हाथरस गैंगरेप : ऐसी जघन्य घटनाओं में भी जाति और धर्म खोजकर बलात्कारियों का किया जा रहा है बचाव
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की टिप्पणी
उग्र हिन्दुत्व के नाम पर नग्न फासीवादी हथकंडे अपनाने वाली भाजपा और संघ की सरकार ने महज छह सालों में ही इस देश से कानून के राज को अलविदा कह दिया है। अदालतें बिक रही हैं या जज को ठिकाने लगाया जा रहा है। पुलिस 'गेस्टापो' की भूमिका में आ गई है और बर्बरता की तमाम हदों को लांघ रही है। और क्रूरता का चरम हमें योगी आदित्यनाथ शासित उत्तर प्रदेश में देखने को मिल रहा है। जहां दैनिक क्रिया की तरह मासूम लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं और निर्लज्जता के साथ भक्त प्रजाति का झुंड जाति और धर्म के आधार पर इन घटनाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है। जिस अमानुषिक घटना की खबर से हर संवेदनशील व्यक्ति का कलेजा कांप उठा है, उस घटना में शामिल ऊंची जाति के दबंगों का भी ये भक्त बचाव कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में 14 सितंबर को सवर्ण जाति के चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के बाद रेप किया था। उसी के गांव के ऊंची जाति के चार दबंगों ने बलात्कार के बाद उसे लाठियों से इतना मारा कि उसकी गर्दन, हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डियां टूट गईं। वे यही नहीं रुके। उन्हें डर था कि लड़की उनका नाम उगल देगी तो उन्होंने उसकी जीभ काट दी। दिल्ली के एक अस्पताल में इलाज के दौरान बीते 29 सितंबर को उसकी मौत हो गई।
पीड़िता का अंतिम संस्कार यूपी पुलिस ने मंगलवार की रात अंधेरे में करीब 2.30 बजे कर दिया। आरोप है कि इस दौरान पुलिसवालों ने मृतक के परिजनों को घर में बंद कर दिया था। देर रात के वीडियो में विचलित करने वाला दृश्य कैद हुआ है, जिसमें पीड़ित परिवार को पुलिस के साथ बहस करते हुए देखा गया है। मृतक के रिश्तेदार खुद शव ले जाने वाली एम्बुलेंस के आगे आ खड़े हुए और गाड़ी की बोनेट पर लद गए लेकिन पुलिसवालों ने उन्हें हटाकर दाह संस्कार कर दिया।
युवती की मां एम्बुलेंस के आगे सड़क पर लेट गई लेकिन पुलिस उसे हटाकर वहां से चलती बनी। पीड़ित मां दाह संस्कार के बाद असहाय होकर रोती रही। मानवीय अस्मिता के साथ ऐसा खिलवाड़ किसी लोकतंत्र में हो सकता है, इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन उग्र हिन्दुत्व की उन्मादी राजनीति ने आज लोकतंत्र और संविधान को असहाय बना दिया है। मीडिया बिक चुकी है और न्याय की कोई उम्मीद बची नहीं रह गई है।
बलात्कार की घटना को लेकर हिन्दू तालिबानी बन चुके भक्त जाति और धर्म के आधार पर विरोध या समर्थन तय करते हैं। चूंकि उनके अंदर की मानवता को संघ की प्रोपगंडा मशीन नष्ट कर चुकी है। वे बलात्कार पीड़ित के धर्म की पड़ताल करते हैं। अगर पीड़ित मुस्लिम है तो वे कहते हैं-'फेक न्यूज होगी। मुसलमान लोग हमेशा सहानुभूति हासिल करने के लिए फेक न्यूज फैलाते हैं। जो भी हो हिन्दू खतरे में हैं।'
अगर बलात्कार पीड़ित हिन्दू है तो जाति का पता लगाते हैं। दलित होने पर कहते हैं--'फेक न्यूज होगी। वे लोग हमेशा सहानुभूति हासिल करने के लिए फेक न्यूज फैलाते हैं। जो भी हो कोई जाति भेद प्रचलित नहीं है।'
अगर बलात्कार पीड़ित किसी अन्य जाति की है तो पता लगाएंगे भाजपा शासित राज्य की है या किसी अन्य राज्य की। अगर भाजपा शासित राज्य की है तो कहेंगे--'कृपया राजनीति न करें। कानून को अपना काम करने दें।' अगर गैर भाजपा शासित राज्य की होगी तो कहेंगे--'मुख्यमंत्री को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए।'
भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में जिस क्रूरता का प्रदर्शन मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट करते रहे हैं, उसे देख कर लगता नहीं कि इस अमानवीय घटना के लिए जिम्मेदार अपराधियों को सजा मिल पाएगी। अभी से लीपापोती के संकेत आ रहे हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से लेकर पुलिसिया कारवाई तक इसी दिशा में बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। हिंसक पशुओं ने जाति-धर्म के मुखौटे धारण कर लिए हैं और ऐसे आततायी के राज में कोई भी गरीब दलित बच्ची सुरक्षित नहीं है।