Goraksha Andolan : आर्थिक से ज्यादा धार्मिक बन गया गाय का मुद्दा, हिंदुओं के मन में गलतफहमी पैदा करने के लिए BJP-RSS ने चलाया गोरक्षा आंदोलन
(आर्थिक से ज्यादा धार्मिक बन गया गाय का मुद्दा)
हिमांशु कुमार का विश्लेषण
Goraksha Andolan : गाय का मुद्दा भारत में आर्थिक मुद्दे से ज्यादा धार्मिक मुद्दा बना रहा है। हांलाकि इसे आर्थिक मुद्दे (Economic Issue) के रूप में भी पेश करने की कोशिश सर्वोदय और अनेकों गांधीवादियों द्वारा की गई है।
मैं खुद गोहत्याबंदी आन्दोलन (Goraksha Andolan) का हिस्सा रहा हूँ। मैंने अपने विद्यार्थी काल में गोहत्या बंदी के लिए पांच दिन का उपवास किया था। मेरे पिता प्रकाश भाई जो स्वतंत्र संग्राम में गांधीजी के आश्रम में उनके साथ भी रहे वे खुद आचार्य विनोबा भावे के सुझाव से चलने वाले देवनार कत्लखाने के सामने चलाये गए तेरह सालों तक सत्याग्रह का हिस्सा रहे हैं और कई बार गिरफ्तारी भी दी थी।
आरएसएस - भाजपा (BJP-RSS) तथा गांधीवादियों और सर्वोदयियों के गोहत्याबंदी के आंदोलनों में एक फर्क तो रहा है। जहां भाजपा और आरएसएस का गोहत्या का मुद्दा हिन्दुओं (Hindus) के मन में यह गलतफहमी पैदा करने के मकसद से किया जाता है कि मुसलमान हमारी गोमाता के हत्यारे हैं। वहीं सर्वोदयी इस मुद्दे को छोटी जोत के किसान को बचाने के मकसद से गाय बैल को बचाने की बात कहते हैं। सर्वोदयियों के गोहत्याबंदी आंदोलनों में मुसलमान (Muslims) भी शामिल थे जबकि भाजपा का आन्दोलन तो होता ही मुसलमानों के खिलाफ नफरत (Hatred Against Muslims) भड़काने के लिए है।
जहां तक इस मुद्दे पर गांधी (Mahatma Gandhi) की अपनी सोच की बात है गांधी ने इस मुद्दे को गोसेवा से जोड़ा था। गांधी भीतर से पूरे सर्वधर्म को मानते थे। इसलिए उन्होंने कभी मुसलमानों को गाय खाने के लिए ना तो कभी दोषी ठहराया ना ही उन्हें कानून बना कर गोमांस खाने से रोकने का समर्थन किया।
इस मामले में दिल्ली में अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले हुई प्रार्थना सभा में गांधी जी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि लोगों ने पच्चीस हज़ार पोस्ट कार्ड राष्ट्रपति को भेजे हैं जिनमें गाय के गोश्त खाने पर कानूनी बंदिश लगाने की मांग की गई है। इस मुद्दे पर कानपुर में किसी साधू ने अनशन भी शुरू किया है। लेकिन मेरा कहना है कि इस मामले में हम किसी पर कोई बंदिश नहीं लाद सकते। गांधीजी ने कहा कि अगर हिन्दू गाय को माता मानते हैं तो वे गाय का मांस ना खाएं लेकिन वे अपनी धार्मिक आस्था किसी दुसरे पर कैसे लाद सकते हैं ?
गांधीजी ने आगे कहा कि हम अपनी छत पर चढ़ कर चिल्लाते रहे हैं कि आज़ाद भारत में किसी धर्म वाले के ऊपर कोई बात लादी नहीं जायेगी। मान लीजिये अगर पाकिस्तान में लोग कहें कि हमारी धार्मिक मान्यता के मुताबिक़ मूर्तियों को पूजना मना है इसलिए हम किसी को मूर्तियों को पूजने नहीं देंगे तो क्या भारत उस बात का विरोध नहीं करेगा? लेकिन अगर भारत खुद ही अपनी धार्मिक मान्यताएं दुसरे धर्म वालों पर लादेगा तो दूसरों को कुछ कहने का उसका क्या उसका नैतिक आधार बचेगा?
