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विमर्श

मीडिया चैनलों की कवरेज कोरोना से भी भयावह!

Janjwar Desk
20 Sep 2020 7:58 AM GMT
मीडिया चैनलों की कवरेज कोरोना से भी भयावह!
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मोदी राज में फलता-फूलता गोदी मीडिया

भारतीय न्यूज चैनलों का कवरेज खतरनाक रूप ले चुका है। वे वास्तविक मुद्दों से बहुत दूर जा चुके हैं और सेलिब्रिटी बन चुके न्यूज एंकर पत्रकार की जगह पक्षकार बन चुके हैं। पढें यह तथ्यपरक आलेख...

हिमांशु सिंह की टिप्पणी

वर्तमान समय में संपूर्ण विश्व कोरोना नामक बीमारी से जूझ रहा है, लेकिन अब लोगों को कोरोना से कम मीडिया के कवरेज से ज्यादा डर लगने लगा है। डरना भी चाहिए डरना इसलिए भी जरूरी है कि अब टेलीविजन मीडिया में पत्रकार कम ही बचे हैं पक्षकारों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इस पंक्ति को लिखने तक देश में कोरोना के मामले 53,08,014 हो चुके हैं और कोरोना से मरने वालों की संख्या 85,619 पहुंच चुकी है। वर्तमान सरकार और उनके प्रवक्ता मोदी सरकार के लॉकडाउन के निर्णय को लेकर बड़ी-बड़ी डींगे हांकते फिरते थे कि सही समय में लॉकडाउन किया गया, जिससे भारत में कोरोना के प्रसार को कम करने में सरकार सफल रही, लेकिन अब स्थिति कोरोना को लेकर दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही है। भारत में हर रोज 90 से 95, 000 केसेस मिल रहे हैं और मरने वालों की संख्या प्रतिदिन 1,000 के पार है। लेकिन चैनलों में कोरोना को लेकर कोई बात नहीं की जा रही है।

मीडिया चैनलों के बीच टीआरपी को लेकर होड़ मची हुई है। टेलीविजन मीडिया में उन्हीं मुद्दों को प्रमुखता से जगह दी जा रही है जिनसे चैनल की टीआरपी बढ़े और नंबर 1 बनने का तमगा हासिल कर सकें। नंबर 1 की पोजीशन में आने के लिए लगातार लोगों को झूठ परोसने व गुमराह करने का काम मीडिया कर रही है। जिस तरीके से मीडिया ने पिछले 3 महीने से देश के मुख्य मुद्दों का गला घोटकर मुख्य मुद्दों को किसी कोने में दफना दिया गया है।

टीवी में लगातार डिबेट किया है उसकी निंदा जितनी की जाए उतनी कम है। मीडिया में दिनभर केवल भारत चीन का मुद्दा और सुशांत केस से जुड़े लोगों को दिखाया जा रहा है। अगर मीडिया इतनी जद्दोजहद बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रवासी मजदूर या देश की अर्थव्यवस्था पर बात करती तो शायद देश की सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी 23.9 माइनस पर नहीं होती।

कोरोना को लेकर मार्च से अप्रैल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने जमकर कवरेज किया कवरेज कुछ ऐसा था जिसमें लोगों को खबर कम नफरत व जहर भर भर के परोसा गया। साथ ही कोरोना को फैलाने का टिकरा तबलीगी जमात के ऊपर फोड़ दिया गया। जब सरकार कोरोना पर काबू पाने पर नाकाम रही तो उसने अपनी नाकामी को छुपाने के लिए तबलीगी जमात को जिम्मेदार ठहराया। हद तो तब मीडिया चैनलों ने पार कर दी जब उन्होंने कोरोना से संक्रमित होने वालों का आंकड़ा और तबलीगी जमात के आंकड़े को अलग दिखाकर लोगों में सांप्रदायिकता का बीज बोने का काम किया और इस काम में मीडिया चैनल सफल भी रहे। लेकिन मुंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली की निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में जमातियों के खिलाफ दर्ज एफआइआर को रद्द कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा है कि तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट ने मीडिया को कोरोनो को फैलाने का प्रोपेगेंडा चलाने को लेकर फटकार लगायी है। कोर्ट के इस फैसले के बाद भी मुख्यधारा के मीडिया ने माफी मांगना मुनासिब नहीं समझा।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वार्षिक विश्लेषण 2020 के अनुसार वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में भारत 142 वें स्थान पर है। भारत पिछले वर्ष 140 वें स्थान पर था। रिपोर्ट ने 2 पायदान की गिरावट का कारण हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार का मीडिया पर लगातार बनाए गए दबाव को कारण बताया है।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का विश्लेषण भारतीय मीडिया के लाचारी और उसके पंगु होने का ठोस सबूत है। जिसको नकारा नहीं जा सकता। सरकार की भक्ति में डूबे पत्रकार कम पक्षकारों को अपनी इस उपलब्धि के लिए खुश होना चाहिए।

