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विमर्श

भारत में मीडिया के लगभग हरेक क्षेत्र में सेंसरशिप का बढ़ता दायरा, ऐसे कानूनों का लिया जा रहा सहारा जो दुनिया में कहीं नहीं लागू

Janjwar Desk
4 May 2023 8:36 AM GMT
भारत में मीडिया सेंसरशिप पर अमेरिकी ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट | American Trade Commission highlights Media Censorship in India
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भारत में मीडिया सेंसरशिप पर अमेरिकी ट्रेड कमीशन की रिपोर्ट | American Trade Commission highlights Media Censorship in India

मीडिया सेंसरशिप के मामले में हमारा तथाकथित न्यू इंडिया चीन, रूस, इंडोनेशिया, वियतनाम और टर्की के साथ खड़ा है, हमारे देश में भी मीडिया से जुड़े लगभग हरेक साधन पर सेंसरशिप है – इसमें टीवी कार्यक्रम, पब्लिशिंग, फिल्म्स और सभी ऑन-लाइन सर्विसेज शामिल हैं...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

We are at 161th place among 180 countries in World Press Freedom Index 2023. रिपोर्टर्स विथआउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में स्वघोषित विश्वगुरु यानि भारत कुल 180 देशों की सूचि में 161वें स्थान पर पहुँच गया है। पिछले वर्ष भारत 150वें स्थान पर था, यानि एक वर्ष में 11 स्थानों की गिरावट दर्ज की गयी है। अब ऐसी खबरें पढ़कर कोई आश्चर्य नहीं होता अलबत्ता समाचार चैनलों को देखकर और समाचारपत्रों को पढ़कर कौतूहल अवश्य होता है कि अभी तक हम अंतिम स्थान पर नहीं पहुंचे?

इंडेक्स में लगातार गिरते रहने से जाहिर है केंद्र सरकार जरूर खुश होती होगी और निष्पक्ष पत्रकारों और मीडिया जगत को डराने वाली नीतियों पर नाज करती होगी। दूसरी तरफ तथाकथित जोकर-नुमा पत्रकार और पूंजीपतियों के मीडिया घराने भी इस खबर से खुश होते होंगे, क्योंकि उन्होंने पत्रकारिता की मर्यादा तार-तार करने में कोई कसर नहीं छोडी है। एक शर्मनाक तथ्य यह है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान और अशांत अफ़ग़ानिस्तान ने इस वर्ष प्रेस फ्रीडम के सन्दर्भ में पिछले वर्ष की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।

प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में शीर्ष के देश क्रम से नोर्वे, आइसलैंड, डेनमार्क, स्वीडन, फ़िनलैंड, नीदरलैंड, लिथुआनिया, एस्तोनिया, पुर्तगाल और तिमोर लेस्टे हैं। इंडेक्स में अंतिम देश उत्तर कोरिया है, इससे ऊपर चीन और फिर वियतनाम हैं। बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों में कनाडा 15वें स्थान पर, जर्मनी 21वें, फ्रांस 24वें, दक्षिण अफ्रीका 25वें, यूनाइटेड किंगडम 26वें, ऑस्ट्रेलिया 27वें, अमेरिका 45वें, जापान 68वें, इजराइल 97वें और रूस 164वें स्थान पर है।

भारत के पड़ोसी देशों में भूटान 90वें, नेपाल 95वें, श्रीलंका 135वें, पाकिस्तान 150वें, अफ़ग़ानिस्तान 152वें, बांग्लादेश 163वें, म्यांमार 173वें और चीन 179वें स्थान पर है। रिपोर्टर्स विथआउट बॉर्डर्स के अनुसार दुनिया की 85 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में रहती है, जहां पिछले 5 वर्षों के दौरान प्रेस की आजादी का हनन हुआ है। प्रेस की आजादी पर सबसे बड़ा खतरा तीन देशों – भारत, तुर्की और ताजीकिस्तान – में है। इस वर्ष रिकॉर्ड संख्या में देशों में प्रेस की आजादी में गिरावट दर्ज की गयी है। इसका सबसे बड़ा कारण दुनिया में प्रजातंत्र के नाम पर निरंकुश तानाशाही का पनपना, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं की भरमार, सरकारी प्रोपेगंडा और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का व्यापक प्रसार है।

अमेरिका के इन्टरनेशनल ट्रेड कमीशन ने वर्ष 2022 के शुरू में अमेरिका की कंपनियों द्वारा भारत में कारोबार करने में आने वाली अडचनों से सम्बंधित रिपोर्ट में मीडिया सेंसरशिप, विशेष तौर पर डिजिटल सेंसरशिप को सबसे बड़ी अड़चन बताया है। इसके अनुसार भारत में मीडिया के लगभग हरेक क्षेत्र में सेंसरशिप का दायरा बढ़ता जा रहा है और इसके लिए ऐसे कानूनों का सहारा लिया जा रहा है जो दुनिया में कहीं नहीं हैं। इन क्षेत्रों में फिल्म, टीवी, सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्म पर विडियो स्टीमिंग, सभी शामिल हैं। इस रिपोर्ट में लगातार इन्टरनेट बंद रखने और डिजिटल मीडिया में विदेशी पूंजी निवेश की अधिकतम सीमा का उदाहरण भी प्रस्तुत किया गया है और इसके साथ ही कहा गया है कि इन कदमों से भारत में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों को नुकसान पहुँच रहा है।

