अमेरिका में प्रजातंत्र मरने के बाद फिर जिन्दा हो जाएगा, क्या भारत में ऐसी उम्मीद की जा सकती है?
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
पूरी दुनिया में प्रजातंत्र मर चुका है, पर इन मौतों पर प्रतिक्रियाएं अलग-अलग रहती हैं। सभी देश अमेरिका के संसद पर हमले को प्रजातंत्र का काला दिन बताते रहे, हांगकांग में किसी प्रजातंत्र समर्थक की गिरफ्तारी दुनियाभर में हैडलाइन बनती है और बेलारूस के चुनाव की धांधली के बाद आन्दोलन के समर्थन में सारे देश वक्तव्य देते हैं। दूसरी तरफ भारत में लोकतंत्र मर गया है और दुनिया में खामोशी है। अमेरिका में ट्रम्प के तमाम प्रयासों के बाद भी प्रजातंत्र जिन्दा है क्योंकि वहां की संवैधानिक संस्थाएं और मीडिया जिन्दा हैं। हांगकांग में कुछ सप्ताह पहले एक सुबह लगभग 50 ऐसे व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया जो खुले तौर पर प्रजातंत्र समर्थक थे, दुनियाभर में मीडिया ने इस खबर को प्रकाशित किया और चीन पर सीधे तौर पर निशाना साधा। पर, लगभग पांच दिनों बाद ही इन गिरफ्तार व्यक्तियों में से केवल 3 हो छोड़कर शेष सबको रिहा कर दिया गया।
अपने देश में 50 से अधिक व्यक्ति तो हरेक दिन ही बिना किसी कारण और बिना किसी सबूत के ही जेल में बंद कर दिए जाते हैं और वर्षों तक जेल में ही रह जाते हैं, पर दुनिया की मीडिया के लिए यह कोई खबर नहीं है। अमेरिका में ट्रम्प ने अपने शासन के दौरान 2000 से अधिक बार झूठ बोले यह दुनिया को पता है, पर हमारे देश में सरकार, मीडिया, संवैधानिक संस्थाएं और पुलिस एक दिन में ही इससे अधिक झूठ फैला डालती है। हमारे प्रधानमंत्री भारत को विश्वगुरु बनाने की बात लगातार करते रहे हैं पर झूठ और लोकतंत्र के चीरहरण में विश्वगुरु तो हम पिछले 6 वर्षों से लगातार हैं, पर दुनिया इससे अनजान है।
हमारे देश के लोकतंत्र का आलम तो यह है कि महात्मा गांधी अब एक सफाईकर्मी से अधिक कुछ नहीं हैं और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे के मंदिर बनने लगे हैं। प्रजातंत्र के भारतीय संस्करण का चेहरा आंदोलनों और चुनावों के दौरान पूरी तरह से स्पष्ट हो जाता है। आन्दोलनों और चुनावों के दौरान अचानक आतंकवादी, खालिस्तानी, माओवादी, नक्सली, टुकडे-टुकडे गैंग के सदस्य प्रकट होने लगते हैं, अति-उत्साहित मीडिया विरोधियों के फेक विसुअल्स का उत्पादन करने लगता है और सरकारी मंत्री पाकिस्तान और चीन का हाथ खोजने में व्यस्त हो जाते हैं। हमारे देश का प्रजातंत्र विशेष है और पूरे विश्व में अनोखा है क्योंकि केवल भारत ही ऐसा देश है जहां तथाकथित जन-प्रतिनिधियों की मंडी सजती है, बोली लगती है और नीलामी होती है। यह अलग तथ्य है कि पिछले 6 वर्षों से केवल एक ही पार्टी ऐसी है जो हरेक राज्य के चुनाव में सबसे अधिक बोली लगाती है।
पिछले 6 वर्षों से देश की जितनी भी संवैधानिक संस्थाए और जांच एजेंसियाँ हैं उनका एक ही काम रह गया है – सरकार की नीतियों के विरुद्ध बोलने वालों को ठिकाने लगाना। देश में अर्नब गोस्वामी के देश की सुरक्षा में सेंध लगाने पर जो जांच एजेंसियां चुप्पी साध लेती हैं वही किसान आन्दोलन में शामिल नेताओं की आनन्-फानन में जांच करने लगती हैं। देश की सुरक्षा का आलम यह है कि हमें महीनों पहले पता चल जाता है कि पाकिस्तान से 50 आतंकवादी सीमा पार करने वाले हैं पर जब हमारे 20 वीर सैनिक गलवान में मारे जाते हैं तब इस खबर को बताने में कई घंटे बीत जाते हैं।
अपने देश में जब सभी सरकारी संस्थाओं और उपक्रमों को तेजी से बेचा जा रहा है, ऐसे दौर में भी सरकार मीडियाकर्मियों को खरीद रही है। दुनिया ने ऐसा प्रजातंत्र शायद ही देखा हो जिसमें मीडियाकर्मी, फिल्म अभिनेता/अभिनेत्री और अनेक वैज्ञानिक भी सरकार द्वारा खरीदे जा रहे हैं या फिर खरीदे जा चुके हैं। बाजार में उतरने की शर्तें हैं – समाज में किस हद तक गिरकर आप मजहबी नफरत फैला सकते हैं, कितनी बेशर्मी से अपशब्द बोल सकते हैं और फिर कितने झूठ गढ़ सकते हैं। अपने देश के मीडिया से अधिक रचनात्मक मीडिया शायद ही दुनिया में कहीं और होगा – दुनिया का मीडिया किसी घटना या वक्तव्य पर खबर दिखाता है, पर भारतीय मीडिया तो अपने आप में ही एक दुर्घटना है।
अपने देश के तथाकथित प्रजातंत्र का एक और विशेष पक्ष है – किसी प्रश्न पर सरकार के जवाब। आप भूख-प्यास और गरीबी की बात कीजिये तो सरकार नागरिकता क़ानून पर बात करेगी। आप जब कश्मीर की बात करेंगें सरकार चीन की बात करेगी। आप बेरोजगारी के आंकड़े पूछेंगें तो सरकार आपको मंगलयान पर बैठा देगी। आप मोबाइल सिग्नल की खामियां बताएँगे तो सरकार 5जी की खूबियाँ गिनाएगी, आप करोड़ों लोग भूखे-प्यासे जो पैदल पूरा देश पार कर गए से सम्बंधित प्रश्न पूछेंगें तो सरकार इसे मनमोहन सरकार की नाकामयाबी बतायेगी।
किसान आन्दोलन से सम्बंधित प्रश्न पूछिए तो अधकचरी तैयारी के साथ कोरोना टीकाकरण की तारीफ़ सुनने को मिलेगी। किसान आन्दोलन में मर रहे किसानों के प्रश्न में स्टेचू ऑफ़ यूनिटी तक पहुँचाने वाली ट्रेनों की आवाज सुनाई जायेगी। फिर भी यदि आप संतुष्ट नहीं होते तो सीबीआई, ईडी और एनआईए जैसी एजेंसियां आपको जवाब देंगीं। अमेरिका में तो प्रजातंत्र मरने के बाद फिर से जिन्दा हो जाएगा, पर क्या हमारे देश में ऐसी उम्मीद की जा सकती है?