मीडिया से खबरें 6 साल पहले ही गायब कर दी गई है। एक समय था जब मीडिया सवाल किया करता था, लेकिन अब तो मीडिया ही एक सवाल बन चुका है। मीडिया ने लोगों को 2 वर्गो में बांट दिया है। एक वर्ग वो है जो सवाल करना भूल गया है। दूसरा वर्ग वो है जो सरकार से सवाल करना चाहता है या करता है तो मीडिया उसे राजद्रोही घोषित कर देता है ।

बीते कुछ महीनों में टेलीविजन चैनलों ने जिस तरीके से कवरेज किया है उसको देख कर तो ऐसा प्रतीत होता है कि या कोई पत्रकार नहीं बल्कि कोई पक्षकार बात कर रहा है कुछ गिने-चुने पत्रकारों को छोड़कर अपने आप को पत्रकार बताने वाले पक्षकार सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने का काम कर रहे हैं।

Official Peeing Human चैनल जो कि मीडिया की कवरेज पर नजर रखता है उनके द्वारा बीते कुछ दिनों में मीडिया चैनलों में हुई डिबेट के आंकड़े जारी किए गए, जिस पर हम सभी को एक नजर डालना चाहिए क्योंकि आंकड़े चीख चीखकर मीडिया के बुरे दौर को बता रहे हैं।

1.आज तक

आज तक के यूट्यूब चैनल में 5 अगस्त 2020 शाम 6.00 बजे तक लास्ट 200 वीडियोस को दिखाने के बाद यूट्यूब चैनल में वीडियो अपलोड किया गया।

राम मंदिर पर - 130

सुशांत सिंह राजपूत पर - 48

अमित शाह पर - 3

कोरोना अपडेट पर - 2

बिहार बाढ़ पर - 2

रक्षाबंधन पर - 2

अमेरिका बनाम चीन पर - 2

वहीं 11 वीडियो अन्य मुद्दों पर थे।

2. रिपब्लिक भारत

रिपब्लिक भारत में 24 अगस्त 2018 से लेकर 18 मार्च 2020 तक चैनल के एडिटर इन चीफ ने 1000 डिबेट किया।

