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विमर्श

रूस ने 40 वर्षों तक राष्ट्रपति बनाने के लिए की ट्रंप की परवरिश, रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी के अधिकारी ने अपनी किताब में किया खुलासा

Janjwar Desk
4 Feb 2021 2:00 AM GMT
रूस ने 40 वर्षों तक राष्ट्रपति बनाने के लिए की ट्रंप की परवरिश, रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी के अधिकारी ने अपनी किताब में किया खुलासा
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अमेरिका में बैठे राष्ट्रपति की आलोचना करने वाले लेखक भी हैं और प्रकाशक भी, मेनस्ट्रीम मीडिया में हमारे देश की तरह ऐसे लेखकों को आतंकवादी या फिर देशद्रोही नहीं कहा जाता, बल्कि इसके अंश प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते हैं और समाचार चैनलों पर दिखाए जाते हैं....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पांडेय की टिप्पणी

जनज्वार। क्रैग उन्गेर एक अमेरिकी पत्रकार हैं और पुस्तकें भी लिखते हैं। इनकी शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली पुस्तक है, अमेरिकन कोम्प्रोमैट। यह पुस्तक अमेरिका में तैनात किये गए रूसी ख़ुफ़िया एजेंसी, केजीबी, के भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी युरी श्वेतस द्वारा दी गई जानकारियों पर आधारित है। इस पुस्तक के अनुसार रूस लगभग पिछले 40 वर्षों से डोनाल्ड ट्रम्प को राष्ट्रपति बनाने के लिए उनका पीछा और परवरिश कर रहा था। यह आश्चर्य का विषय हो सकता है कि ऐसा पिछले 4 दशकों से किया जा रहा था, पर इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि रूस की सरकार डोनाल्ड ट्रम्प को वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान अंतिम समय तक मदद करता रही थी।

पुस्तक के अनुसार रूस का ध्यान ट्रम्प पर पहली बार 1977 में गया जब उन्होंने अपनी पहली शादी चेकोस्लोवाकिया की मॉडल इवाना ज़ेल्निकोवा से की थी, इसके बाद से केजीबी लगातार उनका पीछा करता रहा। केजीबी के अनुसार एक अमेरिकी राष्ट्रपति में जो बेवकूफी और मूर्खता वे देखना चाहते थे, सभी ट्रम्प में मौजूद थे। इसके तीन साल बाद ट्रम्प ने अमेरिका में अपना पहला होटल, ग्रैंड ह्यात न्यू यॉर्क, को शुरू किया। इसके सभी टीवी सेट जॉयलुड एलेक्रोनिच्स नामक शोरूम से खरीदे गए थे, इस शोरूम के बारे में कहा जाता है कि यह केजीबी के अधिकारियों की दूकान है। वर्ष 1987 में पहली बार ट्रम्प और इवाना रूस दौरे पर मास्को और सेंट पीटर्सबर्ग गए, जहां अनेक तरीके से केजीबी के वरिष्ठ अधिकारी बार-बार ट्रम्प से मिलते रहे और उन्हें अमेरिकी राजनीति में उतरने की सलाह देते रहे। ट्रम्प को लगातार यकीन दिलाया गया कि वही अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रपति बनने के काबिल हैं और पूरी दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं।

रूस यात्रा से वापस आते ही ट्रम्प 1987 में रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य बने और पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाने के जुगाड़ में मशगूल हो गए। उन्होंने न्यू हैम्पशायर में एक बड़ी रैली आयोजित की थी और लगभग सभी बड़े समाचारपत्रों में पूरे पृष्ठ का विज्ञापन प्रकाशित कराया था, जिसमें जनता के लिए ट्रम्प की तरफ से एक खुला पत्र था। इस पत्र में अनेक ऐसे विषयों को उठाया गया था, जिनका अमेरिका की सामान्य नीतियों से दूर-दूर तक का नाता नहीं था। इस विज्ञापन के बाद रूस में सरकार और केजीबी के अधिकारियों में खुशी की एक लहर दौड़ गई।