वर्ष 2022 पत्रकारों के लिए बहुत खतरनाक और जानलेवा रहा और अब राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश से सम्बंधित पत्रकारिता दो देशों के बीच छिड़े युद्ध के मैदान से की जाने वाली रिपोर्टिंग से भी अधिक खतरनाक हो गया है। यह निष्कर्ष 24 जनवरी को प्रकाशित कमिटी तो प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया है। इस रिपोर्ट को पिछले वर्ष 1 जनवरी से 1 दिसम्बर तक दुनिया भर में अपने काम के दौरान मारे गए या जेल भेजे गए पत्रकारों के आधार पर तैयार किया गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष, यानि 2022 में, दुनिया के 24 देशों में 62 पत्रकार मारे गए, जिसमें 41 पत्रकारों के बारे में स्पष्ट है कि वे रिपोर्टिंग के दौरान मारे गए जबकि शेष की ह्त्या का वास्तविक कारण पता नहीं है। यूक्रेन में युद्ध की रिपोर्टिंग करते अबतक 15 पत्रकार मारे जा चुके हैं, पर लगभग इतने ही, 13 पत्रकार, मेक्सिको में राजनीति, अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण विनाश से सम्बंधित पत्रकारिता करते हुए मारे गए। यही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण अमेरिका में ऐसे ही विषयों की रिपोर्टिंग करते पिछले वर्ष 30 पत्रकार मारे जा चुके हैं। हैती में राजनैतिक उथल-पुथल के बीच 7 पत्रकार मारे गए। इसके बाद क्रम से फिलीपींस में 4, बांग्लादेश में 2, ब्राज़ील में 2, चाड में 2, कोलंबिया में 2, होंडुरस में 2 और भारत में 2 पत्रकारों की ह्त्या की गयी। इस सन्दर्भ में देखें तो पिछले वर्ष मारे गए पत्रकारों की सूची में हमारा देश पांचवें स्थान पर अन्य 6 देशों के साथ आसीन है।

मीडिया सेंसरशिप के मामले में हमारा तथाकथित न्यू इंडिया चीन, रूस, इंडोनेशिया, वियतनाम और टर्की के साथ खड़ा है। सबसे अधिक और सबसे कठोर सेंसरशिप चीन में की जाती है। हमारे देश में भी मीडिया से जुड़े लगभग हरेक साधन पर सेंसरशिप है – इसमें टीवी कार्यक्रम, पब्लिशिंग, फिल्म्स और सभी ऑन-लाइन सर्विसेज शामिल हैं। अमेरिकी कम्पनियां सोशल मीडिया और स्टीमिंग सर्विसेज में सबसे आगे हैं। रिपोर्ट के अनुसार सेंसरशिप दो तरीके से की जाती है – एक तो कानून की धौंस दिखाकर और दूसरी उत्पीडन और ताकत की धौंस दिखाकर।

भारत में अभिव्यक्ति की आबादी को कुचलने के लिए अब अनेक कानूनों का सहारा लिया जाता है, जिसमें इंडियन पीनल कोड, आईटी एक्ट, डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट, महामारी एक्ट और जम्मू और कश्मीर रीआर्गेनाईजेशन एक्ट प्रमुख हैं। सिनेमा पर नियंत्रण के लिए सिनेमेटोग्राफी एक्ट है। भारत सरकार इन्टरनेट को अभिव्यक्ति की आजादी ख़त्म करने के लिए एक घातक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है।

वर्ष 2022 में इन्टरनेटबंदी कुल 35 देशों में की गयी, देशों की यह संख्या वर्ष 2016 के बाद से सबसे अधिक है। एसेस नाउ, वर्ष 2016 से लगातार वैश्विक स्तर पर इन्टरनेटबंदी का लेखा-जोखा प्रकाशित करता रहा है। वर्ष 2021 में दुनिया के कुल 34 देशों में इन्टरनेट बंदी के 182 मामले सामने आये, जिसमें अकेले भारत का योगदान 106 बार इन्टरनेट बंदी का रहा और इससे सरकारी खजाने को 60 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। इस 106 बंदी में से 85 बंदी अकेले जम्मू कश्मीर क्षेत्र में की गयी। भारत और दूसरे देशों में इन्टरनेट बंदी के मामलों में व्यापक अंतर रहता है। वर्ष 2021 में दूसरे स्थान पर 15 बंदी के साथ म्यांमार था, इसके बाद तीसरे स्थान पर 5 बंदी के साथ ईरान और सूडान थे। कोविड 19 के वर्ष 2020 में यह संख्या 159 थी।

हमारा देश दुनिया के उन चुनिन्दा 18 देशों में शामिल है जो मोबाइल इन्टरनेट सेवा भी प्रतिबंधित करते हैं। हमारे देश में वर्ष 2012 से 2022 के बीच 683 बार इन्टरनेट बंदी की गयी है जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है। वर्ष 2022 के पहले 6 महीनों के दौरान पूरी दुनिया में किये गए इन्टरनेट बंदी के मामलों में से 85 प्रतिशत से अधिक अकेले भारत में थे।

हम इतिहास के उस दौर में खड़े हैं जहां मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के सन्दर्भ में हम पाकिस्तान को आदर्श मान कर उसकी नक़ल कर रहे हैं और स्वघोषित विश्वगुरु का डंका पीट रहे हैं। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने भी अपने प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में इन दोनों पड़ोसियों को पड़ोसी ही रखा है – 160 देशों के इंडेक्स में भारत 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 145वें स्थान पर है।

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