अपील
आइपीएस बिरादरी का पूर्व सदस्य होने के नाते गर्व महसूस करते हुए मैं आप से गुज़ारिश करता हूँ। मेरी उम्र ९१ पड़ाव पार कर चुकी है। इसलिए मेरी गिनती उन थोड़े से ९० से ९९ की बीच की उम्र वाले आईपीएस अधिकारियों में होती है जो अभी जीवित हैं। मैंने महाराष्ट्र, गुजरात और पंजाब में लोगों की सेवा की है और उन्हें न्याय दिलाया है जिसे हासिल करना उनका अधिकार है।
मेरी मंशा आपको उपदेश देना नहीं है! यहां तक कि मेरी मंशा आपको सलाह देने की भी नहीं है क्योंकि समय बदल चुका है, राजनीतिक दबावों की प्रकृति बदल गयी है और इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आज के राजनेता उन स्वतंत्रता सेनानियों से एकदम अलग हैं जिन्होंने आज़ाद भारत की नीति निर्धारित की थीं।
फिर भी ईमानदारी, दया, सत्य एवं न्याय की तड़प, क़ानून और संविधान के प्रति निष्ठा ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं और आपके दिमाग में इनका स्थान उस समय सबसे ऊपर होना चाहिए जिस समय आप सोचते हैं, निर्णय लेते हैं और अंत में कारवाई करते हैं। एक नेता के रूप में आपके आदेश ऐसे होने चाहिए जो आपके मातहतों की सोच और काम को एक दिशा प्रदान कर सकें।
सामान्य स्थितियों में अपराध और अपराधियों से निपटने के लिए असाधारण तरीकों को अपनाया नहीं जा सकता, आतंकवाद से लड़ने के परंपरागत तरीकों को तो कतई नहीं। गैंग सम्राट और बड़े-बड़े आपराधिक गैंग इस वजह से पनप पाते हैं क्योंकि वे पुलिस अधिकारियों और उनके राजनीतिक आकाओं को घूस देने के लिए धन का इस्तेमाल करते हैं। अपराधियों, नेताओं और पुलिस के बीच का गठजोड़ ही इन फ्रेंकस्टीनों को जन्म देता है! ये आप भी जानते हैं और आम पुलिस वाला भी जानता है।
जैसा कि मैंने पहले भी कहा था मेरी इतनी हिम्मत नहीं है कि मैं आपको सलाह दूँ। राजनेताओं के दबदबे को कम करने के लिए तो आप कुछ नहीं कर सकते लेकिन आप अपने आदमियों को अपराधियों की सहायता ना करने की हिदायत तो दे ही सकते हैं। और इस तरह अपराधी, पुलिस और राजनेता के गठजोड़ की तीन टांगों में से एक को तो तोड़ ही सकते हैं।
ये राजनेता कभी आपसे यह नहीं कहेंगे कि अपराधियों को अपना काम करने दो। वो तो सीधे आपको आपके ऊँचे पद से हटा देंगे। फिर भी किसी विकास दुबे को पैदा करने की तुलना में ये कहीं बेहतर विकल्प है।
और, अगर विकास दुबे की बात करें तो उसे ख़त्म करके न्यायपालिका की भूमिका को हड़प लिया गया! जांचकर्ता को इतनी शक्तियां नहीं प्रदान की जाने चाहिए कि वो मुकदमा भी चलाये और न्यायाधीश भी बन जाये, जैसा कि इस समय देश में हो रहा है।
क्या आप इसे बुद्धिमानीपूर्ण या न्याय पूर्ण अथवा सभ्य मानते हैं? क्या आपको लगता है कि भारत को एक पुलिस राज्य बनाने की ज़रूरत है? ऐसे अपराधियों का फलना-फूलना जो क़ानून का पालन कराने वालों को घेर कर मार डालते हों, जो पुलिस हिरासत से आसानी से भाग जाते हों, जो पुलिस के हथियार चीन लेते हों और तब तक पुलिस से लोहा लेते हों जब तक कि मार गिराए ना जाते हों। यह सब अब इतना सामान्य हो गया है और मध्य वर्ग द्वारा इस सब पर ताली बजाना इतना नियमित-सा हो गया है कि राजनीतिक आकाओं ने आपदा को ऐसे चारागाहों में तब्दील कर दिया है जहां वे भरपेट चर सकें।
तमिलनाडु के ट्युटिकोरिन ज़िले में पुलिस द्वारा पिता और बेटे दोनों की हत्या कहीं ज़्यादा परेशान करती है। मुज़रिमों ने इतनी अधिक बर्बरता दिखाई कि मध्यम वर्ग का समर्थन भी उन्हें हासिल नहीं हो सका! शर्मनाक है! भारत के हर पुलिस वाले को अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए।
मैं कोई समाधान देने नहीं जा रहा। अव्यवहारिक सलाहकार अक्सर बनाने के बजाय बिगाड़ ज़्यादा देते हैं। मुझे पूरा भरोसा है कि आप ऐसी रणनीति तैयार करेंगे जिसके तहत फ़र्ज़ी मुठभेड़ों और पूछताछ के दमनात्मक तरीको को तिलांजली दे दी जाएगी और ऐसा प्रयास किया जायेगा कि विकास दुबे जैसे लोग फल-फूल ना पाएं और न पुलिस की गिरफ्त से बच निकलें। विकास दूबों पर त्वरित मुक़दमा चले।
उपदेश ना देने के अपने वायदे से मुकरने की मुझे इजाज़त दें। मैं आइपीएस अधिकारियों से भीख मांगता हूँ कि कृपया ऊँचे पदों के लिए लॉबिंग करने की घटिया हरकतें बंद करें। ऐसी हरकतें करके आप अपनी आज़ादी अपने राजनीतिक आकाओं को बेच देते हैं जिसका फायदा उठा कर ये आका लोग आपसे वो काम करने की गुज़ारिश करेंगे जिनके करने से आपको पता है कि उन लोगों पर आपका प्रभुत्व कम हो जायेगा जिन लोगों से आप आदेश पालन कराते हैं।
आपका दुःखी भाई
जुलिओ रिबेरो
(जुलिओ रिबेरो मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर, गुजरात व पंजाब के डीजीपी और रोमानिया में भारत के राजदूत के पद पर रह चुके हैं। यह रिपोर्ट साभार 'द वायर' से ली गई है।)