ट्रम्प ने वर्ष 1999 में रिफॉर्म्स पार्टी को ज्वाइन किया। ट्रम्प कामयाब रहे और पहली बार वर्ष 2000 में रिफॉर्म्स पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार घोषित किये गए। इन चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज बुश अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे। वर्ष 2001 में ट्रम्प डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य बने, और 2004 और 2008 के चुनावों में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाने का प्रयास करने के बाद भी असफल रहे। वर्ष 2009 में ट्रम्प ने फिर से रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामा, पर 2012 के चुनावों में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार नहीं बन पाए। इसके बाद 2016 के चुनावों में केवल रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ही नहीं बल्कि राष्ट्रपति भी चुने गए।

वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में रूस की दखलंदाजी से तो सभी परिचित हैं, यह बात दूसरी है कि अमेरिका की सरकार, संवैधानिक संस्थाएं और न्यायालय चुनावों में रूस की दखलंदाजी को साबित नहीं कर पाए, हालां कि ट्रम्प और रूस की दोस्ती बार-बार उजागर होती रही। इस सन्दर्भ में जांच के लिए बनी मुएलर समिति ने भी ट्रम्प की चुनावी टीम और रूस के अधिकारियों के बीच होने वाली 38 मीटिंगों का ब्यौरा प्रस्तुत किया था और यह भी बताया था कि रूस के कम से कम 272 अधिकारियों के साथ ट्रम्प के व्यक्तिगत रिश्ते थे और इनके फ़ोन नंबर ट्रम्प के पास मौजूद थे।

इस पुस्तक के लेखक क्रैग उन्गेर रूस के मामलों के विशेषज्ञ हैं और इससे पहले, हाउस ऑफ़ ट्रम्प हाउस ऑफ़ पुतिन, समेत सात पुस्तकें लिख चुके हैं। केजीबी के भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी युरी श्वेतस अब अमेरिका में बस चुके हैं और इन दिनों सबूत जुटा रहे हैं जिससे दुनिया जान सके कि वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनावों में रूस ने ट्रम्प को जिताने के लिए सीधा दखल दिया था।

इस पुस्तक में केवल रूस और अमेरिका की ही चर्चा है, पर इससे दुनिया की राजनीति का भी पता चलता है। भारत समेत दुनिया के अनेक तथाकथित लोकतंत्र में चुनाव होते है और जिन्हें अधिकतर जनता हारता हुआ देखना चाहती है वे भारी बहुमत से सरकार बना कर जनता को कुचलना शुरू करते हैं। जाहिर है अब चुनाव किसी देश की जनता की धरोहर नहीं हैं बल्कि रूस, चीन और अमेरिका जैसे देशों की सरकारों की मर्जी है, जो अनेक दशकों तक किसी सनकी व्यक्ति की परवरिश प्रधानमंत्री बनाने के लिए करते हैं और चुनावों के दौरान उसके पक्ष में माहौल तैयार करते हैं।

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा राष्ट्राध्यक्ष होगा जिसपर अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प जितनी किताबें लिखी गईं होंगीं। ट्रम्प पर लिखी किताबों की खासियत यह भी है कि हरेक किताब ट्रम्प से सम्बंधित एक नया राज लेकर आती है। हमारे देश में यह परंपरा कम है और जितनी ऐसी किताबें प्रकाशित भी की जातीं हैं वे सभी चाटुकारों द्वारा लिखी जाती हैं और जिनका मकसद किताब लिखना नहीं बल्कि मत्रियों और प्रधानमंत्री के और नजदीक आना होता है।

अपने देश में तो प्रधानमंत्री या किसी बड़े मंत्री पर कोई आलोचनात्मक किताब लिखने पर कोई प्रकाशक भी प्रकाशित करने को तैयार नहीं होता, पर इस मामले में अमेरिका की स्थिति अलग है। वहां सत्ता में बैठे राष्ट्रपति की आलोचना करने वाले लेखक भी हैं और प्रकाशक भी। मेनस्ट्रीम मीडिया में हमारे देश की तरह ऐसे लेखकों को आतंकवादी या फिर देशद्रोही नहीं कहा जाता बल्कि इसके अंश प्रमुखता से प्रकाशित किये जाते हैं और समाचार चैनलों पर दिखाए जाते हैं। अमेरिका में ट्रम्प अपनी पूरी कोशिशों के बाद भी ना तो पुलिस को सरकार के आलोचकों को बिना किसी मामले के ही जेल में डालने की लत लगा पाए और ना ही न्यायालयों को केवल सरकार के पक्ष में ही फैसले देने की आदत।

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