Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

6 सालों में घर के बर्तन-भांडे बिकने के कगार पर आ गए लेकिन सरकार से एक भी सवाल न पूछ पाया 'द ग्रेट मिडिल क्लास'

Janjwar Desk
3 March 2021 11:37 AM GMT
6 सालों में घर के बर्तन-भांडे बिकने के कगार पर आ गए लेकिन सरकार से एक भी सवाल न पूछ पाया द ग्रेट मिडिल क्लास
x
सरकार ने नोटबंदी में देश की आर्थिक गति को अवरुद्ध कर दिया। जो उद्देश्य थे , उनमें से एक भी पूरे नहीं हुए। प्रधानमंत्री ने सब ठीक करने के लिये 50 दिन का समय रिरियाते हुए मांगे थे। न जाने कितने 50 दिन बीत गए, आपने सरकार से तब भी नहीं पूछा कि आखिर नोटबंदी की ज़रूरत क्या थी और इसका लाभ मिला किसे ?

पूर्व आईपीएस विजय शंकर सिंह का विश्लेष्ण

आप किसान नहीं है इसलिए आप किसानों के इस आंदोलन को फर्जी, देशद्रोह और खालिस्तानी कह कर इसकी निंदा कर रहे हैं। आप एक प्रवासी मज़दूर भी नही है, इसलिए आप जब हज़ारों किमी सड़कों पर प्रवासी मजदूर घिसटते हुए अपने घरों की ओर जा रहे थे, तो न तो आहत हुए और न ही आप ने सरकार से इनकी व्यथा के बारे में कोई सवाल पूछा।

आप फैक्ट्री में काम करने वाले मज़दूर भी नहीं हैं जो श्रम कानूनों में मज़दूर विरोधी बदलाव के खिलाफ खड़े हों और सरकार से कम से कम यह तो पूछें कि इन कानूनों में इस समय बदलाव की ज़रूरत क्या है और कैसे यह बदलाव श्रमिक हित मे होंगे।

आपके सामने देखते-देखते, मेडिकल कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, अन्य तकनीकी शिक्षा की फीस कई गुना बढ़ गयी। लाखों रुपये अस्पताल में इलाज पर खर्च करके इस महामारी में लोग अपने घर या तो स्वस्थ हो कर आये या मर गए। पर सरकार की कितनी जिम्मेदारी है इस महामारी में जनता को सुलभ इलाज देने की, इस पर एक भी सवाल सरकार से नहीं पूछा गया। आप इससे सीधे प्रभावित होते हुए भी मौन बने रहे। एक शब्द भी विरोध का नहीं कहा और न ही सरकार से पूछा कि ऐसा क्यों किया जा रहा है ?

आपके सामने देखते-देखते लाभकारी सार्वजनिक कम्पनियों को सरकार निजी क्षेत्रों को अनाप-शनाप दामों पर बेच रही है, पर आप इस लूट की तरफ से आंख मूंदते जा रहे हैं और सरकार से एक छोटा सा सवाल भी नहीं पूछ पा रहे हैं कि आखिर इन छह सालों में ऐसा क्या हो गया कि घर के बर्तन भांडे बिकने की कगार पर आ गए ?

सरकार ने नोटबंदी में देश की आर्थिक गति को अवरुद्ध कर दिया। जो उद्देश्य थे , उनमें से एक भी पूरे नहीं हुए। प्रधानमंत्री ने सब ठीक करने के लिये 50 दिन का समय रिरियाते हुए मांगे थे। न जाने कितने 50 दिन बीत गए, आपने सरकार से तब भी नहीं पूछा कि आखिर नोटबंदी की ज़रूरत क्या थी और इसका लाभ मिला किसे ?

