डिजिटल इंडिया की हिमायती मोदी सरकार में इंटरनेट बंदी का विश्वगुरु बना भारत, किसी भी निरंकुश तानाशाही वाले देश का भी तोड़ा रिकॉर्ड
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
India is the global leader in internet shutdowns and suspension of mobile internet for the past 5 years: इन्टरनेट बंदी के मामले में भारत विश्वगुरु है। वर्ष 2022 में देश के जम्मू कश्मीर क्षेत्र में 24 बार इन्टरनेट की सेवायें सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गईं, जो दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सर्वाधिक है और पूरी दुनिया में जितनी इन्टरनेट बंदी की गयी, उसका 31 प्रतिशत है। इन आंकड़ों को इन्टरनेट बंदी पर नजर रखने वाली संस्था सर्फशार्क वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क ने अपने वार्षिक विश्लेषण में प्रकाशित किया है।
इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष दुनिया की आधी से अधिक आबादी, यानि लगभग 4.2 अरब आबादी, ने इन्टरनेट बंदी का सामना किया है। इसमें भारत के बाद रूस और इरान सबसे आगे हैं। रूस ने यूक्रेन युद्ध के बाद बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया है, साथ ही सोशल मीडिया और मोबाइल नेटवर्क को भी बाद किया है। रूस की सरकार ने यह सब अपने नागरिकों तक यूक्रेन युद्ध की सटीक जानकारी को रोकने के लिए किया है। दूसरी तरफ ईरान में सरकार के विरुद्ध उग्र प्रदर्शन के बाद से इन्टरनेट सेवायें अधिकतर क्षेत्रों में प्रतिबंधित हैं।
रिपोर्ट के अनुसार जम्मू कश्मीर क्षेत्र को छोड़कर देश के दूसरे हिस्सों में वर्ष 2022 के दौरान 10 बार इन्टरनेट बंदी की गयी। देश में इन्टरनेट बंदी का सरकारी कारण जनता को अफवाह से बचाना बताया जाता है, पर वास्तविकता यह है कि इसके कारण सामाजिक नहीं बल्कि विशुद्ध तौर पर राजनीतिक होते हैं, और इनका उपयोग सरकार के विरुद्ध सामाजिक प्रतिरोध और आन्दोलनों को दबाने के लिए किया जाता है। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता वर्ष 2019 में छीनने और इसे राज्य से केंद्र-शासित प्रदेश में परिवर्तित करने के बाद से ही वहां इन्टरनेट पर लगभग लगातार प्रतिबन्ध रहा है।
5 अगस्त 2019 से पूरे क्षेत्र में इन्टरनेट के साथ ही मोबाइल और टेलीफोन सेवा भी स्थगित कर डी गयी थी। जनवरी 2020 में मोबाइल इन्टरनेट और 2-जी सेवा बहाल की गयी, पर हाईस्पीड इन्टरनेट की सेवा 18 महीनों बाद फरवरी 2021 में बहाल की गयी। दुनिया के किसी भी निरंकुश तानाशाही वाले देश में भी इतनी लम्बी इन्टरनेट बंदी कभी नहीं की गयी।
सरकार लगातार जम्मू कश्मीर में बेहतर स्थिति और सामाजिक बदलाव की बात करती है, पर इन्टरनेट बंदी को बार बार लागू करने का सरकारी निर्णय ही इस दावे की पोल खोल देता है। जाहिर है सरकार वहां के लोगों को देश की आबादी से अलग रखना चाहती है और वहां की स्थिति को दुनिया के सामने किसी भी स्थिति में नहीं लाना चाहती है। इन्टरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट के अनुसार भारत सरकार स्वतंत्र आवाजों को दबाने के लिए लगातार ऑनलाइन सेंसरशिप और इन्टरनेट बंदी का सहारा लेती है – या अमानवीय है और मानवाधिकार का हनन भी। जम्मू कश्मीर में इन्टरनेट बंदी के सफल परीक्षण के बाद तो अब पूरे देश में इसका व्यापक प्रयोग किया जाने लगा है।
यह एक विचित्र तथ्य यह है कि वर्ष 2014 के बाद से सत्ता में काबिज बीजेपी सरकार हरेक सरकारी सुविधा और योजनायें ऑनलाइन कर चुकी है, या फिर करने की प्रक्रिया में है और यही सरकार इन्टरनेट बंदी के सन्दर्भ में भारत को विश्वगुरु बना चुकी है। हमारे प्रधानमंत्री जी इंटरनेट की 5-जी सेवा बड़े तमाशे से शुरू करते हैं, इसे देश की उपलब्धि बताते हैं, बताते हैं कि इससे फ़िल्में कितने सेकंड में अपलोड हो जायेंगी, पर इन्टरनेट सेवा बंद करने का ख़याल भी सबसे अधिक उन्हीं को आता है। हमारे देश में न्यायालयों के आदेशों की धज्जिया कैसे खुलेआम उडाई जाती हैं यह उसका सबसे बड़ा उदाहरण भी है।
सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2020 में कहा था कि इन्टरनेट सेवा नागरिकों का मौलिक अधिकार है और बिना किसी उचित कारण के इसे ठप्प नहीं किया जा सकता है, और ना ही अनिश्चित काल के लिए यह सेवा कहीं प्रतिबंधित की जा सकती है। पर, सरकारें लगातार ऐसा ही कर रही हैं।
हमारा देश दुनिया के उन चुनिन्दा 18 देशों में शामिल है जो मोबाइल इन्टरनेट सेवा भी प्रतिबंधित करते हैं। हमारे देश में वर्ष 2012 से 2022 के बीच 683 बार इन्टरनेट बंदी की गयी है जो दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है।
एसेस नाउ नामक संस्था जो वैश्विक स्तर पर इन्टरनेट बंदी के आंकड़े इकट्ठा करती है, के अनुसार भारत पिछले 5 वर्षों से लगातार इन्टरनेट बंदी के सन्दर्भ में दुनिया का सिरमौर रहा है। वर्ष 2022 के पहले 6 महीनों के दौरान पूरी दुनिया में किये गए इन्टरनेट बंदी के मामलों में से 85 प्रतिशत से अधिक अकेले भारत में थे।
एसेस नाउ के अनुसार वर्ष 2021 में दुनिया के कुल 34 देशों में इन्टरनेट बंदी के 182 आमले सामने आये, जिसमें अकेले भारत का योगदान 106 बार इन्टरनेट बंदी का रहा और इससे सरकारी खजाने को 60 करोड़ डॉलर का नुक्सान उठाना पड़ा। इस 106 बंदी में से 85 बंदी अकेले जम्मू कश्मीर क्षेत्र में की गयी। भारत और दूसरे देशों में इन्टरनेट बंदी के मामलों में व्यापक अंतर रहता है। वर्ष 2021 में दूसरे स्थान पर 15 बंदी के साथ म्यांमार था, इसके बाद तीसरे स्थान पर 5 बंदी के साथ ईरान और सूडान थे।
हमारे देश में इन्टरनेट बंदी चुनावों, आंदोलनों, धार्मिक त्योहारों और यहाँ तक कि परीक्षाओं के नाम पर भी की जाती है, पर आज तक कोई भी अध्ययन यह नहीं बता पाया है कि इन्टरनेट बंदी का कोई भी असर क़ानून व्यवस्था की स्थिति पर पड़ता है। जाहिर है इन्टरनेट बंदी का उपयोग हमारे देश में सत्ता द्वारा जनता के विरुद्ध एक हथियार के तौर पर किया जा रहा है, एक ऐसा हथियार जिसकी आवाज नहीं है पर निशाना अचूक है।