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विमर्श

मोदी सरकार के कृषि बिल के खिलाफ लंबे समय से आंदोलनरत किसानों पर लिखी गयीं ऐतिहासिक कवितायें

Janjwar Desk
25 July 2021 12:44 PM GMT
मोदी सरकार के कृषि बिल के खिलाफ लंबे समय से आंदोलनरत किसानों पर लिखी गयीं ऐतिहासिक कवितायें
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किसान जो समस्याओं से घिरा है, कवियों का प्रिय विषय है। हिंदी के मूर्धन्य कवि, मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रसिद्ध कविता है, किसान। इस कविता में भी किसानों की समस्याओं को उजागर किया गया है....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान अब जंतर मंतर तक पहुँच चुके हैं और वहां किसान संसद का आयोजन कर रहे हैं। मोदी मंत्रिमडल के कृषि मंत्री तोमर कह रहे हैं कि किसानों के साथ बातचीत के दरवाजे खुले हैं, और विदेश राज्य मंत्री मीनाक्षी लेखी उन्हें मवाली बताती हैं। हमारे देश में जो किसानों, विशेष तौर पर छोटे किसानों की हालत है, लगभग वैसी ही दुनिया के अधिकतर देशों में है।

तमाम समस्याओं के बाद भी किसान अपना काम पूरी लगन से और निष्ठा से कर रहे हैं, और दुनिया को पर्याप्त अनाज और दूसरे कृषि उत्पाद मुहैय्या करा रहे हैं, हाल में ही संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में भूख और कुपोषण बढ़ने का कारण सरकारी निकम्मापन है, जबकि किसान आवश्यकता से अधिक कृषि उत्पादों को उपलब्ध करा रहा है।

किसान जो समस्याओं से घिरा है, कवियों का प्रिय विषय है। हिंदी के मूर्धन्य कवि, मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रसिद्ध कविता है, किसान। इस कविता में भी किसानों की समस्याओं को उजागर किया गया है। यह कविता दशकों पहले लिखी गयी है, क्योंकि इनका निधन वर्ष 1964 में ही हो गया था, फिर भी इस कविता में किसानों की जो समस्याएं बताई गईं हैं, वे आज भी पहले से भी विकराल रूप में आज भी खड़ी हैं।

किसान

हेमंत में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है

पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है

हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ

खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ

आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में

अधपेट खाकर फिर उन्हें है कांपना हेमंत में

बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा

है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा

देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे

किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे

घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा

घर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा

तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं

किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं

बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है

है शीत कैसा पड़ रहा, औ' थरथराता गात है

तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागते

यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते

सम्प्रति कहाँ क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान है

है वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है

मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक है

शशि सूर्य हैं फिर भी कहीं, उनमें नहीं आलोक है

प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह ने किसानों के ऊपर कुछ अलग विषय पर कविता लिखी है, कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने अपने बेटे को दिए। इस कविता में किसान पिता अपना सारा ज्ञान और परंपरा अपने बेटे को देता है, पर अंत में बेटे से कहता है कि तुम मेरे सिखाये रास्ते पर नहीं बल्कि अपने अनुभव से सीखना।

कुछ सूत्र जो एक किसान बाप ने अपने बेटे को दिए

मेरे बेटे

कुँए में कभी मत झाँकना

जाना

पर उस ओर कभी मत जाना

जिधर उड़े जा रहे हों

काले-काले कौए

हरा पत्ता

कभी मत तोड़ना

और अगर तोड़ना तो ऐसे

कि पेड़ को ज़रा भी

न हो पीड़ा

रात को रोटी जब भी तोड़ना

तो पहले सिर झुकाकर

गेहूँ के पौधे को याद कर लेना

अगर कभी लाल चींटियाँ

दिखाई पड़ें

तो समझना

आँधी आने वाली है

अगर कई-कई रातों तक

कभी सुनाई न पड़े स्यारों की आवाज़

तो जान लेना

बुरे दिन आने वाले हैं

मेरे बेटे

बिजली की तरह कभी मत गिरना

और कभी गिर भी पड़ो

तो दूब की तरह उठ पड़ने के लिए

हमेशा तैयार रहना

कभी अँधेरे में

अगर भूल जाना रास्ता

तो ध्रुवतारे पर नहीं

सिर्फ़ दूर से आनेवाली

कुत्तों के भूँकने की आवाज़ पर

भरोसा करना

मेरे बेटे

बुध को उत्तर कभी मत जाना

न इतवार को पच्छिम

और सबसे बड़ी बात मेरे बेटे

कि लिख चुकने के बाद

इन शब्दों को पोंछकर साफ़ कर देना

ताकि कल जब सूर्योदय हो

तो तुम्हारी पटिया

रोज़ की तरह

धुली हुई

स्वच्छ

चमकती रहे

कवि विनोद रुलानिया की एक कविता है, किसान बेटा जब बोल उठेगा। यह कविता वर्ष 2018 में प्रकाशित हुई थी, पर इस किसान आन्दोलन के दौर में इस कविता का महत्त्व बढ़ जाता है।

किसान बेटा जब बोल उठेगा

जिस दिन किसान का बेटा बोल उठेगा….

दिल्ली का सिंहासन डोल उठेगा….

मिट्टी में मिल जायेंगे तख्तो ताज तुम्हारे…

जिस दिन किसान का बेटा भी, किसान एकता बोल उठेगा….!!

अभी रो रहा है,वो बात बात पे…

अभी सो रहा है ,वो दिल्ली घाट पे..

अभी गुमराह ही रहा है,वो बात बात पे..

पर जिस दिन वो बोल उठेगा….

दिल्ली का सिंहासन डोल उठेगा…!!!

अभी व्यस्त है,वो रेतों में..

अभी व्यस्त है,वो खेतो में..

अभी व्यस्त है,वो वादों में..

अभी व्यस्त है,वो रातो में..

पर जिस दिन वो बोल उठेगा..

दिल्ली का सिंहासन डोल उठेगा..!!!

जिस दिन वो अपने हक जान जायेगा..

जिस दिन वो अपने हक मांग पायेगा..

जिस दिन वो अपनी बुलन्द आवाज में बोल पायेगा…

दिल्ली वालो से #खिलाफत कर जायेगा…

आखिर में एक दिन परेशान किसान बेटा बोल उठेगा..

और एक बार फिर दिल्ली का सिंहासन डोल उठेगा..!!

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