कांग्रेस के खिलाफ - 511

बीजेपी व आरएसएस के पक्ष में - 149

अल्ट्रा नेशनलिस्ट-पाकिस्तान के खिलाफ - 108

राम मंदिर - 43

बीजेपी और कांग्रेस को कोसने पर 43 डिबेट थी जिसमे 9 नीतीश कुमार पर डिबेट हुई।

13 मार्च से 29 मई तक पूछता है भारत डिबेट शो में 103 बहस हुई।

कांग्रेस के खिलाफ - 33

तबलीगी जमात - 18

पाकिस्तान - 13

पालघर - 12

शाहीन बाग - 4

लॉकडाउन - 4

योगी की जय जयकार - 2

मंदिर का सोना - 2

बांद्रा प्रवासी मजदूर - 2

मध्य प्रदेश - 2

बाबा रामदेव - 1

जेएनयू - 1

कनिका कपूर - 1

सीएए - 1

कोरोना - 1

26 मई से 9 सितंबर के बीच रिपब्लिक भारत में 100 डिबेट हुई

सुशांत सिंह राजपूत - 33

कांग्रेस के खिलाफ - 21

पाकिस्तान - 12

धर्म पर आधारित - 11

चीन - 5

विकास दुबे - 5

मोदी का- 3

अनलॉक 1.0 - 1

कोरोना - 0

इकॉनमी - 0

बेरोजगारी - 0

स्वास्थ्य - 0

शिक्षा - 0

3. ज़ी न्यूज़

ज़ी न्यूज़ में 12 मार्च से 31 जुलाई 2020 तक ताल ठोक के डिबेट शो में 275 डिबेट हुई जिसमें

कांग्रेस के खिलाफ - 69

धर्म पर आधारित - 51

चीन - 32

तबलीगी जमात - 24

पाकिस्तान - 18

लॉकडाउन - 17

मोदी की जयजयकार - 16

कोरोना - 10

विकास दुबे - 9

सुशांत सिंह राजपूत - 5

कश्मीर - 4

शराब की बिक्री - 3

कनिका कपूर - 3

प्रवासी मजदूर - 3

उत्तर प्रदेश में बढ़ते जुर्म - 2

अमिताभ बच्चन - 2

डॉक्टरों पर हमला - 2

बिहार असम दिल्ली में बाढ़ - 2

कोटा में फंसे छात्र - 1

पिज़्ज़ा डिलिवरी - 1

निर्भया - 1

4. न्यूज 18

न्यूज़ 18 में 16 अप्रैल से 1 जून तक आरपार नामक सो में 33 बहस हुई जिनमें

कोरोना - 0

धर्म पर आधारित - 14

कांग्रेस के खिलाफ - 9

पाकिस्तान के खिलाफ - 5

मजदूरों पर कांग्रेस बनाम बीजेप - .4

चीन के खिलाफ - 1

रोजगार - 0

अर्थव्यवस्था - 0 बहसें हुई।

5. न्यूज़ नेशन

न्यूज़ नेशन पर 16 मार्च से 9 मई तक दीपक चौरसिया ने खोज खबर नामक शो पर डिबेट किया जिसमें

हिंदू मुस्लिम - 19

तबलीगी जमात - 12

मोदी की जयजयकार - 4

कांग्रेस के खिलाफ - 4

शाहीन बाग - 4

कनिका कपूर - 1

पाकिस्तान - 1

भारत के टॉप 5 टीवी चैनल, आज तक, रिपब्लिक भारत, न्यूज18ए ज़ी न्यूज़ और न्यूज़ नेशन में 15 जून से लेकर 15 अगस्त 2020 के बीच हुई बसों में कोरोना को लेकर केवल 1 बहस हुई वही अन्य मुद्दों पर 386 डिबेट हुई। इन आंकड़ों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पत्रकरिता अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। जिससे हम सभी को संभलकर रहना होगा।

ये आंकड़े सिर्फ 5 टीवी चैनलों के हैं 1-2 चैनल को छोड़े बांकी के चैनल भी इसी काम में मस्त हैं बेसक ये आंकड़े बहुत कम है, लेकिन कम होने के बावजूद ये आंकड़े बहुत कुछ बयां कर रहे हैं कि किस तरह मीडिया चैनलों पर कोरोना, बेरोजगारी, इकॉनमी, स्वास्थ्य पर कोई डिबेट नहीं की गई। मीडिया अब सत्ता की कठपुतली बन चुका है सरकार जैसा चाहे उसे नचा सकती है।

जिससे हम सभी को मीडिया नामक भेड़िया से बचकर रहना होगा। नहीं तो पता नहीं कब हमको ये अपना शिकार बना ले।

सरकार मीडिया नामक दुकान चला रही है, जिसमे सड़े गले मुद्दों के साथ झूठ और संप्रदायिकता को भी बहुत सफाई के साथ बेच रही है। देश के टेलीविजन में बीते 3 माह में केवल 3 ही नाम चर्चित है रिया, सुशांत और कंगना के बीच मीडिया टीआरपी के गंदे खेल में व्यस्त है।