बाजार की महंगाई से आप अनजान भी नहीं हैं। आटे दाल का भाव भी आपको पता है। आप उस महंगाई से पीड़ित भी है, दुःखी भी और यह सब भोगते हुए भी आप सरकार के सामने, जिसे आपने ही सत्ता में बैठाया है, कुछ कह नहीं पा रहे हैं। जो कुछ कह, पूछ और आपत्ति कर रहा है, उसे आप देशविरोधी कह दे रहे हैं। क्योंकि आपके दिमाग मे यह ग्रंथि विकसित कर दी गयी है कि सरकार से पूछना ईशनिंदा की तरह है। जब आप जैसी जनता होगी तो कोई भी शासक, तानाशाह बन ही जायेगा ।

बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, बैंकिंग सेक्टर से एक एक कर के निराशाजनक खबरें आ रही हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य जो सरकार का मूल दायित्व है, से सरकार जानबूझकर पीछा छुड़ा रही है। पर 'द ग्रेट मिडिल क्लास' अफीम की पिनक में मदहोश है।

यह एक नए तरह का अफीम युद्ध है। यह एक नया वर्ल्ड ऑर्डर है जो असमानता की इतनी चौड़ी और गहरी खाई खोद देगा कि विपन्नता के सागर में समृद्धि के जो द्वीप बन जाएंगे उनमे 'द ग्रेट मिडिल क्लास को भी जगह नहीं मिलेगी वह भी उसी विपन्नता के सागर में ऊभ-चूभ करने लगेगा।

कल किसानों ने एक बड़ा मौलिक सवाल सरकार से पूछा है कि

● यह तीन कृषि कानून किन किसानों के हित के लिये लाये गए हैं ?

● किस किसान संगठन ने इन्हें लाने के लिये सरकार से मांग की थी ?

● इनसे किसानों का हित कैसे होगा ?

आज तक खुद को जागरूक, अधुनातन और नयी रोशनी में जीने वाले 'द ग्रेट मिडिल क्लास' का कुछ तबका ऐसा ही सवाल, नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन, घटती जीडीपी, आरबीआई से लिये गए कर्ज, बैंकों के बढ़ते एनपीए आदि आदि आर्थिक मुद्दों पर सरकार से पूछने की हिम्मत नहीं जुटा सका।

और तो और 20 सैनिकों की दुःखद शहादत के बाद भी प्रधानमंत्री के चीनी घुसपैठ के जुड़े इस निर्लज्ज बयान कि न तो कोई घुसा था और न किसी ने हमारी पोस्ट पर कब्जा किया है, पर भी कुछ को कोई कुलबुलाहट नहीं हुयी वे अफीम की पिनक में ही रहे।

और जो सवाल पूछ रहे हैं, वे या तो देशद्रोही हैं या आईएसआई एजेंट, अलगाववादी, अब तो खालिस्तानी भी हो गए, वामपंथी, तो वे घोषित ही है। पर आप क्या है ? हल्का सा भी हैंगओवर उतरे तो ज़रा सोचिएगा।

इसका कारण है थोड़ा बहुत भी 'द ग्रेट मिडिल क्लास' के पास खोने के लिये जो शेष है, वही आप के पांवों में बेडियां बनकर जकड़े हुए हैं। जब खोने के लिये वह भी शेष नहीं रहेगा तब आप भी जगेंगे और इस पंख से कीचड़ झाड़ते हुए उठेंगे, पर उठेंगे ज़रूर। पर तब तक बहुत कुछ खो चुका होगा। बहुत पीछे हम जा चुके होंगे।

इस लेख में आप शब्द किसी व्यक्ति विशेष को लेकर नहीं प्रयुक्त हुआ है। इस आप में आप सब भी हैं, मैं भी हूँ, हम सब हैं, 'मैं भी हूँ औऱ तू भी है' जो इस 'द ग्रेट मिडिल क्लास' की विशालकाय अट्टालिका में एक साथ रहते हुए भी अलग-अलग कंपार्टमेंट जैसे अपार्टमेंट में खुद को महफूज समझने के भ्रम में मुब्तिला हैं।

Next Story

विविध