भारत में मुसलमानों के खान पान उनकी जीवन शैली उनके कपडे हरेक चीज़ को राजनीति का मुद्दा बनाने उसकी खिल्ली उड़ाने का काम आरएसएस और भाजपा करती रही है। इसलिए गाय खाने को मुसलमानों से जोड़कर हिन्दू वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए गाय के मुद्दे का वह हमेशा से इस्तेमाल करती आ रही है। जबकि सच्चाई यह है कि भाजपा के अनेकों नेता और भाजपा को चंदा देने वाले व्यापारी गाय काटने वाले बड़े बड़े कत्लखानों और एक्सपोर्ट के व्यापार से जुड़े हुए हैं।
बड़े बीफ व्यापारियों को फायदा पहुंचाने के लिए भाजपा सरकारों ने छोटे कसाइयों के धंधे बंद करवाए। इनमें ज्यादातर में गाय नहीं भैंसे काटे जाते थे जिसका गोश्त सस्ता होने की वजह से गरीबों की पहुँच में था और व्यवसाय भी गरीब तबके के लोग कर रहे थे। भाजपा ने अपने संगठनों पुलिस और प्रशासन की मदद से इनका व्यापार खत्म करवाया और कसाइयों की कमर तोड़ दी।
इसका नतीजा यह हुआ कि देश भर में जो गाय दूध नहीं दे सकती या जो बैल खेती में काम नहीं आ सकते। उन्हें कसाई खरीद लेते थे । और भारत के जिन राज्यों में गोहत्या बंदी कानून नहीं बने हैं वहाँ ले जाकर बेच देते थे। इससे छोटे किसान से लेकर छोटे छोटे व्यापारी और कसाई अपनी जीविका चला रहे थे।
भाजपा ने हिन्दू वोटों को गाय के मुद्दे पर जमा करने के मकसद से इस पर चोट की। जगह-जगह गोरक्षा के नाम पर हथियार बंद समूह गठित किये गये। डेरी के लिए गाय खरीद कर ले जाते हुए या अपने घर में बैठे हुए मुसलमानों की लिंचिंग का दौर चलाया गया। गोशालाओं का धंधा खड़ा किया गया। भाजपा शासित राज्यों में गोशालाओं के नाम पर बड़ी बड़ी राशियों की अपने समर्थकों को बन्दरबांट की गई। ऐसी गोशालों में कई जगह भूख से गायों के सामूहिक मरने की ख़बरें भी मीडिया में लगातार आती रहीं।
इसका परिणाम यह हुआ कि डर के मारे कसाइयों ने और छोटे व्यापारियों ने इस धंधे से अपने हाथ खींच लिए। नतीजा यह हुआ कि गाँव-गाँव में आवारा गाय बैलों की तादात अचानक बहुत बढ़ गई। आवारा घूम-घूमकर खा-खाकर यह पशु और भी तगड़े हो गए और बड़े बड़े कंटीले तार की बाड़ी कूद कर खेत में घुसने की काबलियत पा गये। पूरे हिन्दी पट्टी जिसमें राजस्थान यूपी मध्यप्रदेश हरियाना शामिल है वहां किसान इन आवारा पशुओं की वजह से बर्बाद हो रहा है।
भारत में डेरी उद्योग के विकास की बहुत संभावना है लेकिन वह तभी हो सकता है जब भारत इस तरह के अनार्थिक पशुओं से छुटकारा पाए। बिना दूध वाली गायें और बिना हल जोतने के योग्य पशुओं की भीड़ तो सड़कों पर एक्सीडेंट और खेतों में बर्बादी ही करेगी।
पूरे भारत में गोमांस खाने पर बंदिश नहीं है। मैं खुद पिछले एक साल गोवा में रहा हूँ। मैंने खुद गोमांस की दुकाने देखी हैं जिनके बाहर खुले आम उसका रेट और विवरण लिखा होता है। भारत के अनेकों आदिवासी समुदाय गाय का मांस खाते हैं। इसलिए इसे धार्मिक मुद्दा बनाने की बजाय आर्थिक मुद्दे के रूप में लेना चाहिए। अगर भारत में गाय की संख्या और गुणवत्ता सुधारनी है तो इसका एकमात्र तरीका है कि सरकार गोवा, केरल बंगाल और उत्तरी पूर्व के राज्यों की तरह सारे भारत में गाय बैल खरीदने बेचने लाने ले जाने खाने पर लगी कानूनी बंदिश हटाये।
इससे यह होगा कि गाय बैल एक आर्थिक उत्पाद बन जायेंगे। जब किसी उत्पाद की मांग बढती है तो उसकी कीमत बढ़ती है। कीमत बढने से लोग उस काम को व्यवसाय के रूप में करने लगते हैं। जिससे उसका उत्पादन बढ़ता है। आज देश में सबसे ज्यादा मुर्गा खाया जाता है। क्या इससे मुर्गे खत्म हो गये हैं। नहीं बल्कि हरेक शहर कस्बे में लोग मुर्गे उत्पादित करते हैं और पैसा कमाते हैं।
अगर कोई सारे मुर्गे भी खा ले तो अगले दिन से ही लोग दुगनी ताकत लगाकर ज्यादा मुर्गे उत्पादन करने में पैसा और साधन लगा देंगे। लेकिन अगर आप किसी उत्पाद के खाने खरीदने बेचने लाने ले जाने पर कानूनी बंदिश लगा देंगे तो उसकी आर्थिक कीमत गिर जायेगी और लोग उसका उत्पादन बंद कर देंगे।