देश में पढ़े लिखे बेरोजगारों की फौज सरकार से नौकरी मांग रहे हैं, लेकिन मीडिया में बेरोजगारी को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं। मीडिया बेरोजगारी पर बात भी नहीं करना चाहता। मीडिया बेरोजगारों युवाओं को दंगाई बनाने की मशीन बन चुका है और ये मशीन हर साल लाखों करोड़ों की तादाद में बेरोजगार युवाओं को सांप्रदायिकता की खाई में ढकेल रही है।

मोदी सरकार सत्ता में आने से पहले हर साल 2 करोड़ नौकरी देने का वादा किया था लेकिन बेरोजगार युवाओं को रोजगार के नाम पर केवल बेरोजगारी का तमगा ही मिल सका। मोदी सरकार ने पिछले 6 सालों में मीडिया के साथ मिलकर देश की समस्याओं से कम विपक्ष से लड़ाई ज्यादा लड़ी गई है, जिसमें मीडिया ने अहम रोल अदा किया है। सरकार की नाकामियों को छुपाने के लिए मीडिया ने विपक्ष से ही सवाल कर रही है।

पिछले वर्ष केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने बेरोजगारी के आंकड़े जारी किए थे, आंकड़े के मुताबिक भारत में बेरोजगारी की दर पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा है। लेकिन फिर भी रोजगार को लेकर मीडिया सरकार से सवाल करने पर डर रही है।

बीते 3 माह से मीडिया चैनलों में रिया सुशांत और कंगना को लेकर जमकर कवरेज हुई है जो की अभी भी चल रही है। भारत में कोरोना जैसी बड़ी समस्या होने के बावजूद इस पर मीडिया चैनलों में कोई चर्चा नहीं हो रही है। बेरोजगार सड़कों में धरना प्रदर्शन कर नौकरी की मांग कर रहे हैं। लेकिन सुशांत, रिया और कंगना के डिबेट में ही मस्त है।

टेलीविज़न चैनलों का खर्चा अब बढ़ने वाला है क्योंकि डिबेट में जिस तरीके से मार पीट गाली गलौज होते दिखता है, उसको देखकर तो यही लगता है कि टीवी चैनलों को बीच बचाव के लिए बॉडीगार्ड तैनात करना पड़ सकता है। टीवी चैनलों में बहस इतनी जहरीली होती जा रही है कि ये दिन भी अब दूर नहीं जब एंकर के साथ बॉडी गार्ड भी दिखेंगे।

टीवी एंकर मानसिक रूप से अस्वस्थ नजर आ रहे हैं। डिबेट्स में जिस प्रकार की भाषा का उपयोग एंकर करते हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि यह कोई पत्रकार नहीं बल्कि कोई राह चलता मावली बात कर रहा है। कुछ एंकर तो नेताओं को ओए उद्धव ठाकरे ओए संजय राउत कहकर भी संबोधित कर रहे हैं, जो की पत्रकरिता के बुरे दौर की ओर इशारा करता है।

कोरोना देश के लिए सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है। यूपी-बिहार में कोरोना बेकाबू हो चुका है, स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराई हुई है, डॉक्टरों की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है लेकिन फिर भी देश के मीडिया चैनल अस्पतालों की बदहाली पर कोई बात नहीं करना चाहते हैं।

मीडिया में अब आम जनता के लिए कुछ नहीं बचा है, क्योंकि मीडिया अब न रोजगार पर बात करना चाहता न ही इकॉनमी पर और न ही शिक्षा या स्वास्थ्य व्यवस्था पर इन मुद्दों के लिए टेलीविज़न चैनलों में कोई जगह नहीं बची है।

मीडिया में अब पत्रकार कम ही बचे हैं, पक्षकारों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। जिन भी पत्रकारों ने सरकार को आईना दिखाने का प्रयास किया नौकरी से हाथ धोना पड़ा। लोगों को अब समझना होगा कि कोट पैंट पहनकर बन ठन कर टीवी में दिखने वाला आदमी पत्रकार के रूप में भेड़िया है, जो लोगों को आपस लड़ने की हर पल साजिश रच रहा है।

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